रांची (RANCHI)- अब तक के सभी उपचुनावों में जीत के कारवें को जारी रखने के इरादे के साथ सीएम हेमंत रामगढ़ उपचुनाव में खुद ही मोर्चा संभालने जा रहे हैं, यूपीए खेमा के सभी नेताओं-पदाधिकारियों से व्यापक विमर्श के बाद रामगढ़ उपचुनाव की रणनीति तैयार कर ली गयी है. 19 फरवरी को रामगढ़ के गोला में सीएम हेमंत की पहली जनसभा होगी.सूत्रों के अनुसार इसके बाद भी सीएम हेमंत की ओर कई चुनावी जनसभाओं का आयोजन किया जायेगा और रामगढ़ उपचुनाव में यूपीए का परचम लहराने की पूरी जिम्मेवारी सीएम हेमंत के कंधों पर होगी.
लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि सीएम हेमंत को रामगढ़ उपचुनाव की कमान अपने हाथों में लेनी विवशता क्यों हुई? इसके पहले के सभी विधानसभा उपचुनावों में उनकी सक्रियता तो जरुर रहती थी, लेकिन इस प्रकार की मोर्चाबंदी नहीं हुई थी. अब ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी कि सीएम हेमंत को खुद ही मोर्चा संभालना पड़ रहा है?
नियोजन नीति रद्द होने से छात्रों में गुस्सा
गौरतलब है कि पिछले वर्ष दिसम्बर में ही झारखंड हाईकोर्ट के द्वारा हेमंत सरकार की नियोजन नीति को रद्द कर दिया गया था, हाईकोर्ट के द्वारा इसे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 और 16 का खुला उल्लंघन बताया गया था, इसके साथ ही हेमंत सरकार की बहुप्रचारित खतियान नीति को भी राजभवन से झटका लगा है, राजभवन ने 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को राज्य सरकार को वापस भेज दिया है, साथ ही इसमें जरुरी सुधार की ओर भी इशारा किया है. इधर नियोजन नीति को हाईकोर्ट में झटके के बाद राज्य में युवाओं के बीच काफी नाराजगी देखी जा रही है. यही कारण है कि यूपीए उम्मीदवार बजरंग महतो के नामांकन के वक्त भी कांग्रेसी नेताओं को इन छात्रा के विरोध का सामना करना पड़ा था, हालत इतनी खराब हो गयी थी कि इन नेताओं को तत्काल रामगढ़ छोड़ना पड़ा था.
कांग्रेस के अन्दर की गुटबाजी
यहां यह भी बता दें कि रामगढ़ की यह सीट कांग्रेस की है और कांग्रेस के अन्दर की गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही. हालत यह है कि ऐन चुनाव से पहले कांग्रेस को अपने कार्यकर्ताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलग्न रहने के आरोप में बाहर निकालना पड़ रहा है, इसके बाद भी कांग्रेस के अंदर का विवाद थमता नहीं दिख रहा. माना जाता है कि इन्ही विषम राजनीतिक परिस्थितियों में सीएम हेमंत को रामगढ़ विजय की कमान खुद ही उठानी पड़ रही है. अब देखना यह होगा कि इसका परिणाम क्या आता है, यदि इस बार भी यूपीए खेमा अपनी सीट को बचाने में सफल रहता है तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि फिलहाल झारखंड में भाजपा को लम्बे इंतजार की जरुरत है.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
4+