रांची (RANCHI): झारखंड में मिजल्स और रूबेला नामक बीमारी का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है. कई जिलों में इसके मरीज पाए गए हैं. इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग सतर्क हो गया है. राज्य के कई जिलों में इससे संबंधित टीका लगाने का अभियान तेज करने का निर्देश दिया गया है. स्वास्थ्य विभाग की ओर से सभी जिलों के उपायुक्तों को पत्र लिखकर एमआर वैक्सिन को बच्चों में लगाने के अभियान को तेज करने को कहा गया है. अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने सभी उपायुक्तों को पत्र लिखकर इस अभियान को तेज करने के लिए कहा गया है. पत्र में यह कहा गया है कि 2023 तक भारत सरकार ने यह तय किया है कि पूरे देश से मिजल्स और रूबेला नामक बीमारी खत्म कर दी जाए. इसके लिए जिलों में टीकाकरण कवरेज 95% तक कर देने का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन कई जिलों में यह अभियान थोड़ा सुस्त पड़ा हुआ है. भारत सरकार के संकल्प को पूरा करने के लिए झारखंड के हिस्सों में भी यह टीकाकरण होना जरूरी है.एमआर वैक्सीन लगाने का काम रांची समेत कई जिलों में सुस्त पड़ा हुआ है. इन जिलों में विशेष तौर पर ध्यान देने की जरूरत है. पत्र में जानकारी का उल्लेख है कि जहां कहीं भी यह बीमारी फैली है वहां के सैंपल से यह पता चला है कि वहां टीकाकरण नहीं हो पाया है. टीकाकरण कार्य में गढ़वा, गुमला, पलामू, साहिबगंज, सरायकेला और पश्चिमी सिंहभूम ने बढ़िया काम किया है यहां 100 फ़ीसदी टीकाकरण अभियान चला है. इस बात पर असंतोष जताया गया है कि रांची, बोकारो, देवघर, धनबाद, दुमका, गिरिडीह, गोड्डा, जामताड़ा और पाकुड़ में यह टीकाकरण अभियान संपूर्ण स्तर पर नहीं हो पाया है. यह विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इन जिलों के उपायुक्तों को इस संबंध में सख्त निर्देश दिए गए हैं.
जानिए क्या है मीजिल्स व रूबेल वायरस
खसरा और रूबेला दो अलग-अलग वायरल रोग हैं. आम तौर पर, रूबेला खसरे की तुलना में हल्के संक्रमण का कारण बनता है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप गंभीर जन्म दोष होते हैं. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि रूबेला खसरा के समान नहीं है. हालांकि दोनों रोगों में लाल चकत्ते सहित समान विशेषताएं हैं, लेकिन यह दोनों अलग हैं. रूबेला खसरा जितना संक्रामक नहीं है. हालांकि, यह गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकता है यदि गर्भवती होने पर एक महिला संक्रमण विकसित करती है. खसरा रोग संक्रामक वायरस के कारण होने वाला एक संक्रमण रोग है. यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बड़ी आसानी से फैल सकता है. खसरा होने पर इसमें पूरे शरीर पर लाल चकत्ते उभर आते हैं. खसरा होने पर यह लाल दाने शुरूआत में सिर पर होते हैं और फिर धीरे-धीरे पूरे शरीर पर फैल जाते हैं. वहीं रूबेला को "जर्मन खसरा" के रूप में भी जाना जाता है और यह रूबेला वायरस के कारण होता है. लोगों को आमतौर पर फैले हुए दाने, बुखार, सिरदर्द, अस्वस्थता, लसिका ग्रंथि का बढ़ना, ऊपरी श्वसन लक्षण और नेत्रश्लेष्मलाशोथ आदि होता है. दाने आमतौर पर लगभग 3 दिनों तक रहता है, लेकिन कुछ रोगियों में दाने बिल्कुल नहीं हो सकते हैं. रूबेला के साथ वयस्क महिलाओं में आर्थ्रल्जिया या गठिया अधिक होता है. रूबेला संक्रमण भी विकासशील गर्भ में विसंगतियों का कारण बन सकता है. गर्भावस्था के पहले 3 महीनों के दौरान संक्रमित हुई महिलाओं में जन्म लेने वाले शिशुओं में होने की संभावना होती है, जन्मजात से रूबेला होना, बहरापन, मोतियाबिंद, हृदय की विकृतियों, मानसिक मंदता आदि लक्षणों को दर्शाता है. यह संक्रमित व्यक्तियों के नाक और गले से स्राव के साथ छोटी बूंदों के माध्यम से फैल सकता है या रोगियों के साथ सीधे संपर्क के माध्यम से फैल सकता है. यह एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी है और रोगी को दाने निकलने के 1 सप्ताह पहले से 1 सप्ताह पहले तक अन्य व्यक्तियों को यह रोग हो सकता है.
