सिंह मेन्शन की राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में कायम रहेगा रघुकुल का जलवा या रागनी सिंह पहली बार बनेगी विधायक
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धनबाद(DHANBAD) : झरिया विधानसभा को लेकर चुनावी लड़ाई तेज होती जा रही है. कांग्रेस उम्मीदवार विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने नामांकन कर दिया है. भाजपा की ओर से उम्मीदवार बनाई गई रागिनी सिंह सोमवार को नामांकन करेंगी. सवाल किया जा रहा हैं कि सिंह मेंशन का राजनीतिक वर्चस्व 2024 में कायम रहेगा या रघुकुल का जलवा फिर चलेगा. क्या रागिनी सिंह पहली बार झरिया से विधायक बनेगी या उनकी देवरानी फिर चुनाव जीतेंगी. धनबाद की झरिया सीट को लेकर परिवार के बीच लड़ाई कोई नई नहीं है. 2014 में भी दो चचेरे भाई आमने-सामने थे. 2019 में जेठानी और देवरानी के बीच चुनावी जंग हुई, जिसमें पूर्णिमा नीरज सिंह चुनाव जीत गई.
झरिया में इस बार भी चुनावी कुरुक्षेत्र फिर से सजने लगा है
झरिया में इस बार भी चुनावी कुरुक्षेत्र फिर से सजने लगा है. झरिया से मौजूदा विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह कांग्रेस से मैदान में हैं, तो बीजेपी से रागिनी सिंह चुनावी मैदान में उतरी है. वैसे तो पार्टी बदलकर कई उम्मीदवार झारखंड के अन्य सीटों पर आमने-सामने हैं, लेकिन झरिया सीट पर एक ही परिवार की दो बहुओं के बीच चुनावी फाइट है. 2019 में भी पूर्णिमा नीरज सिंह और रागिनी सिंह के बीच चुनावी मुकाबला हुआ था. जिसमें पूर्णिमा नीरज सिंह चुनाव जीत गई थी. झरिया सीट पर सूर्यदेव सिंह परिवार का दबदबा रहा है. 1977 से लेकर 1991 तक वह स्वयं झरिया के विधायक चुने गए. दो बार उनकी पत्नी कुंती सिंह भी विधायक रही. तो एक बार उनके बेटे संजीव सिंह झरिया से विधायक चुने गए. 2019 में पूर्णिमा नीरज सिंह झरिया से विधायक चुनी गई.
रघुकुल का प्रतिनिधित्व पूर्णिमा नीरज सिंह कर रही है
फिलहाल सिंह मेंशन की बागडोर रागिनी सिंह संभाल रही हैं तो रघुकुल का प्रतिनिधित्व पूर्णिमा नीरज सिंह कर रही है. 1977 के बाद से अगर बात की जाए तो सूर्यदेव सिंह झरिया विधानसभा से चार बार विधायक रहे. उनके निधन के बाद दो बार उनकी पत्नी और एक बार उनका बेटा विधायक रहे. उनके भाई बच्चा सिंह भी विधायक रहे. 2019 के विधानसभा चुनाव में पूर्णिमा नीरज सिंह को 79,786 वोट मिले थे. 2024 का चुनाव फिर आ गया है. इसके पहले 2024 में लोकसभा का चुनाव भी हुआ. लोकसभा चुनाव में झरिया विधानसभा से कांग्रेस पिछड़ गई और भाजपा को यहां से लीड मिली. अब 2024 विधानसभा चुनाव की तैयारी है और झरिया सीट निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण सीट होगी. वैसे, झरिया की भौगोलिक बनावट भी विचित्र है. राजा के शहर झरिया की बूढ़ी हड्डियां आज आठ-आठ आंसू बहा रही है.
झरिया की राजनीति कर कई बन गए मंत्री
यह कहना गलत नहीं होगा कि झरिया की राजनीति कर कई लोग राज्य से लेकर केंद्र तक मंत्री बन गए. मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन इसका लाभ झरिया की बूढ़ी हड्डियों को नहीं मिला. आज झरिया प्रदूषण से कराह रही है. झरिया की जनता बूंद बूंद पानी के लिए तरस रही है. झरिया के रैयत पुनर्वास के लिए प्रयास कर रहे है. झरिया का संशोधित मास्टर प्लान कैबिनेट से पारित नहीं हुआ है. नतीजा हुआ कि एक लाख से कुछ अधिक लोगों का पुनर्वास ठप पड़ गया है. झरिया में टकराव की राजनीति भी खूब चलती है. यह राजनीति आज से नहीं, बल्कि बहुत पहले से चलती आ रही है. एक समय तो झरिया की हैसियत कुछ ऐसी थी कि झरिया से ही लोग धनबाद को जानते थे. लेकिन आज यह गौरवशाली झरिया सुविधाओं की मांग कर रही है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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