टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- नाबालिगों के साथ यौन उत्पीड़न रोकने के लिए पोक्सो एक्ट बना है. लेकिन, यह कानून संरक्षण देने के साथ-साथ दोषियों को कड़ी सजा भी देता है. लेकिन, झारखंड में पीड़िता के पूर्व में दिए बयान के पलटने से इसके आरोपी बरी होकर छूट जा रहे हैं. जिसके चलते कानून विशेषज्ञों की माने तो वसूली का धंधा पोक्सो एक्ट बनता जा रहा है. झारखंड में अदालतों के सामने ये एक समस्या आ रही है.
एक हफ्ते के अंदर आठ आरोपी बरी
पोक्सो एक्ट के तहत एक हफ्ते के अंदर आठ आऱोपी छूट गये, इसकी वजह पीड़िता के पूर्व के दिए बयान से पलटना है. सभी आरोपी दुष्कर्म की सजा जेल में काट रहे थे. इनमे आठ में से दो मामले ऐसे थे, जिसमे पोक्सो कोर्ट ने सिर्फ चार हफ्ते में फैसला सुनाया. पीड़िता चार से पांच महीने में ही अपने बयान से मुकर गई, जिसके चलते आरोपी बरी हो गये.
इस साल 177 मामलों में चार्जशीट दाखिल
इस साल सिविल कोर्ट रांची में पोक्सो एक्ट के तहत 177 मामले में जांच अधिकारियों ने चार्जशीट दाखिल की. इनमे से 77 मामलो में फैसला भी आ चुका है. अभी वर्तमान में लगभग 100 मामले लंबित है. देखा जा रहा है कि जिस आरोप को लेकर थाने में पीड़िता और परिजन की तरफ से प्राथमिकी दर्ज की जाती है. अभियोजन पक्ष आरोप को स्थापित करने में नाकामयाब हो जाता है. जिसके चलते आरोपियों को छोड़ना पड़ता है. ये लगातार देखने को मिल रहा है.
क्या है पोक्सो एक्ट
पोक्सो एक्ट का फुल फॉर्म Protection of Children Against Sexual Offence है. यह बच्चों के साथ होने वाले यौन दुराचारों और अपराधों की सुरक्षा संबंधी कानून के तहत देखा जाता है. भारत सरकार के द्वारा बनाए गये इस कानून के तहत बच्चों औऱ नाबालिगों के साथ यौन-शौषण पर प्रभावी अंकुश लगाने. इसके साथ ही यौन-शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी के खिलाफ असरदार तरीके से बचाव करने के प्रावधान किए गये हैं. पोक्सो एक्ट के तहत बच्चो और नाबालिगों के साथ गंदी हरकत करने, प्राइवेट पार्ट को छूने या अपने प्राइवेट पार्ट को टच करवाना, बच्चों को अश्लील फिल्म या पोर्नोग्राफिक कंटेट दिखाना आता है. ऐसा अगर कोई करता है तो उस पर पॉक्सो एक्ट लागू होता है.
गलत इरादे से छूना भी अपराध
इस एक्ट की महत्वपूर्ण बात ये है कि बच्चों के शरीर को गलत इरादे से छूना या बच्चों के साथ गलत भावना से की गयी सभी हरकतें इस एक्ट में बलात्कार की श्रैणी में रखी गई है. इन सभी अपराधों में कड़ी सजा का प्रावधान है. इसमे बच्चों के यौन शोषण के मामले में मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने की दिशा में साल 2019 में अधिनियम की समीक्षा और इसमे संशोधन किया गया है. पोक्सो एक्ट अपराध की गंभीरता के अनुसार सजा का प्रावधान करता है.
लिंग के अनुसार कानूनों में भेदभाव नहीं
पोक्सो एक्ट के तहत इसमे लिंग के अनुसार भेदभाव नहीं किया जाता है. अधिनियम के मुताबिक लड़के-लड़कियां दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं. इस सिद्धांत के अनुरुप सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण से सुरक्षा का अधिकार है. इस एक्ट में एक खास बात ये भी है कि पोक्सो अधिनियम के तहत रिपोर्ट नही करना भी एक विशिष्ट अपराध बना दिया गया है. इससे बच्चों से संबंधित यौन अपराधों को छिपाना तुलनात्मक तौर पर बेहद ही कठीन है.
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