टीएनपी डेस्क(TNP DESK): बदलते जमाने में बदल रही है लोगों की सोच और इसी बदते दौर में जीवन जीने का तरीका भी बदल गया है लेकिन अब तक अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है मातृत्व और उसका वात्सल्य. जी हां वो मां का प्रेम ही है जो युगों युगों से स्थिर है और हमेशा अपने अलग ही नियमों पर चलता है. ऐसे में पुराने जमाने से ही जो स्त्री मातृत्व का सुख नहीं प्राप्त कर पाती थी उसे बांझ अपशकुनी और भी न जाने कितनी सामाजिक और मानसिक यातनाओं से गुजरना पड़ता था. लेकिन शिक्षा ने इस मानसिकता को कुछ हद तक बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है परंतु फिर भी एक मातृत्व हीन स्त्री की जिंदगी बच्चे के बिना अधूरी ही रहती है. ऐसे में उनके लिए "सेरोगेसी" वरदान साबित हुई है. जो दंपति अपना बच्चा नहीं जन सकते थे वो अब सेरोगेसी के जरिए पेरेंट्स बनने का सुख सहजता से प्राप्त कर सकते हैं. आज इसी विषय पर चर्चा करेंगे कि आखिर सेरोगेसी क्या है, और कैसे आप किसी और की कोख से अपना बच्चा प्राप्त कर सकती है. जी हां सेरोगेसी के जरिए अब आसानी से आप अपना बच्चा किसी और के कोख से पैदा कर उठा सकती है मातृत्व का सुख. आईए जानते हैं क्या है सेरोगेसी
क्या है सरोगेसी?
जब एक कपल शादी के बंधन में बंधता है, तो उनका जीवन पूरी तरह बदल जाता है. लेकिन कहते हैं जीवन में सबसे बड़ा सुख तब मिलता है, जब कोई कपल माता-पिता बनता है. बच्चे के आगमन से घर में खुशियां तो आती ही हैं, साथ ही माता-पिता बनने के बाद दंपत्ति का जीवन पूरी तरह बदल जाता है. एक मां अपने बच्चे को 9 महीने तक अपने पेट में रखती हैं, और तब कहीं जाकर बच्चे का जन्म होता है. लेकिन कई दंपति ऐसे भी है जो इससे वंचित है उनके लिए सेरोगेसी बेस्ट ऑप्शन है. दरअसल, इसमें कोई कपल किसी महिला की कोख को बच्चा पैदा करने के लिए किराए पर ले सकता है. इसमें महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के जरिए किसी दूसरे कपल के लिए गर्भवती होती है. जो महिला बच्चे को जन्म देती है और जो कपल सरोगेसी करवा रहे हैं, उनके बीच एक एग्रीमेंट होता है. इसके तहत होने वाले बच्चे के कानूनन माता-पिता सरोगेसी करवाने वाला कपल ही होते हैं. सरोगेसी भी दो तरह की होती है, पहले में होने वाले पिता या डोनर का स्पर्म सरोगेसी अपनाने वाली महिला के एग्स से मैच कराया जाता है. इस सरोगेसी को ट्रेडिशनल सरोगेसी कहते हैं. इसमें सरोगेसी में सरोगेट मदर ही बॉयोलॉजिकल मदर यानी जैविक मां होती है. जेस्टेशनल सरोगेसी में सरोगेट मदर का बच्चे से संबंध जेनेटिकली नहीं होता है. इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि इसमें प्रेग्नेंसी में सरोगेट मदर के एग का इस्तेमाल नहीं होता है. सरोगेट मदर बच्चे की बायोलॉजिकल मां नहीं होती है, और वो सिर्फ बच्चे को जन्म देती है. इसमें पिता (होने वाले) के स्पर्म और मां के एग्स का मेल या डोनर के स्पर्म और एग्स का मेल टेस्ट ट्यूब के जरिए कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के यूट्रस में प्रत्यारोपित किया जाता है.
इन वजहों से हो सकती है सरोगेसी
सरोगेसी से बच्चे को जन्म देने के पीछे वैसे तो कई वजहें हो सकती हैं. लेकिन इनमें जो साफ नजर आती हैं वो हैं कपल के बच्चे न हो पाना, गर्भधारण करने से महिला की जान को खतरा आदि. जिन महिलाओं के गर्भाशय या अंडाशय में कोई समस्या होती है या किसी अन्य कारण से वह माँ बनने में असक्षम होती है, सरोगेसी के ज़रिए वह माँ बनने का सुख प्राप्त कर सकती है. सरोगेसी कई बार पुरुष के शुक्राणु की समस्या की वजह से भी करवाया जा सकता है.
