देवघर (DEOGHAR): 10 अप्रैल 2022 का दिन था जब चारों तरफ रामनवमी का धूम मचा हुआ था. पूरा वातावरण भक्तिमय हुआ पड़ा था तभी शाम के वक़्त त्रिकुट रोपवे में चीखने चिल्लाने की आवाज सुनाई देने लगी. दरअसल रोपवे का रोप टूटने से कई ट्रॉलियां हवा में लटक गई जबकि कई ट्रॉली टूट कर आसमान से नीचे गिर गई थी. जमीन से 800 मीटर ऊपर ट्रॉलियों में दर्जनो सैलानी हवा में लटक कर अपनी जान की दुआ भगवान से मांग रहे थे. देवघर जिला प्रशासन ने स्थिति को संभालते हुए मदद के लिए सरकार से गुहार लगाई थी. तब राज्य सरकार के निवेदन पर केंद्र सरकार द्वारा सेना भेजा गया था. हवा में 44 जिंदगी लटकी हुई थी. एयरफोर्स, आर्मी,एनडीआरएफ,आइटीबिटी और स्थानीय पुलिस और लोगों की मदद से देश का सबसे कठिन रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया था.सभी की मेहनत रंग लाई. हालांकि इस दुर्घटना में तीन को अपनी जान गवानी पड़ी थी.
दो साल से बंद है रोपवे
देवघर तीर्थ नगरी होने के अलावा यहां कई ऐसे मनोरम स्थल जहाँ सैलानियों का सालों भर आना जाना लगा रहता. इसी में से एक है त्रिकुट पर्वत. चारों ओर से जंगलों से घिरा यह क्षेत्र सैलानियों की पहली पसंद मानी जाती आ रही है. यही कारण है कि पर्यटकों को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2009 में यहाँ रोपवे स्थापित करने का निर्णय सरकार द्वारा लिया गया. करोड़ो रूपये खर्च कर इसका संचालन के लिए कोलकाता की एक कंपनी को दिया गया. देवघर का यह रोपवे झारखंड का एकलौता है. इस रोपवे का आनंद उठाने बड़ी संख्या में सैलानियों का आवागमन प्रतिदिन होता था. जिससे पहाड़ के नीचे दर्जनों दुकानदार अपना सहित परिवार का भरण पोषण किया करते थे. लेकिन आज दो वर्ष हो गए रोपवे हादसा की.हादसा के बाद रोपवे का संचालन पूरी तरह बंद कर दी गई है. रोपवे का संचालन नही होने से पिछले दो वर्षों से यहां सैलानियों का आवागमन न के बराबर हो रहा है. स्थानीय लोग अब जल्द से इसे चालू करने की मांग सरकार से कर रहे हैं.
जंगल में लग रही है आग
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर त्रिकुट पहाड़ को प्रकृति ने दोनों हाथों से नवाज़ा है. कश्मीर घाटी के मनोरम दृश्य का अहसास करता इसका प्राकृतिक सौंदर्य सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता था. बादलों की गोद में बैठ कर प्रकृति का आनंद लेने सैलानी यहां रोप वे के जरिये पहाड़ की चोटी का सफ़र करना नहीं भूलते थे.सुबह से शाम इस क्षेत्र में रौनक ही रौनक लगी रहती थी. इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में बंदरों ने अपना आशियाना बना लिया था. यहाँ आने वाले पर्यटक इन बंदरो को भोजन भी देते थे. पर्यटक और बंदर के कारण यहाँ का जंगल भी सुरक्षित रहता था. लेकिन दो वर्ष पूर्व हुए रोपवे हादसा के बाद पर्यटकों की संख्या शून्य हुई और बंदर अपनी भूख मिटाने के लिए शहर की ओर रुख करने लगे. नतीजा है कि अब इस क्षेत्र पर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है. इन्हीं शरारती तत्वों के द्वारा जंगल में आग लगा कर बेशकीमती पेड़ो की कटाई भी की जा रही है. पिछले दो दिनों से त्रिकुट पहाड़ के जंगल मे आग लगी हुई है. जिसे वन विभाग द्वारा बुझाने का हरसंभव कोशिश की जा रही है. जंगल में आग न लगे इसके लिए वन विभाग को सकारात्मक पहल की आवश्यकता है.
रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा
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