रांची(RANCHI)- पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के मंत्रिमंडल में बारहवें मंत्री का पद कार्यकाल की समाप्ति तक खाली ही रहा, हालांकि वह बारहवीं मंत्री कौन होगा? इसको लेकर मीडिया में हर दिन एक नयी स्टोरी सामने आती थी. गाहे-बगाहे उसे भरने की मांग भी उठती थी, लेकिन रघुवर दास की सरकार ने एक को खुश को कर तीन को नाराज करने का राजनीतिक जोखिम लेना उचित नहीं समझा और इसी आशा-प्रत्याशा के बीच सरकार का कार्यकाल भी समाप्त हो गया, राजनीतिक अखाड़े में उन्हे हार का सामना करना पड़ा और हार भी ऐसी की खुद सीएम भी अपनी सीट नहीं बचा सके.
हेमंत सोरेन के सामने भी बरकरार है बारहवीं की यह दुविधा
अब हेमंत सरकार भी इसी बारहवीं के चक्कर में बूरी तरह से फंसी नजर आ रही है, या यों कहें कि हेमंत सोरेन के सामने भी बारहवीं की यह राजनीतिक दुविधा बरकरार है. वह चाह कर भी बारहवीं की इस विरासत से बाहर निकलता दिख नहीं रहे हैं.
खाली है बारहवीं मंत्री का पद
हेमंत सोरेन की सरकार में आज भी बारहवें मंत्री का पद खाली है. कई मौके पर कांग्रेसी विधायकों के द्वारा इस पर अपना दावा जताया गया है, लेकिन सीएम हेमंत सोरेन किसी कांग्रेस विधायक को भाव देते नजर नहीं आ रहें. झारखंड प्रदेश कांग्रेस के वरीय पदाधिकारियों की सोच भी वर्तमान सत्ता समीकरण में किसी छेड़छाड़ से दूर रहने की है. वे मंत्री पद की होड़ में असंतुष्ट विधायकों का एक नया गुट बनाने का कोई अवसर देना नहीं चाहते.
बावजूद इसके कांग्रेसी विधायकों की उम्मीद बरकरार है. हर विधायक इसी बारहवीं के चक्कर में सीएम हेमंत से लेकर पार्टी पदाधिकारियों का चक्कर लगा रहा है, सब की अपनी- अपनी दावेदारी और जनधार के अपने-अपने दावे हैं.
टाइगर जगरनाथ की मौत के बाद फिर से जिंदा हुआ सवाल
लेकिन टाइगर जगरनाथ महतो की मौत के बाद बारहवीं का यह पुराना सवाल एक बार फिरे से सर उठाता दिख रहा है, कुछ कांग्रेसी विधायकों का मानना है कि टाइगर जगरनाथ महतो की मौत के बाद किसी ना किसी को मंत्री बनाना अब अनिवार्य हो गया है, स्वाभाविक है कि हेमंत सरकार अपना मंत्रिमंडल विस्तार करेगी, तब क्यों नहीं एक साथ इस बारहवीं के चक्कर को भी निपटा लिया जाय.
बारहवीं पद के दावेदारों का अजीबोगरीब तर्क
इसके पीछे भी उनके अपने अजीबोगरीब तर्क हैं, उनका दावा है कि बारहवीं मंत्री का पद नहीं भरने के कारण ही रघुवर दास की सरकार गयी थी, इस सरकार के भी तीन साल पूरे हो गये हैं, बारहवीं मंत्री के बगैर चुनावी अखाड़े में उतरना जोखिम भरा होगा.
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