जिस बीसीकेयू को एके राय ने 52 सालों तक सहेज कर रखा ,उसमें क्यों हुई टूट ,आप भी जानिए


धनबाद(DHANBAD) | जिस बिहार कोलियरी कामगार यूनियन(बीसीकेयू ) को पूर्व सांसद व प्रख्यात चिंतक एके राय 52 सालों तक सहेज कर रखा, वह यूनियन अब टूट गई है. हालांकि पूर्व सांसद बासुदेव आचार्य इसे फिर से एक करने की कोशिश में लगे हुए हैं,6 तारीख को मासस की इस मामले पर बैठक है , फिर भी यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आखिर तीन साल के भीतर ही क्या वजह रही कि उनके कट्टर अनुयायियों में मतभेद हो गया और यूनियन टूट गई. जानकार सूत्रों के अनुसार यूनियन टूटने की मुख्य वजह 'पावर की लड़ाई' रही.
पावर की लड़ाई में कोई पीछे हटाने को तैयार नहीं था
इस पावर की लड़ाई में कोई दबने को तैयार नहीं था. नतीजा हुआ कि यूनियन बट गई. आपको बता दें कि एके राय जब तक जीवित रहे ,तब तक वह अध्यक्ष रहे और सीपीएम के एस के बक्शी महासचिव रहे. विचार भिन्नता के बावजूद यूनियन में कभी खटास नहीं आया लेकिन राय दा और बक्शी दा के निधन के बाद यह सवाल उठने लगा कि शहरी और कोलियरी क्षेत्र में सीपीएम का जनाधार नहीं है. ऐसी हालत में सीपीएम के नेताओं को पद देना सही नहीं है. इस बात पर बहुत दिनों तक मंथन चला. प्रश्न किए जा रहे थे कि जब सीपीएम का जनाधार है ही नहीं तो उसे पद देने का क्या औचित्य है. पिछले साल ही एस के बक्शी का निधन हुआ. इसके बाद सीपीएम के नेता आजाद हो गए और खुलकर पावर का खेल खेलने लगे.
सीपीएम के लोग चाह रहे थे कि अध्यक्ष उनकी पार्टी का हो
सीपीएम के लोग अध्यक्ष पद की कुर्सी मांग रहे थे , जो कि मासस नेताओं को पच नहीं रहा था. यह भी कहा जाता है कि बिहार कोलियरी कामगार यूनियन में अभी एक लॉबी हावी हो गई है. उस लॉबी के आगे मासस के बड़े-बड़े नेता भी बहुत कुछ करने की स्थिति में नहीं है. इस लॉबी के कुछ लोग तो ऐसे हैं जो कई दशकों से बीसीसीएल वेलफेयर बोर्ड के मेंबर हैं लेकिन उनका दायरा सीमित है और वह उसे बाहर निकलना भी नहीं चाहते है. इसके अलावा यह लॉबी यह भी नहीं चाहती है कि बिहार कोलियरी कामगार यूनियन में अन्य लोगों का प्रवेश हो. चुकी बहुत दिनों से यह पद और पावर की सुविधा भोग रहे हैं ,इसलिए उन्हें खतरा है कि अगर बाहर के लोग आए तो उनका कद छोटा हो सकता है.
रामगढ़ के सम्मेलन में यूनियन दो भागों में बंट गई
यही वजह है कि रामगढ़ के सम्मेलन में यूनियन दो भागों में बंट गई. आपको बता दें कि 70 के दशक में एके राय ने बिहार कोलियरी कामगार यूनियन का गठन किया था. उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा भी इस यूनियन के साथ था लेकिन बाद में वह अपना अलग यूनियन बना लिया. 2019 में एके राय का निधन हो गया और 2021 में एस के बक्शी बख्शी भी नहीं रहे. इसके बाद ही सब बतंगड़ शुरू हुई ,जो यूनियन में टूट का कारण बानी. आपको यह भी बता दें कि बहुत लोगों को मालूम नहीं है कि एके राय 1967 में सीपीएम के टिकट पर ही पहली बार सिंदरी विधानसभा से चुनाव जीते थे लेकिन बाद में 'डिफरेंस आफ ऑपिनियन' की वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया और मार्क्सवादी समन्वय समिति नामक पार्टी बनाई.
राय दा का सीपीएम से लगाव अंतिम दिनों तक रहा
यही कारण था कि राय दा का सीपीएम से लगाव अंतिम दिनों तक बना रहा और जब तक एस के बख्शी जीवित रहे ,सब कुछ पटरी पर चलता रहा. बात तब बिगड़नी शुरू हुई जब दोनों इस दुनिया में नहीं रहे. आपको यह भी बता दें कि एके राय पहली बार 1977 में जेल में रहते हुए सांसद का चुनाव जीते थे. उसके बाद में 1980 और 1989 में धनबाद से सांसद चुने गए. उस समय झारखंड बिहार का ही अंग था. इसके पहले एके राय सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से 1967, 1969 और 1972 में विधायक का चुनाव जीते थे. एके राय का जन्म सपुरा नामक गांव में, जो कि अभी बांग्लादेश में है, हुआ था. कोलकाता यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियर की डिग्री लेने के बाद 1961 में सिंदरी के पीडीआईएल में नौकरी ज्वाइन की और उसके बाद नौकरी से इस्तीफा देकर मजदूर आंदोलन से जुड़ गए और ताह जिंदगी मजदूरों की सेवा में लगे रहे. अभी यह यूनियन बीसीकेयू (सीपीएम) और बीसीकेयू (मासस) के नाम से है.
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