टीएनपी डेस्क(TNP DESK): एक तरफ नीतीश कुमार दलित, अति पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को लेकर बेहद सतर्क राजनीति करते रहे हैं, इन्हीं अतिपिछड़ों को साथ लेकर उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की थी, इस बार की उनकी कोशिश दलित अति पिछड़ों के साथ पिछड़ों को भी अपने पाले में लाने की है. लेकिन उनकी ही पार्टी के उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार की इस राजनीतिक रणनीति पर चूना लगाने के लिए अड़े दिखाई पड़ रहे हैं.
जदयू का जन्म ही राजद की राजनीति के खिलाफ हुआ है- कुशवाहा
अपने ताजातरीन बयान में उपेन्द्र कुशवाहा ने लालू परिवार को अतिपिछड़ों का सबसे बड़ा शोषक करार दिया है. उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद का परिवार पिछले 33 वर्षों से राज्य के अति पिछड़ी जातियों का शोषण करता रहा है, इस परिस्थिति में जदयू का राजद के साथ जाने से मुझे पीड़ा हो रही है. जिन जिन लोगों ने नीतीश कुमार को मजबूती दी है, आज वे सब हैरान परेशान हैं.
अपने घूर विरोधी लालू के साथ सरकार चला रहे हैं नीतीश
यहां बता दें कि नीतीश कुमार एनडीए से अलग होकर कभी अपने धूर विरोधी रहे राजद के साथ वह महागठबंधन की सरकार चला रहे हैं, नीतीश कुमार का अंकगणित बेहद साफ है, उनका आकलन है कि यदि दलितों, अति पिछड़ों के साथ पिछड़ों की ताकत को मिला दिया जाय तो बिहार की सत्ता से उन्हें कोई हिला नहीं सकता. वैसे भी कई मौके पर नीतीश कुमार के द्वारा यह सार्वजनिक रुप से जाहिर किया जा चुका है कि उनकी मंशा राज्य का नेतृत्व तेजस्वी यादव को सौंप दिल्ली जाने की है, चाहे वह प्रधानमंत्री के रुप में हो या किसी और रुप में. जातीय जनगणना उसी पिछड़ावाद की राजनीतिक को मजबूत करने का हिस्सा है.
उपेन्द्र कुशवाहा के सपने में आने लगा मुख्यमंत्री की कुर्सी
लेकिन उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार की इस राजनीतिक में अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहे हैं, उनकी खुद की महात्वांशा भी सीएम की कुर्सी ही है, नीतीश कुमार की इस राजनीति में तो यह कुर्सी तेजस्वी के पास जाने ही वाली है, उसके बाद उपेन्द्र कुशवाहा के लिए बिहार में कुछ खास तो बच नहीं जाता, यही कारण है कि राजद के बहाने कुशवाहा के निशाने पर खुद नीतीश कुमार ही है. वह खुले आम कह रहे हैं कि मेरी पार्टी जदयू में भी अति पिछड़ों की पूछ नहीं है.
किसी पाले में लम्बे समय तक रहना कुशवाहा की फितरत नहीं
वैसे यहां यह भी बता दें कि नीतीश कुमार की तरह ही उपेन्द्र कुशवाहा की फितरत भी कभी किसी पाले में स्थिर रुप से रहने की नहीं है, वह कई बार जदयू के रिश्ता तोड़ चुके हैं, और हर बार उनकी घर वापसी भी हुई है, वह कभी भी लम्बे समय तक नीतीश के साथ नहीं रह पाते, लेकिन यह बात भी सही है कि यह दूरी भी लम्बी नहीं होती. नीतीश कुमार के बिना उनकी स्थिति पर कटे चिड़िया की होती है. फिलहाल उनके सपने में बिहार के सीएम की कुर्सी दिखायी देने लगी है.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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