TNP DESK – झारखंड स्टेट स्टूडेंट्स यूनियन के बैनर तले छात्रों का एक समूह 60: 40 की नियोजन नीति के विरोध में सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी मांग संयुक्त बिहार की तर्ज पर ही झारखंड में नियोजन नीति का निर्माण किये जाने की है, उनका कहना है कि बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 की उपधारा 85 के तहत झारखंड सरकार को भी यह अधिकार प्राप्त है कि वह संयुक्त बिहार के समय का कोई भी अध्यादेश, गजट का संकल्प को अंगीकृत कर सकती है. इसी अधिकार के तहत उनकी मांग संयुक्त बिहार की 3 मार्च 1982 वाली नियोजन नीति (पत्रांक 5014/81-806) को अंगीकार करते हुए झारखंड के लिए नियोजन नीति का निर्माण कर नियुक्ति प्रक्रिया की शुरुआत करने की है. उनकी दूसरी मांग नियुक्ति फॉर्म में स्थानीय प्रमाण को अनिवार्य बनाने, सभी वर्गों की जनसंख्या के अनुपात में जिला स्तर पर आरक्षण के प्रावधान सुनिश्चित करने, झारखंड की रीति परंपरा, रिवाज, भाषा, संस्कृति को अनिवार्य बनाने के साथ ही क्षेत्रीय भाषा का पेपर अनिवार्य करने की है.
छात्रों की हर मांग जायज, अपना वादा पूरा करे हेमंत सरकार- भाजपा
छात्रों के इस आन्दोलन को भाजपा समर्थन करती हुई दिख रही है. भाजपा प्रवक्ता प्रतुलनाथ शहदेव ने छात्रों की मांग का समर्थन करते हुए कहा है कि हेमंत सरकार इन्ही मुद्दों को लेकर सत्ता में आयी थी, लेकिन सत्ता मिलते ही वह सब कुछ भूल चुकी है, छात्रों की सारी मांगे जायज है, इस तपती गर्मी में छात्रों को सड़क पर उतरने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ रहा है, क्योंकि हेमंत सरकार अपना वादा भूल चुकी है.
सरकार के प्रयासों में अड़ंगा डाल रही है भाजपा- झामुमो
दूसरी ओर झामुमो और महागठबंधन का कहना है कि गठबंधन की सरकार अपना एक एक वादा को पूरा कर रही है, यह तो भाजपा है जो राजभवन को आगे कर इसमें रोड़ा अटकाने का काम कर रही है. उनका दावा है कि महागठबंधन अपने वादे और झारखंडी जनभावनाओं के अनुरुप झारखंड विधान सभा से नियोजन नीति को पास कर राजभवन को भेजा था. लेकिन भाजपा ने झारखंडी जनभावनओं को पर आधात पहुंचाते हुए इस जनप्रिय नियोजन नीति को हाईकोर्ट में चुनौती दिया, जिसके कारण हाईकोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया. भाजपा यही हाल 1932 का खतियान पर आधारित स्थानीय नीति और दूसरे कई विधेयकों के साथ कर चुकी है. वह विधान सभा में जब हमारा विरोध नहीं कर पाती तो हाईकोर्ट और राजभवन का सहारा लेकर मामले को लटकाती है. झामुमो का दावा है कि राजभवन के द्वारा जिन -जिन विधेयकों को वापस भेजा गया है, उसे एक बार फिर से राजभवन की संस्तूति के लिए भेजा जायेगा. अब यह भाजपा गेंद भाजपा के पाले में होगा.
भाजपा बताये वह 60: 40 के पक्ष में है या खतियान आधारित स्थानीयता के पक्ष में
ध्यान रहे कि हेमंत सरकार ने छात्रों की मांगों के अनुरुप ही अपनी पहली नियोजन नीति में स्थानीय भाषा का पेपर को अनिवार्य किया था, साथ ही स्थानीय भाषा और संस्कति की जानकारी को अनिवार्य बना दिया था, लेकिन इस नियोजन नीति को कोर्ट में चुनौती दी गयी, जिसके बाद सरकार 60: 40 का फार्मूला को लेकर सामने आयी. हालांकि कई अवसर पर सीएम हेमंत सोरन ने 60: 40 के सवाल पर भाजपा से उसकी राय मांगे है. तब उन्होंने भाजपा से सवाल खड़ा किया था कि भाजपा पहले यह तय कर ले कि वह 60: 40 के साथ है या 1932 के खतियान के साथ.
कई मौके पर सीएम हेमंत दे चुके हैं आश्वासन
इसके साथ ही हेमंत सोरेन ने इस बात का भी संकेत दिया था कि 60: 40 का यह फार्मूला स्थायी नहीं होकर वर्तमान राजनीतिक हालत की मजबूरी है, उनका संकेत था कि केन्द्र में अभी भाजपा की सरकार है, वह किसी भी कीमत पर सरना धर्म कोड, खतियान आधारित नियोजन नीति, पिछड़ों के आरक्षण में विस्तार को लागू होने नहीं देगी, उनका कहना था कि राज्य सरकार इन वादों की पूर्ति के अपना काम तो कर ही रही है, विधेयकों को पास भी किया जा रहा है, लेकिन लोगों को यह समझना होगा कि इस प्रक्रिया को बाधित कौन कर रहा है. उनका संकेत था कि ज्योंही केन्द्र सरकार में बदलाव आता है, वह एक एक कर अपने सभी चुनावी वादों को पूरा करवाने की स्थिति में होगें, छात्रों की मांग भी उसी कड़ी का हिस्सा है.
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