टीएनपी डेस्क(Tnp desk):-सियासत भी बड़ी गजब की चिज होती है और सियासतदान भी तरह-तरह के करतब करके खुद ब खुद ही सुर्खियों में बने रहते हैं. आमूमन ऐसी तस्वीर औऱ तासीर देखने को मिलती है. ये कोई तय पैमाना या फॉर्मूला तो नहीं है, फिर भी डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, इंजीनियर का पुत्र इंजीनियर और अभिनेता का सपूत हीरों बनता देखा गया है. राजनीति में तो आमूमन ये शगल ही रहा है कि, नेता का बेटा राजनीति में एंट्री मार ही देता. ऐसे कई ताजा तरीन और पुराने उदाहरणों से पटा पड़ा है. विधायक,संसद और मंत्री बनने की ख्वाहिशें पाले नेता पुत्र सब सियासत की दुनिया में अपना ठिकाना ढूंढने के लिए तरह-तरह के पापड़ बेलते हैं.
चपरासी की नौकरी पर मंत्री का बेटा
लेकिन, झारखंड सरकार के मंत्री और आऱजेडी के इकलौते विधायक सत्यानंद भोक्ता की सोच ही कुछ जुदा लगती है. उनकी मंशा आखिर क्यों अपने लाडले के लिए ऊंची नहीं रही ?, क्यों अपने बेटे मुकेश भोक्ता को चपरासी बनाकर ही खुश है ?, क्यों चतुर्थवर्गीय कर्मचारी की सरकारी नौकरी पर ही सेटल करना चाहते है ?. इसे लेकर चर्चाओं के बाजार में तो तमाम तरह-तरह की बाते और कानफुसी खूब हो रही है. चतरा व्यवहार न्यायालय में चपरासी पद पर चयन होने के बाद , बताया जा रहा है कि मंत्री जी के भतीजा रमदेव भोक्ता भी वेटिंग लिस्ट में हैं. यानि जल्द ही वो भी चपरासी बन सकते हैं .
चर्चाओं का बाजार गर्म
बड़ा सवाल है, क्या चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी का पद चपरासी में ही अपने बेटे का भविष्य मंत्री जी देखते थे. हेमंत सरकार में श्रम, नियोजन सह प्रशिक्षण और कोशल विकास मंत्री सत्यनंद भोक्ता बड़े-बड़े आईएस, आईपीएस जैसे अफसरों की मौजूदगी और घेरबंदी बनीं ही रहती है. क्या उन्होंने अपने बेटे को ऐसे बड़े मुलाजिम बनाने की कभी नहीं सोची. क्या उनका सपना नहीं रहा कि उनका बेटा भी नेता न सही कम से कम अफसर ही बनें, या फिर डॉक्टर, इंजीनियर और वकील ही बन जाए. सोचने वाली बात तो ये है कि उनके पास किसी चिज की कोई कमी नहीं है. सब सामर्थ्य और ताकत उनके पास है. हां ये हो सकता है कि उनका बेटा पढ़ाई में तेज न हो. पर सवाल ये है कि उनका भतीजा भी इस पद की रेस में है. इसे देखते हुए प्रश्न उठना तो लाजमी है. बेटा तो बेटा मंत्री जी भीतीजे पर भी अपनी मेहरबानियों से लाइफ सेट कराना चाहते हैं.
राजनीति की डगर मुश्किल
सियासत का संसार जितना खुशगवार और गुलाबी दिखाई पड़ता है. इसकी डगर उतनी ही मुश्किलों से भरी होती है. यहां सभावनाएं और बहुत हद तक किस्मत का खेल माना जाता है. सियासी बिसात में कोई मोहरा निकल चला तो ही सबकुछ मुनासिब है. न ही तो इसके रास्ते उतनी मुफिद और माफिक नहीं दिखाई पड़ते. चर्चा तो भी की जा रही है कि राजनीति में अनिश्चिता के चलते ही चतरा से राजद विधायक सत्यानंद भोक्ता ने अपने बेटे को सरकारी नौकरी में दिलचस्पी दिखाई. क्योंकि सरकारी नौकरी का आकर्षण आज भी मध्यम वर्ग में कायम है. अगर कल को विधायकी और मंत्री पद नहीं रहा तो कम से कम बेटे को तो कोई दिक्कतें जिवन में नहीं होगी. खबरों की दुनिया में मंत्री के बेटे का चपरासी बनना सुर्खियां बनीं हुई है औऱ लाजामी है कि बनेगी भी, क्योंकि बात ही कुछ अलग हट कर हैं. जिसे चटकारे लेकर लोग चर्चा और बतोलेबाजी करेंगे .लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि एक विधायक को अपने वोट बैंक के सहारे चुनाव जीतने का भरोसा रहता है. तो फिर उनमे ये क्यों यकीन पैदा नहीं हुआ कि अगर बेटे के मन में जिंदगी में कुछ बड़ा करने की ख्वाहिशे भरी जाती और बड़ा लक्ष्य बनाने की जीजीवीषा और जूनन भरा जाता . इसे ही तय रास्ता मानकर एक जोश के साथ पढ़ाया-लिखाया जाता तो शायद चपरासी की जगह कोई अच्छी नौकरी या फिर अफसर भी लड़का बन सकता था. खैर उनकी योजना क्या है, ये तो वे ही ज्यादा बेहतर जानते होंगे. फिलहाल, तमाम तरह के प्रश्न तो लोग उठायेंगे ही क्योंकि ये बात कोई छोटे-मोटे आदमी की नहीं, बल्कि राज्य सरकार के एक मंत्री के बेटे की है.
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