टीएनपी डेस्क: झारखंड में इस वक्त चुनाव का माहौल है. विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो चुका है. दूसरे चरण का मतदान 20 नवंबर को होने वाला है. 18 की उम्र से लेकर बड़े-बुजुर्ग इस लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा ले रहे हैं और बढ़-चढ़कर वोट देने जा रहे हैं. वहीं, इनमें कुछ ऐसे भी वोटर हैं जिन्होंने पहली बार वोट दिया है और वोट देने के बाद उंगली पर लगी नीली स्याही के साथ फोटो क्लिक कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर मतदान करने का प्रूफ दे रहे हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर वोट देने के बाद उंगली पर नीली स्याही क्यों लगाई जाती है. आखिर वोट का नीली स्याही से क्या लेना-देना है.
वोट देने के बाद मतदाता के बाएं हाथ की तर्जनी उंगली पर नीली स्याही लगाई जाती है. जिसे देखकर पता चल जाता है कि उसने वोट दिया है. मतदाता की उंगली पर लगी यह नीली स्याही 72 घंटों तक रहती है. लेकिन उंगली पर लगी ये नीली स्याही सिर्फ प्रूफ की तरह काम नहीं करती है बल्कि यह किसी भी व्यक्ति को एक से ज्यादा बार वोट देने से रोकती है. ताकि किसी तरह की भी धांधली न हो पाए. लंबे समय से भारत में चुनाव के दौरान इस स्याही का इस्तेमाल किया जा रहा है. आइए जानते हैं इस स्याही का इतिहास.
नीली स्याही का इतिहास
नीली स्याही का इतिहास तब का है जब साल 1951-52 में देश में पहली बार चुनाव हुआ था. इस चुनाव में कई लोग ऐसे थे जिन्होंने अन्य व्यक्ति के स्थान पर भी मतदान किया था. वहीं, कुछ ऐसे थे जिन्होंने एक से अधिक बार वोट डाला था. जब इस बात का पता चुनाव आयोग को लगा तो इस समस्या का हल निकालने के लिए विकल्पों पर विचार-विमर्श किया गया. जिसके बाद चुनाव आयोग ने वोटर की उंगली पर एक निशान बनाने का समाधान निकाला. ताकि इस बात का पता लग सके कि उसने पहले मतदान किया है या नहीं. लेकिन इसमें एक मुश्किल आ रही थी कि मतदाता कि उंगली पर बनने वाला निशान तुरंत न हट जाए.
जिसके बाद इस समस्या का समाधान निकालने के लिए फिर चुनाव आयोग ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) से संपर्क किया. चुनाव आयोग के कहने पर नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) ने एक ऐसी अमिट स्याही को तैयार किया जिसे कोई भी पानी या किसी केमिकल से नहीं हटा सकता. इस अमिट स्याही को बनाने के लिए नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) ने इसका ऑर्डर मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी (Mysore Paints and Varnish Limited, MPVL) को दिया. तब से लेकर आज तक इस स्याही को मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी ही बनाते आ रही है.
कब हुआ था पहली बार इस्तेमाल
मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी द्वारा बनाए गए इस स्याही का इस्तेमाल पहली बार साल 1962 में हुए चुनावों में किया गया था. उस दौरान चुनाव बैलेट पेपर से हुआ करते थे. ऐसे में किसी भी मतदाता को बैलेट पेपर देने के दौरान उनकी उंगली पर निशान बनाया जाता था. उसके बाद ही बैलेट पेपर दिया जाता था. अगर किसी भी व्यक्ति के उंगली पर पहले से निशान रहता था तो उसे बैलेट पेपर नहीं दिया जाता था. वहीं, तब से लेकर आज तक हर चुनाव में इस स्याही का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस अमिट स्याही का निशान मतदाता की उंगली पर लगभग 15 दिनों तक रहता है.
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