सरोगेट मदर क्या है
जो महिला अपनी कोख में किसी दूसरे का बच्चा पालती है, वो सरोगेट मां कहलाती है. सरोगेसी में एक महिला और कपल के बीच एंग्रीमेंट भी होता है. इसके बाद पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता कानूनी तौर से वह कपल होते हैं जिनके लिए सरोगेसी कराई गई है. या जो बच्चे को पालते हैं. सरोगेसी प्रक्रिया को करने वाली महिला सरोगेट मदर कहलाती है. सरोगेट मदर बनने का निर्णय पूर्ण रूप से महिला की इच्छा से होता है. किसी भी तरह की जबरदस्ती करके यह फ़ैसला नहीं करवाया जा सकता है. माता-पिता और सरोगेट माँ के बीच एक अनुबंध किया जाता है कि भ्रूण बनने के बाद से लेकर शिशु के जन्म तक की देख-रेख उनकी निगरानी में होगी. साथ ही बच्चे पर केवल माता-पिता का ही हक होगा. इस प्रक्रिया में माता-पिता को इंटेंडेड पेरेंट्स कहा जाता है और यह तीसरा प्रजनन पक्ष कहलाता है.
जानिए सेरोगेसी को लेकर क्या कहता है भारत का कानून
बता दें सरोगेसी का दुरूपयोग रोकने के लिए सरोगेसी (रेगुलेशन) बिल 2019 पास करने का प्रस्ताव रखा गया है. लोकसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के द्वारा इस बिल को पेश किया गया था. इस बिल में नेशनल सरोगेसी बोर्ड, स्टेट सरोगेसी बोर्ड के गठन की बात है. वहीं सरोगेसी की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की नियुक्ति करने का भी प्रावधान है. 2016 में सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकने के लिए इस बिल को लाया गया था. मगर अब इसके नए प्रारूप को सरोगेसी रेगुलेशन बिल 2019 नाम से पेश किया गया है. सरोगेसी की अनुमति सिर्फ संतानहीन विवाहित दंपतियों को ही मिलेगी. साथ ही सरोगेसी की सुविधा का इस्तेमाल लेने के लिए कई शर्तें पूरी करनी होंगी. जैसे जो महिला सरोगेट मदर बनने के लिए तैयार होगी, उसकी सेहत और सुरक्षा का ध्यान सरोगेसी की सुविधा लेने वाले को रखना होगा.
भारत में बैन है इस तरह की सरोगेसी, सिर्फ ये कपल्स ही उठा सकते हैं फायदा
पिछले कुछ सालों में भारत में सरोगेसी शब्द का बहुत इस्तेमाल किया गया है. सिलेब्रिटीज भी सरोगेसी की मदद से बच्चे पैदा कर रहे हैं. अब भले ही सरोगेसी का इस्तेमाल बढ़ गया हो लेकिन फिर भी ज्यादातर लोगों को पता नहीं है कि सरोगेसी क्या होती है और यह भारत में लीगल है या नहीं? जब किसी मेडिकल प्रॉब्लम या प्रेग्नेंसी में कोई खतरा होने या प्रेगनेंट होने पर मां की सेहत को खतरा होने या सिंगल व्यीक्ति के पेरेंट बनने की इच्छा पर सरोगेसी की मदद से बच्चा पैदा किया जाता है. सरोगेसी में कपल्स में से मेल पार्टनर के स्पर्म और फीमेल पार्टनर के एग को फर्टिलाइज कर के सरोगेट मदर यानि किसी अन्य महिला की कोख में डाल दिया जाता है. यह पूरी प्रक्रिया भारत में कानूनी तौर पर जायज है. जब सरोगेट मदर कपल से बच्चा पैदा करने के लिए पैसे लेती है, तो इसे कमर्शियल सरोगेसी कहते हैं. हर देश में कमर्शियल सरोगेसी को लेकर अलग-अलग नियम हैं. भारत की बात करें तो यहां पर कमर्शियल सरोगेसी अवैध है. साल 2009 की 228वीं रिपोर्ट में लॉ कमीशन ऑफ इंडिया ने कानूनी मदद से सरोगेसी को वैध किया था लेकिन कमर्शियल सरोगेसी पूरी तरह से बैन रखी गई थी.
