धनबाद(DHANBAD) : धनबाद की टुंडी के रहने वाले हाथियों से सुरक्षा की गुहार लगा रहे है. उनकी कोई सुनने वाला नहीं है. टुंडी से झामुमो के मथुरा प्रसाद महतो लगातार दूसरी बार चुनाव जीते है. ऐसे में उन लोगों को उम्मीद थी कि उनकी परेशानियों पर झारखंड सरकार तुरंत एक्शन में दिखेगी. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. यह बात भी सच है कि टुंडी में हाथियों का आतंक कोई एक दिन में नहीं हुआ है. वन विभाग ने हाथियों को दूर करने की जो भी योजनाएं बनाई, कोई कारगर साबित नहीं हुई. हाथियों का आतंक और उत्पात जारी है.
फिलहाल कुल 40 हाथियों का दो दल जमा हुआ है
टुंडी पहाड़ से पहुंचे दो दल में 40 जंगली हाथी है. झुंड पहाड़ी तराई के गांव को परेशान कर दिया है. इलाके में दहशत का माहौल है. लोग बताते हैं कि शुक्रवार को हाथियों का एक झुंड गिरिडीह-पीरटांड़ के रास्ते टुंडी में प्रवेश किया. जंगली हाथियों के झुंड ने घरों को क्षतिग्रस्त किया और कई किसानों की धान की फसल तहस-नहस कर डाला. हाथियों का यह झुंड मनियाडीह थाना क्षेत्र के गांव के एक घर को क्षतिग्रस्त कर दिया. घर में रखे अनाज खा गए. सूचना मिलने पर टुंडी वन विभाग के मशालचियों की टीम पहुंची और जंगली हाथियों को टुंडी पहाड़ पर भेजने की कोशिश की. हाथियों के डर से गांव के लोग सहमे हुए है. वन विभाग के मशालची और वनरक्षी के अलावा कोई अधिकारी कभी झांकने गांवों तक नहीं जाता.
रात में हाथियों के पहुंचने की सूचना देने पर अधिकारी फ़ोन नहीं उठाते
ग्रामीणों का आरोप है कि रात में जंगली हाथियों के धावा बोलने पर वन विभाग के अधिकारी फोन नहीं उठाते. खुद आग जलाकर रात भर जागते हैं और अपनी सुरक्षा करते है. 40 हाथियों का यह झुंड कब किधर निकल जाए और किस पर हमला बोल दे, यह कहना कठिन है. हाथियों के कॉरिडोर के लिए सरकार ने बहुत पहले योजना बनाई थी. लेकिन यह योजना फाइलों में कैद होकर रह गई है और इधर टुंडी के लोग हाथियों के डर से परेशान है. लोग सवाल कर रहे हैं मथुरा बाबू एलिफेंट कॉरिडोर का क्या हुआ? क्यों क्यों यह एक दशक से धूल फांक रही है. जंगली क्षेत्र में रहने वालों की क्या कोई सुरक्षा नहीं करेगा? बता दे कि हाथियों से सुरक्षा के लिए पाकुड़ से लेकर चाईबासा तक अलग-अलग एलिफेंट कॉरिडोर का निर्माण करने का प्रस्ताव है.
टुंडी, पूर्वी टुंडी, तोपचांची व राजगंज से होकर कॉरिडोर बनाना था
इसमें टुंडी, पूर्वी टुंडी, तोपचांची व राजगंज से होकर कॉरिडोर बनाना है, लेकिन यह सिर्फ सुनाई पड़ता है, जमीन पर दिखता नहीं है. बात यहीं खत्म नहीं होती, टुंडी में हाथियों से सुरक्षा के लिए धनबाद वन प्रमंडल ने पश्चिमी टुंडी में तीन जगह पर सूचक यंत्र लगाए थे. हाथियों के गुजरने पर यह यंत्र सायरन की तरह बजता है. मशीन काम नहीं कर रही है और हाथियों का झुंड लगातार उत्पात मचा रहा है. टुंडी, पूर्वी टुंडी, तोपचांची व राजगंज में जंगल के आसपास और पहाड़ियों की तराई क्षेत्र में बसे 50 गांव को जंगली हाथियों से सुरक्षा के लिए एलिफेंट कॉरिडोर अगर बन जाता, तो ग्रामीणों को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती, फसल नष्ट नहीं होते. 10 साल पहले लगभग 10 करोड़ रुपए की लागत से एलिफेंट कॉरिडोर बनाने का एस्टीमेट बना था. सरकार स्तर पर इस योजना पर फैसला अभी तक नहीं हुआ. यह योजना नामंजूर हुई और न हीं ख़ारिज. टुंडी का पहाड़ व जंगल हाथियों के विचरण का सुरक्षित स्थान माना जाता है. भोजन की तलाश में जंगल व तराई पर बसे गांव में हाथियों का झुंड उतर जाता है. खेतों और कच्चे घरों को तोड़कर फसल, अनाज खा जाता है. लोगों की जान तक ले लेता है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
4+