देवघर(DEOGHAR):देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम में देश-विदेश से सालों भर श्रद्धालु बाबा की पूजा-अर्चना के लिए आते रहते हैं, लेकिन यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को शायद ही यह याद रहता है, कि वे यहां कब-कब आये या उनके पूर्वज कब किस वर्ष पूजा करने देवघर आये थे. बाबजूद इसके उनके और उनके पूर्वजों की यात्रा का पूरा विवरण और लेखा-जोखा यहां मौजूद रहता है, और यह दस्तावेज कोई प्रशिक्षित सरकारी या प्रशासनिक पदाधिकारी की ओर से तैयार नहीं किया जाता है, बल्कि अपने यजमानों का पूरा लेखा-जोखा बखूबी उनके पुरोहित संभाल कर रखते हैं. यहां आने वाले श्रद्धालु को इससे काफी सुविधा होती है. अब समय के साथ यहां के तीर्थ पुरोहित लेखा-जोखा कंप्यूटर के माध्यम से सहेजने का मन बनाया है.
300 साल से सहेज कर रखे है रिकॉर्ड
देवघर के बाबाधाम में भक्त द्वादश ज्योतिर्लिंग की पूजा-अर्चना,जलार्पण करने के बाद अपने घर लौट जाते है, उन्हे अपनी तीर्थ यात्रा के दिन-तारीख की जानकारी शायद ही रह पाती है, लेकिन उनके यहां आगमन का संक्षिप्त विवरण उनके तीर्थ पुरोहितो की ओर से खाते में पूरी तरह संभाल कर रखा जाता है. यहां तक की अपने पूर्वजो की पीढ़ी दर पीढ़ी की जानकारी भी इन्ही तीर्थ पुरोहितो के दस्तावेज से मिलती है. इस पवित्र तीर्थ स्थल पर पूजा-अर्चना करने कई महान विभूतियां पहुंची है, जिनका विवरण किसी सरकारी दस्तावेज में ढूंढ़ना शायद कठिन हो लेकिन इन सब का संक्षिप्त विवरण यहां के तीर्थ पुरोहितो के पास उपलब्ध मिलेगा. जिसे वह 300 साल से संभाल कर रखे हुए है.
पुरोहितों ने कंप्यूटर के माध्यम से डाटा सहेजने का मन बनाया है
देश विदेश से आये कई ऐसे विभूति का भी विवरण उनके तीर्थ पुरोहित के पास संभाल कर रखा गया है. यहां आने वाले तीर्थ यात्री को इस बही खातों से अपनी वंशावली और कई पीढ़ियो की जानकारी उन्हें आसानी से मिल जाती है,. वर्षो से चले आ रहे बही खाता समय के साथ नष्ट भी हो रहे है, ऐसे में यहां के तीर्थ पुरोहितों को अपने यजवानों का लेखा-जोखा संभालना चिंता का विषय बन गया है. तीर्थ पुरोहित अब अपने यजवानों का लेखा-जोखा समय के अनुरुप कंप्यूटर के माध्यम से सहेजने का मन बनाया है, ताकि वे अपने यजमानों की पीढ़ी दर पीढ़ी वंशावली एक क्लिक पर सदिया तक उपलब्ध करा सके.
सदियों से चली आ रही है ये परंपरा
बाबाधाम की विशेषताओ में से एक ये भी है कि यहां के तीर्थ पुरोहित अपने यजमानो का लेखा-जोखा रखने की यह परंपरा पीढ़ियो से निभा रहे हैं. यह परंपरा शायद ही किसी अन्य तीर्थ स्थलो में देखी जाती है. आनेवाले समय में नष्ट हो रहे बही खातों को कंप्यूटर से सहेजने की तीर्थ पुरोहितों की पहल यहां की परंपरा को बरकरार रखने में एक कारगार कदम होगी.
रिपोर्ट-रितुराज सिन्हा
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