धनबाद(DHANBAD) : कोल्हान के टाइगर पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन और झारखंड आंदोलनकारी लोबिन हेंब्रम का उपयोग भाजपा सधी हुई राजनीति के तहत करने का "फुल प्रूफ" प्लान बनाया है. जानकारी के अनुसार चंपाई सोरेन और लोबिन हेंब्रम को भाजपा 28 आदिवासी सीटों को साधने के साथ-साथ कोल्हान और संथाल परगना में भी अपनी पकड़ मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है.जानकारी निकल कर आ रही है कि चंपाई सोरेन और लोबिन हेंब्रम एक साथ संथाल परगना में कार्यक्रम करेंगे. संथाल परगना के कई जगहों पर मांझी परगना यानी ग्राम प्रधानों के सम्मेलन को दोनों नेता संबोधित कर सकते है. सभा में दोनों नेता यह बताने की कोशिश करेंगे कि उन लोगों ने झारखंड मुक्ति मोर्चा को क्यों छोड़ा. साथ ही आदिवासियों को समझाने की कोशिश करेंगे कि भाजपा ही आदिवासियों के हित की पार्टी है. यह भी हो सकता है कि ग्राम प्रधानों से सीधा संवाद कर दोनों नेता झामुमो के मूल मंत्र जल, जंगल और जमीन से विमुख होने का आरोप लगा सकते है.
संथाल के निवासियों को उनके हित से वंचित करने की बात भी कह सकते है. वैसे, कहा जाता है कि लोबिन हेंब्रम भाजपा को लेकर पूरे संथाल में यात्रा की शुरुआत करेंगे और संथाल के साथ-साथ झारखंड के आदिवासी समाज में फैली भाजपा के प्रति फ़ैली कथित गलतफहमी को दूर करने की भी कोशिश कर सकते है. झारखंड में एक अनुमान के अनुसार अभी 28% आदिवासी रह गए हैं और उन्हें मजबूत करने के लिए भाजपा की योजनाओं का खुलासा कर सकते है. बता दें कि झारखंड में 28 आदिवासी आरक्षित सीटें हैं, यही सीटें हैं, जो झारखंड में सत्ता के द्वार खोलती है. फिलहाल भाजपा के पास केवल 28 में से दो सीट है. 2019 में इन सीटों के परिणामों ने भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया था और झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी थी. इस बार भाजपा 28 सीटों को लेकर काफी गंभीर है. बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया गया है. झारखंड में वहआदिवासी चेहरा है. झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन अब तो भाजपा में तीन बड़े आदिवासी नेता हो गए है.
बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और चम्पाई सोरेन. लोबिन हेंब्रम भी आंदोलनकारी रहे हैं, लेकिन अब वह भी भाजपा में शामिल हो गए है. राजमहल से तो उन्होंने निर्दलीय लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन अपेक्षा के अनुरूप उन्हें समर्थन नहीं मिला. जो भी हो लेकिन इतना तो तय माना जा रहा है कि भाजपा में चंपाई सोरेन और लोबिन हेंब्रम मुखौटा बनकर कोल्हान और संथाल परगना में भाजपा का झंडा बुलंद करेंगे. चुनाव परिणाम में इसका क्या असर होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. 2019 के चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा को आदिवासी सीटों का पूरा साथ मिला. नतीजा हुआ कि 20 सीटों वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा 30 के आंकड़े तक पहुंच गया. इस लंबे छलांग में झामुओं को आदिवासियों का पूरा साथ और समर्थन मिला. 2024 में भी सत्ता की कुंजी आरक्षित सीटों के पास ही होगी. झारखंड में 81 विधानसभा सीट है ,जिन में 28 सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है, 44 सामान्य सीट हैं जबकि 9 शेड्यूल कास्ट के लिए आरक्षित है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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