धनबाद(DHANBAD): " रैट होल माइनिंग" धनबाद कोयलांचल के लिए कोई नई बात नहीं है. यहां तो रैट होल कर मुहाने खोल लिए जाते हैं और फिर उसमें से कोयले का अवैध खनन होता है. फिलहाल अभी देश में " रैट होल माइनिंग" की खूब चर्चा है. चर्चा हो भी क्यों नहीं, जब सारी अत्याधुनिक तकनीक फेल कर गए तो इस देसी तकनीक ने 41 मजदूरों को नया जीवन दे दिया. देश सहित 41 परिवारों को खुशियां लौटा दी. उत्तराखंड के उत्तरकाशी में जब देश-विदेश की सारी अत्याधुनिक तकनीक फेल कर गई, अमेरिकन ऑगर मशीन खड़ी हो गई, तब रैट होल खनिकों को लगाया गया और अंततः 41 फंसे मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया. " रैट होल माइनिंग" का काम कोयला उद्योग में भी चलता है. इस तकनीक पर रोक के बाद वैध कोयला खदानों में तो नहीं लेकिन अवैध कोयल खदानोंमें इसका उपयोग कोयला चोर करते है. सुरंग के सहारे लोग अंदर तक जाते हैं ,कोयला काटते हैं और फिर उसे ट्रॉली या टोकरी के सहारे बाहर निकालते है. धनबाद कोयलांचल में अवैध कोयला खनन के लिए भी कोयला चोर रैट होल बनाते हैं और उसके सहारे कोयला निकालते है.
तकनीक के विशेषज्ञ मुन्ना कुरैशी ने आखिरी मलवा हटाया
उत्तरकाशी में इस तकनीक के विशेषज्ञ मुन्ना कुरैशी ने मलवा के आखिरी हिस्से को हटाया और उसके बाद 41 मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया. दरअसल, रेस्क्यू के 16वें दिन सोमवार को जब अमेरिकी ऑगर मशीन जवाब दे दी तो 12 सदस्य वाली टीम को बुलाया गया. सुरंग के आखिरी हिस्से को मुन्ना कुरैशी ने खोदा , उसके बाद तो फंसे 41 मजदूरों के चेहरे खिल उठे. बाहर इंतजार कर रहे लोग भी खिलखिलाने लगे. फंसे मजदूरों के परिजन भी धन्यवाद देने लगे. रैट होल माइनर्स में से कुछ ऐसे थे, जिन्होंने जाने के पहले परिवार वालों से बात की तो परिवार वालों ने जाने से मना कर दिया. लेकिन कर्तव्य बोध ने उन्हें यह काम करने को विवश किया और अंततः उन्हें सफलता मिल गई. सूचना तो यह भी आ रही है की सदस्यों ने घोषणा कर दी है कि वह लोग अपनी मिहनत का पैसा नहीं लेंगे. उन्हें इस बात की खुशी है कि इस ऐतिहासिक अभियान का वह हिस्सा बने. टीम के सदस्यों ने कहा कि हर हाल में सफलता हासिल करने का मन बनाकर उन्होंने काम शुरू किया और सफलता मिल गई.
सरकार ने की है पुरस्कृत करने की घोषणा
हालांकि उत्तराखंड सरकार ने इस टीम में शामिल सभी लोगों को 50-50 हज़ार पुरस्कार स्वरूप देने का घोषणा की है. इस तकनीक में एक आदमी खुदाई करता है, दूसरा मालवा इकट्ठा करता है और तीसरा उसे बाहर निकालने के लिए ट्रॉली पर लोड करता है. रैट होल माइनिंग एक ऐसा सिस्टम है, जिसमें कुछ खनिक कोयला निकालने के लिए संकरे बिलों में जाते है. हालांकि यह पद्धति विवादित और गैर कानूनी भी है. दरअसल बहुत पहले यह प्रथा पूर्वोत्तर के राज्य मेंंघालय में प्रचलित थी. खाली गड्ढे खोदकर 4 फीट चौड़ाई वाले उन सकरी जगहों पर लोग में उतरते थे . उन जगहों में केवल एक व्यक्ति के जाने की जगह होती थी. बांस की सीढ़ियों की मदद से नीचे उतरते थे . फिर फावड़ा और टोकरियों आदि का उपयोग करके मैन्युअल रूप से कोयला निकालते थे. इस तरीके से होने वाली खुदाई से सुरक्षा खतरे में रहती थी .
2014 में लगा दी गई है पाबन्दी
2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने इस पद्धति पर सुरक्षा के ख्याल से पाबंदी लगा दी. लेकिन उत्तरकाशी में जहां सब तकनीक फेल कर गए। वहां यह देसी तकनीक काम आ गई और 41 मजदूरों की जान बच गई. यह अलग बात है कि मजदूरों के बचाव के लिए देश और विदेश के एक्सपर्ट पहुंचे हुए थे लेकिन अंततः रैट होल खनिक ही काम आये. ECL की महावीर कोलियरी में भी जब सारे तकनीक फेल कर गए थे, तो देसी तकनीक ने ही कमाल दिखाते हुए फंसे 65 मजदूरों को बाहर निकाला था. इस रेस्क्यू ऑपरेशन पर तो अब फिल्म भी बन गई है. आगे चलकर उत्तरकाशी रेस्क्यू ऑपरेशन पर भी फिल्म बन सकती है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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