खसरे के कितने चरण होते हैं?
खसरे के शुरू होने से लेकर खत्म होने तक इसे चार चरणों में बांटा जा सकता है यह चरण दो से तीन सप्ताह तक होते हैं, लेकिन गंभीर स्थिति होने पर चार सप्ताह तक भी चल सकते हैं. खसरे के चारों चरणों को निचे वर्णित किया गया है.
ऊष्मायन चरण या इन्क्यूबेशन -
इन्क्यूबेशन को खसरे का पहला चरण माना जाता है. इस चरण में व्यक्ति खसरे यानि खसरा वायरस के संपर्क में आता है. यह आमतौर पर खसरे के लक्षण शुरू होने से 10 से 14 दिन पहले का होता है.
प्रोड्रोमल (कैटरल) - खसरे के दूसरे चरण को प्रोड्रोमल के नाम से जाना जाता हैं. प्रोड्रोमल में यानि दुसरे चरण में खसरे के कुछ शुरूआती लक्षण दिखाई दिखाई देने लग जाते हैं. दुसरे चरण में खसरे के बुखार, घबराहट, खांसी, आंख आना
(कंजंक्टिवाइटिस - conjunctivitis) और सर्दी जुखाम जैसे लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं.
रैश या दाने का चरण- प्रोड्रोमल चरण के दो से चार दिन बाद मैकुलोपापुलर (चपटे और लाल) रैश या दाने दिखाई देने लग जाते हैं. यह खसरा का तीसरा चरण होता है और इस दौरान भी रोगी को दुसरे चरण के लक्षण दिखाई देते हैं, लेकिन यह पहले के मुकाबले बढ़े हुए दिखाई दे सकते हैं. इस दौरान आने वाला बुखार 104 से 105. 8 F (40 to 41 C) तक हो सकता है.
रिकवरी या पुनर्प्राप्ति चरण - इस चरण में आते-आते मरीज रिकवर होने लगता है. इस चरण में यानी रोगी आमतौर पर दाने आने के चार दिन बाद तक संक्रामक होते हैं. फिर धीरे-धीरे खसरा का असर कम होने लगता है. जब यह चरण आता है तो बुखार आदि जैसे लक्षण भी दिखाई देने बंद हो जाते हैं और साथ ही दानों से भी छुराकारा मिलना शुरू हो जाता है.
जानिए खसरा होने के क्या कारण है?
खसरा पैरामाइक्सोवायरस परिवार के एक वायरस के संक्रमण के कारण होता है. यह वायरस छोटे परजीवी रोगाणु होते हैं. एक बार जब आप संक्रमित हो जाते हैं, तो वायरस शरीर में मौजूद कोशिकाओं पर आक्रमण करना शुरू कर देते हैं और अपने जीवन चक्र को पूरा करने के लिए सेलुलर घटकों का उपयोग करता है. खसरा का वायरस सबसे पहले श्वसन तंत्र को संक्रमित करता है. हालाँकि, यह अंततः रक्तप्रवाह के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फैल जाता है. खसरा या मीजिल्स केवल मनुष्यों में होता है, इसके अलावा यह किसी भी दूसरे जीव में नहीं होता. विश्व भर में ऐसे 24 ज्ञात अनुवांशिक प्रकार के खसरे भी हैं जिससे यह मालूम होता यह एक अनुवांशिक रोग भी हो सकता है, हालाँकि वर्तमान समय में केवल 6 अनुवांशिक प्रकार के खसरे ही मौजूद हैं. जब एक व्यक्ति खसरे से जूझ रहा होता है तो उसके आसपास रहने वाले व्यक्तियों को भी इसके होने की काफी संभवना होती है क्योंकि यह वायरस छिकने और खासने से हवा में फ़ैल जाते हैं जो कि दुसरे व्यक्ति को बड़ी आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है. सरल शब्दों में कहा जाए तो यह एक फैलने वाली बीमारी है.
