देवघर(DEOGHAR): जिले में आज से फाइलेरिया उन्नमूलन के तहत मास ड्रग अभियान की शुरुआत हुई है. सदर अस्पताल परिसर में उपविकास आयुक्त कुमार ताराचन्द और सिविल सर्जन युगल किशोर चौधरी ने संयुक्त रूप से अभियान की शुरुआत की है. 2030 तक भारत को फाइलेरिया मुक्त करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए देवघर में 16 लाख 16 हज़ार 558 को दवा खिलाने का लक्ष्य है. कल से सहिया, सेविका, स्वयं सेवक के माध्यम से घर-घर जाकर दवा खिलाया जाएगा. आज जिला के 2588 बूथ पर दवा खिलाया जा रहा है.
डीडीसी डॉ कुमार ताराचन्द ने कहा कि फाईलेरिया के लक्षण उभरने में कम से कम 05 से 15 साल तक का समय लगता हैं, लक्षण उभरने के पूर्व इसकी पहचान मुश्किल है. इसकी जांच के लिए रात में रक्त के नमूने लिए जाते हैं. अगर कोई व्यक्ति लगातार पांच से सात साल तक सर्वजन दवा सेवन के तहत दी जाने वाली दवाओं का सेवन करता है, तो उसके शरीर में फाइलेरिया के परजीवियों का प्रजनन लगभग रुक जाता है. यदि सभी व्यक्ति को डीईसी एवं एलबेंडाजोल की एकल खुराक वर्ष में एक बार खिलायी जाये, तो 80 से 90 प्रतिशत तक इस बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है और फाइलेरिया होने की संभावना को कम किया जा सकता है. उपविकास आयुक्त ने बताया कि फाइलेरिया क्युलेक्स मच्छर द्वारा फैलता है. जो जमे हुये गंदे पानी में अंडे देती है. फाइलेरिया का उपचार डीईसी गोली द्वारा संभव है.
जिला स्तरीय संवाददाता सम्मेलन के दौरान उप विकास आयुक्त द्वारा जानकारी दी गयी कि 10 फरवरी 2023 से चलने वाले सर्वजन दवा सेवन अभियान के तहत 2588 फाइलेरिया बूथ से इस महाअभियान कार्यक्रम की शुभारंभ होगी तथा दिनांक 11 फरवरी 2023 से 25 फरवरी 2023 तक सहिया दीदी, सेविका दीदी और स्वयं सेवकों द्वारा घर-घर दवा सेवन कराने के अतिरिक्त आवासीय विद्यालय, पुलिस लाइन, एसएसबी कैंप, सभी सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालयों और जेल आदि में भी जाकर फाइलेरिया रोधी गोली - डीईसी एवं अल्बेंडाजोल की एकल खुराक खिलाई जाएगी.
विकलांगता में फाइलेरिया बीमारी विश्व में दूसरे स्थान पर
साथ ही बताया कि फाइलेरिया एक गंभीर रोग है जो शरीर को अपंग और कुरूप करने वाली बीमारी है. इसका लक्षण लंबे अरसे बाद दिखाई पड़ता है और धीरे-धीरे शरीर को प्रभावित कर मूल रूप लेते हुए शरीर को क्षति पहुंचाने का कार्य करता है. दीर्घकालीन विकलांगता में यह बीमारी विश्व में दूसरे स्थान पर है. जो मनुष्य को अपंग बनाने वाली भी विश्व की दूसरा सबसे बड़ा कारण है. लिम्फैटिक फाइलेरिया को आम तौर पर हाथीपांव के नाम से जाना जाता है. इस बीमारी का संक्रमण आमतौर पर बचपन में ही हो जाता है. संक्रमण के बाद 5 से 15 वर्ष के बाद मनुष्यों में यह हाथीपांव, हाइड्रोसील, महिलाओं के स्तनों में सूजन इत्यादि के रूप में दिखाई देता है. यह जानलेवा बीमारी तो नहीं है लेकिन यह प्रभावित व्यक्तियों एवं उसके परिवार पर गंभीर सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव डालता है. फाइलेरिया से विश्व के 73 देश अति प्रभावित देश है.
16,16,558 लोगों को फाइलेरिया रोधी दवा खिलाने का लक्ष्य
देवघर जिले के कुल 18.37 लाख जनसंख्या में से दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती माताओं और गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर शेष 16,16,558 जनसंख्या को इस वर्ष फाइलेरिया रोधी दवा खिलाकर आच्छादित किए जाने का लक्ष्य रखा गया है. साथ ही 1 से 2 वर्ष के बच्चों को कृमि मुक्ति हेतु अल्बेंडाजोल की आधी गोली पानी में घोलकर खिलाया जाएगा.
रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा, देवघर
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