निसंतान दंपत्तियों को होता है फायदा
इनफर्टिलिटी से जूझ रहे कपल्स सरोगेसी की मदद से पेरेंट्स बन सकते हैं. एलजीबीटी कम्यूनिटी के कपल्स भी सरोगेसी से अपना बच्चा पैदा कर सकते हैं. आईवीएफ भी एक तरह से सरोगेसी में ही आती है और इसमें एक या दोनों पेरेंट्स बायोलॉजिकली बच्चे से जुड़ सकते हैं. सरोगेसी की मदद से जन्म के बाद से ही पेरेंट्स अपने बच्चे का पालन कर सकते हैं. बच्चा गोद लेने की तुलना में सरोगेसी में पेरेंट्स को कम परेशानियां उठानी पड़ती हैं. भारत में ट्रेडिशनल सरोगेसी को अब तक लीगल नहीं किया गया है. वहीं दूसरी ओर जेस्टेनशनल सरोगेसी को सबसे पहले 1986 में शुरू किया गया था. इस प्रक्रिया में आईवीएफ की मदद से भ्रूण को बनाया जाता है और फिर सरोगेट मदर के गर्भाशय में इंप्लांट किया जाता है. भारत में जेस्टेशनल सरोगेसी को मान्यता प्राप्त है. यदि मेल या फीमेल पार्टनर किसी गंभीर इनफर्टिलिटी की समस्या् से जूझ रही है या कपल खुद बच्चा पैदा करना नहीं चाहता है, तो दोनों सरोगेसी की मदद से पेरेंट्स बन सकते हैं. वहीं सिंगल लोग भी सरोगेसी की मदद से पेरेंट्स बन सकते हैं. एकता कपूर और उनका भाई तुषार कपूर दोनों सिंगल पेरेंट हैं और सरोगेसी से ही उनके बच्चे हुए हैं. करण जौहर के भी जुड़वा बच्चे सरोगेसी से ही हुए हैं
सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें एक एकल पुरुष और एक महिला को सरोगेसी द्वारा बच्चा पैदा करने के बहिष्कार को चुनौती दी गई और वाणिज्यिक सरोगेसी के गैर-अपराधीकरण की मांग की गई है. याचिकाकर्त्ताओं ने सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 और सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के अंतर्गत सरोगेसी का लाभ उठाने से प्रतिबंधित करने के विनियम को चुनौती दी है. याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि सरोगेसी के माध्यम से बच्चे के जन्म के बारे में एक व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय, यानी प्रजनन स्वायत्तता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का एक पहलू है. इस प्रकार सरोगेसी के माध्यम से बच्चे को जन्म देने या जन्म देने के निर्णय को मूल रूप से प्रभावित करने वाले मामलों में हर नागरिक या व्यक्ति के अनुचित सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त होने के निजता के अधिकार को छीना नहीं जा सकता है. सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के अनुसार, महिला जो 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच विधवा या तलाकशुदा है या कानूनी रूप से विवाहित महिला और पुरुष के रूप में परिभाषित युगल सरोगेसी का लाभ उठा सकते है. इसमें वाणिज्यिक सरोगेसी पर भी प्रतिबंध है, जो 10 साल की जेल और 10 लाख रुपये तक के जुर्माने से दंडनीय है. कानून केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है जहां कोई पैसे का आदान-प्रदान नहीं होता है, साथ ही सरोगेट मां आनुवंशिक रूप से बच्चे की तलाश करने वालों से संबंधित होनी चाहिये.
इसमें कई चुनौतियां भी शामिल है
कोई भी यह तर्क दे सकता है कि राज्य को सरोगेसी के तहत गरीब महिलाओं के शोषण को रोकने के साथ बच्चे के जन्म लेने के अधिकार की रक्षा करनी चाहिये. हालांकि वर्तमान अधिनियम इन दोनो चुनौतियों का निवारण करने में विफल है. पितृसत्तात्मक मानदंडों को मज़बूत करता है. यह अधिनियम हमारे समाज के पारंपरिक पितृसत्तात्मक मानदंडों को मज़बूत करता है जो महिलाओं को उनके कार्य का कोई आर्थिक मूल्य नहीं देता है, साथ ही संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत महिलाओं के प्रजनन के मौलिक अधिकारों को सीधे प्रभावित करता है.