खसरे के लक्षण क्या है?
खसरे के संकेत और लक्षण वायरस के संपर्क में आने के लगभग 10 से 14 दिनों के बाद दिखाई देते हैं. खसरे के संकेत और लक्षणों में आम तौर पर निम्नलिखित शामिल हैं:
सामान्य से तेज बुखार आना
सूखी खाँसी होना
लगातार नाक बहना
गले में खरास बने रहना
आँखों में सूजन आना
मुंह में छाले- गाल की अंदरूनी परत पर मुंह के अंदर पाए जाने वाले लाल रंग की पृष्ठभूमि पर नीले-सफेद केंद्रों वाले छोटे सफेद धब्बे – जिन्हें कोप्लिक स्पॉट भी कहा जाता है.
बड़े, चपटे धब्बों से बना एक त्वचा लाल चकत्ते जो अक्सर एक दूसरे में प्रवाहित होते हैं.
त्वचा पर लाल चकत्ते या छोटे दाने फुंसी के जैसे होना खसरे का एक क्लासिक संकेत है. यह दाने 7 दिनों तक रह सकते हैं और आमतौर पर वायरस के संपर्क में आने के 14 दिनों के भीतर दिखाई देते हैं. यह आमतौर पर सिर पर विकसित होता है और धीरे-धीरे शरीर के अन्य हिस्सों में फैलता है.
खसरे के रिस्क फैक्टर क्या है?
कुछ खास कारक खसरे के जोखिम को बढ़ा सकते हैं जैसे
टीकाकरण न लिया हो- यदि आपको खसरे का टीका नहीं मिला है, तो आपको खसरे के होने की अधिक संभावना है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रा- यदि आप विकासशील देशों की यात्रा करते हैं, जहां खसरा अधिक आम है, तो आपको बीमारी होने का अधिक खतरा है.
विटामिन ए की कमी होना- यदि आपके आहार में पर्याप्त विटामिन ए नहीं है, तो आपको अधिक गंभीर लक्षण और जटिलताएं होने की संभावना है.
पांच साल की उम्र से छोटे बच्चे- बड़ों के मुकाबले खसरा वायरस छोटे बच्चों को ज्यादा चपेट में लेता है.
20 साल तक के युवा- इस उम्र तक अक्सर बच्चों को इम्यून सिस्टम सही से विकसित नहीं हो पाता है जिसकी वजह से उन्हें खरा होने का खतरा बना रहता है.
गर्भवती स्त्रियाँ- शरीर में चल रहे लगातार हार्मोनल बदलाव की वजह से गर्भवस्था के दौरान महिलाओं को खसरा होने का खतरा रहता है.
कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता- यदि किसी बीमारी से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने लग जाए तो उसकी वजह से भी खसरा हो सकता है.
खसरे से संक्रमित के संपर्क में आने से- अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति की चपेट में आ जाते हैं जो कि फ़िलहाल खसरे से जूझ रहे हैं तो ऐसे में आपको भी खसरा होने की संभवना बढ़ जाती है.
क्या खसरा हवा में फैलता है?
हाँ, यह सत्य है कि खसरा हवा में फैलता है जिसकी वजह से यह एक से दूसरे व्यक्ति में बड़ी आसानी से फ़ैल सकता है. खसरा श्वसन की बूंदों और छोटे एरोसोल कणों से हवा के माध्यम से फैल सकता है. एक संक्रमित व्यक्ति खांसने या छींकने पर वायरस को हवा में छोड़ सकता है. यह श्वसन कण वस्तुओं और सतहों पर भी बस सकते हैं. यदि आप किसी दूषित वस्तु, जैसे दरवाज़े के हैंडल के संपर्क में आते हैं, और फिर अपने चेहरे, नाक या मुँह को छूते हैं, तो आप संक्रमित हो सकते हैं. खसरे का वायरस आपके विचार से अधिक समय तक शरीर के बाहर रह सकता है. वास्तव में, यह हवा में या सतहों पर दो घंटे तक संक्रामक रह सकता है. एक अतिसंवेदनशील व्यक्ति जो खसरे के वायरस के संपर्क में आता है, उसके संक्रमित होने की 90 प्रतिशत संभावना होती है. इसके अतिरिक्त, एक संक्रमित व्यक्ति 9 से 18 संवेदनशील व्यक्तियों के बीच कहीं भी वायरस फैला सकता है.
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