धनबाद(DHANBAD): हम तो बेघर हैं हुजूर!! सरकारी खजाने में पैसा आ गया है लेकिन घर बनाने का काम शुरू नहीं हुआ है. 5 वर्षों से दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, रहने को घर नहीं है, खाने को भोजन नहीं है. कोई ठिकाना नहीं है. ऐसे में अब तो न्याय दीजिए हुजूर! इसी मांग को लेकर बुधवार को चिरकुंडा के 111 पीड़ित परिवार धनबाद उपायुक्त कार्यालय पहुंचे थे. उनकी आंखे छलछला रही थी और जुवान न्याय मांग रहा था. उनके साथ धनबाद विधायक राज सिन्हा और चिरकुंडा नगर परिषद उपाध्यक्ष जयप्रकाश सिंह भी थे.आरोप है कि 5 साल पहले चिरकुंडा के झिलिया नदी में बीसीसीएल की वजह से आई बाढ़ में घर बह और ढह गए. मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप से बीसीसीएल ने घर निर्माण के लिए राशि सरकारी खजाने में जमा करा दिया.
बीसीसीएल ने 7 माह पहले ही सरकारी खजाने में जमा करा दी है राशि
यह राशि बीसीसीएल ने 7 माह पहले जमा करा दी है. लेकिन अभी तक विस्थापितों को घर नहीं मिला है और न ही बना है. न्याय की उम्मीद लिए आज 111 पीड़ित परिवार विधायक राज सिन्हा के नेतृत्व में धनबाद के उपायुक्त से मुलाकात की और फरियाद किया कि अब तो न्याय दीजिए हुजूर! उपायुक्त ने भरोसा दिया है कि जल्द काम शुरू करा दिया जाएगा. जिनकी अपनी जमीन है, वहां तो मकान बनाने का काम तुरंत शुरू हो जाएगा लेकिन जिन लोगों की अपनी जमीन नहीं है, वहां बंदोबस्ती की प्रक्रिया शुरू करने के बाद ही मकान बनाने का काम शुरू किया जाएगा. पीड़ित परिवारों के साथ चिरकुंडा नगर परिषद के उपाध्यक्ष जयप्रकाश सिंह भी थे. उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवारों के साथ अन्याय हो रहा है.
पैसा के बावजूद काम नहीं होने से उठ रहे सवाल
इधर, विधायक राज सिन्हा ने कहा कि पैसा होने के बावजूद काम शुरू नहीं होना कई सवालों को खड़ा करता है. उन्होंने कहा कि मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप के बाद जनवरी महीने में ही जिला प्रशासन को ढाई सौ करोड़ रुपए दे दिए गए है. लेकिन आज तक विस्थापितों को बसाने का काम शुरू नहीं किया गया है. जो लोग विस्थापित हुए हैं, उनमें अधिकतर सफाई कर्मी और दैनिक मजदूरी करने वाले गरीब लोग है. उनके लिए रोज धनबाद आकर न्याय की मांग करना संभव नहीं है. देखना है की इस पर कब काम शुरू होता है और लोगों को कब न्याय मिलता है. 2018 में चिरकुंडा के झिलिया नदी में एक आउटसोर्सिंग कंपनी के लिए बांध बनवाने के बाद नदी में बाढ़ आ गई थी और 111 घर और बह गए थे. उसके बाद पीड़ित परिवारों की ओर से लड़ाई लड़ी गई, तब जाकर मानवाधिकार आयोग ने इसमें हस्तक्षेप किया और पैसे का भुगतान हुआ है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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