धनबाद(DHANBAD):धनबाद में 1971 का लोकसभा चुनाव आज भी लोगों को रोमांचित करता है. तब के समय में हेलीकॉप्टर दिखना भी अनोखा था और उस पर सफर करना तो सपना था ही. 1971 के लोकसभा चुनाव में धनबाद की तस्वीर कुछ ऐसी बनी थी कि लोग मान रहे थे कि धनबाद में यह लोकसभा का चुनाव जनबल और धनबल के बीच है. परिणाम की लोग सिर्फ चर्चा ही नहीं बल्कि काफी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते रहे.उसे समय बर्न स्टैंडर्ड नाम की निजी कंपनी के अधीन धनबाद की कई कोयला खदानें थी. प्राण प्रसाद बर्न स्टैंडर्ड कंपनी के कर्ताधर्ता थे .लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी रामनारायण शर्मा के खिलाफ प्राण प्रसाद निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हो गए .15 प्रत्याशी मैदान में थे. प्राण प्रसाद जैसे पैसे वाले के मैदान में उतरने से कांग्रेसी खेमा परेशान हो गया था.
प्राण प्रसाद ने चुनाव प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर मंगा लिया था
बात इतनी ही नहीं, प्राण प्रसाद ने चुनाव प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर मंगा लिया था.चुनाव क्षेत्र में पर्चा गिराने के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल होने लगा.पर्चा लेने और हेलीकॉप्टर देखने के लिए लोग इंतजार करते थे .हेलीकॉप्टर जब ऊपर से गुजरता तो घर से बाहर पुरुष, महिला और बच्चे निकल जाते थे .कहा तो यह भी जाता है कि कार्यकर्ताओं को प्राण प्रसाद ने राजदूत मोटरसाइकिल प्रचार के लिए यह कह कर दी थी की जीत गए तो यह उनकी हो जाएगी. हर कोई मानकर चल रहा था कि प्राण प्रसाद धनबाद से जीत जाएंगे. उसे समय कोयलांचल की कोयला खदानें प्राइवेट कंपनियों के पास थी. 1971 के बाद ही इंदिरा गांधी की सरकार ने कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया था. 1971 का चुनाव प्रचार जिस ढंग से हुआ, वह दोबारा रिपीट नहीं हो सका.
1971 का दृश्य कभी दोबारा धनबाद के इतिहास में लौट कर नहीं आया
बताने वाले कहते हैं कि कोयला खदानों को बंद कर मजदूरों को प्रचार में लगा दिया गया था. लेकिन जब नतीजा आया तो प्राण प्रसाद चुनाव हार गए और कांग्रेस के रामनारायण शर्मा चुनाव जीत गए थे. जिसने भी 1971 का चुनाव देखा है, वह बहुत कुछ बताते हैं. आज हेलीकॉप्टर बहुत सामान्य बात हो गई है लेकिन उस समय हेलीकॉप्टर को देखने के लिए लोग इंतजार करते थे. प्राण प्रसाद का पर्चा हेलीकॉप्टर से पाने पर लोग अपने को धन्य महसूस करते थे .लेकिन उसके बाद फिर धनबाद में धनबल और जनबल की लड़ाई नहीं हुई .यह अलग बात है कि धनबाद में कई चुनाव में बाहुबली टकराते रहे हैं. लेकिन 1971 का दृश्य कभी दोबारा धनबाद के इतिहास में लौट कर नहीं आया.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
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