दुमका (DUMKA): आदिवासियों के विकास के लिए बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य को बनाया गया था. लेकिन राज्य बनने के 2 दशक के बाद भी राज्य के आदिवासी मुलवासी विकास की गित गाते है. ऐसा ही अगर आपकों भी विकास की हकीकत देखना है तो दुमका के कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रावासों का अवलोकन कर सकते है.
मूलभूत सुविधाओं से वंचित है अधिकांश छात्रावास
बता दें कि दुमका जिले में कल्याण विभाग द्वारा लगभग आधा दर्जन से ज्यादा छात्रावास संचालित है. कुछ छात्रों के लिए है, तो कुछ छात्राओं के लिए. लेकिन अधिकांश छात्रावास अपनी मूलभूत समस्याओं से वंचित है. समय-समय पर भवन की मरम्मती भी होती है. लेकिन किसी भी छात्रावास में रसोइया और रात्री प्रहरी की व्यवस्था नहीं है. जिस कारण छात्रावास में रहने वाले छात्रों का समय खाना बनाने में ही चला जाता है. छात्र खाना बनाने के लिए छोटा एलपीजी सिलेंडर का उपयोग करते है, यह जानते हुए की इसका उपयोग गैर कानूनी है. लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए छात्र गलत करने को विवश हैं. कई बार खाना बनाने के दौरान सिलेंडर फटने या लीक होने से छात्रावास में आग भी लगी है. कुछ छात्रा आंशिक रूप से झुलसी भी है. इसके बाबजूद आज तक रसोइया की व्यवस्था नहीं हो पाया है.
दहशत के माहौल में जीने को विवश है छात्राएं
वहीं रात्री प्रहरी की व्यवस्था नहीं रहने से खासकर छात्राएं दहशत के माहौल में जीने को विवश है. किसी भी अनहोनी की घटना से इनकार नहीं किया जा सकता. प्रत्येक वर्ष छात्रों की संख्या बढ़ रही है. लेकिन उस अनुपात में छात्रावास नहीं बन पाया है. नतीजा छात्रावास में रहने वाले छात्र नारकीय जीवन जीने को विवश है.
डीसी को सौपा गया ज्ञापन
इसी मांगों को लेकर छात्र समन्वय समिति द्वारा समय-समय पर सड़को पर उतर कर आंदोलन भी किया जाता है. लेकिन आज तक आश्वासन के सिवाय इन्हें कुछ नहीं मिल पाया है. लेकिन अब छात्र समन्वय समिति आर-पार की लड़ाई के मूड में है. आज शनिवार को काफी संख्या में छात्र समाहरणालय पहुंच कर डीसी के नाम ज्ञापन सौपा. ज्ञापन के माध्यम से रसोइया और रात्री प्रहरी की व्यवस्था के साथ नए छात्रावास की मांग की है. इसके लिए प्रसासन को 10 दिनों का अल्टीमेटम भी दिया है. छात्र नेता श्यामदेव हेम्ब्रम और राजीव बास्की का कहना है कि अगर 10 दिनों में समस्या का समाधान नहीं हुआ तो सभी छात्रावास में तालाबंदी करते हुए छात्र समाहरणालय परिसर में अनिश्चितकालीन धरना पर बैठ जाएंगे. जब तक समस्या का समाधान नहीं होगा तब तक समाहरणालय परिसर में ही खाना बनाने और खाने के साथ अपनी पढ़ाई को जारी रखेंगे.
चुनाव जितने के बाद सरकार भूल जाते है अपने वादे
सरकार किसी की भी हो, सभी आदिवासी हित की बात करती है. चुनाव के वक्त लंबे लंबे वायदे किये जाते है. लेकिन चुनाव जीतते और सत्ता में आते ही अपने वायदों को भूल जाते है. सवाल उठता है कि कल्याण छात्रावास में आदिवासी छात्र रहते हैं तो फिर सरकार के स्तर से कल्याण छात्रावास के प्रति उदासीनता क्यों? कहा जाता है छात्र देश के भविष्य होते हैं तो फिर इन छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ क्यों किया जाता है. अभी छात्र गांधीवादी तरीके से समय समय पर इन मांगों को लेकर आंदोलन करते रहे हैं. लेकिन जिस तरह छात्र समन्वय समिति ने बैठक के बाद डीसी के नाम ज्ञापन सौपकर 10 दिनों का अल्टीमेटम देकर अपनी मंशा जाहिर कर दी है. कभी भी इन छात्रों के सब्र का बांध टूट सकता है.
रिपोर्ट. पंचम झा
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