सरोगेट को वैध आय से वंचित करता है
वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने से सरोगेट की आय का वैध स्रोत भी प्रतिवंधित हो जाता है, अर्थात् ऐसा करना सरोगेट करने के लिये इच्छुक महिलाओं की संख्या को और सीमित करना है. कुल मिलाकर यह कदम परोक्ष रूप से उन युगलों को बच्चे से वंचित रखता है जो बच्चे पैदा करने के लिये इस विकल्प का चयन करना चाहते हैं.
भावनात्मक जटिलताएँ
परोपकारी सरोगेसी में दोस्त या रिश्तेदार सरोगेट मां के रूप में न केवल इच्छुक माता-पिता के लिये बल्कि सरोगेट बच्चे के लिये भी भावनात्मक जटिलताओं का कारण बन सकता है क्योंकि यह सेरोगेसी अवधि और जन्म के बाद रिश्ते को जोखिम में डाल सकता है. परोपकारी सरोगेसी भी सरोगेट मां चुनने में इच्छुक जोड़े के विकल्प को सीमित करती है क्योंकि बहुत सीमित रिश्तेदार इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिये तैयार होंगे. बता दें एक परोपकारी सरोगेसी में कोई तीसरे पक्ष की भागीदारी नहीं है. तीसरे पक्ष की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि सरोगेसी प्रक्रिया के दौरान इच्छित युगल चिकित्सा और अन्य विविध खर्चों को वहन करेगा, साथ ही उनका समर्थन करेगा. कुल मिलाकर तीसरा पक्ष इच्छित जोड़े एवं सरोगेट मां दोनों को जटिल प्रक्रिया के माध्यम से नेविगेट करने में मदद करता है, जो परोपकारी सरोगेसी के मामले में संभव नहीं हो सकता है.
सेरोगेसी के दुष्प्रभाव
हर बात के कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक पहलू होते है. सेरोगेसी भी इससे अछूता नही है. इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि कई बार सरोगेट मदर के द्वारा जन्म लेने वाले बच्चे विकलांग होने या किसी अन्य कारण से उनके माता-पिता अपनाने से मना कर देते थे जिससे की एक बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती थी. कई बार ऐसा भी होता था जन्म देने वाली सेरोगेट मदर भावनाओं के कारण या किसी अन्य कारण से उसे उसके वास्तविक माता पिता को देने से मना कर देती थी. इसके अलावा इस प्रक्रिया को एक व्यवसाय या आमदनी का जरिया के रूप में किया जाने लगा. कई बार महिला के घरवाले उसे जबरदस्ती सेरोगेट मदर बनने के लिए राजी करते थे, बदले में पैसा लेते थे, इस तरह से उस महिला का शोषण किया जाता है. इस प्रक्रिया से सेरोगेट बनने वाली मां के ऊपर भी जान का खतरा बना रहता है. बच्चों की खरीद बिक्री एवं वेश्यावृत्ति जैसे कामों के लिए भी इस प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है. लोग इस प्रक्रिया को एक शौक की तरह और अपने शारीरिक बनावट को बनाए रखने के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं, इससे मानवी नैतिक मूल्य का अपमान होता है. इस प्रक्रिया में बीच के लोग जैसे डॉक्टर वगैरह काफी पैसे कमाते हैं और सेरोगेट बनने वाली औरत को बहुत ही कम पैसे दिये जाता है. इसके अलावा कम खर्च एवं नियमों की लचीलापन के कारण यह विदेशी लोगों की पसंदीदा जगह बन गया, जिससे एक तरह से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. विश्व की पहली सरोगेट बेबी का नाम BABY – M है, जो कि 1985 से 86 के बीच अमेरिका में जन्म लिया. भारत के अलावा कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, डेनमार्क, ने जेस्टेशनल सेरोगेट को लागू किया. फ्रांस, जर्मनी, इटली स्पेन, पुर्तगाल में इसे पूर्ण रूप से मनाही है. रूस, यूक्रेन, आर्मेनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान में दोनों प्रक्रिया की छूट है. अमेरिका के कुछ राज्य में इसकी मान्यता तथा कुछ राज्य में मान्यता नहीं है. अगर हम विज्ञान के इस उपलब्धि को अच्छे कामों के लिए उपयोग करें तो या वरदान साबित होगा नहीं तो इसे अभिशाप बनने में भी देर नहीं लगेगी.
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