धनबाद(DHANBAD): "महावीर कैप्सूल" धनबाद के CMPDIL म्यूजियम में हेरिटेज के रूप में रख दिया गया है. यह "महावीर कैप्सूल" देश की कोयला खदान में हुई एक बहुत बड़ी दुर्घटना का महत्वपूर्ण गवाह बन गया है. फिल्म "मिशन रानीगंज" बनने के बाद "महावीर कैप्सूल" के बारे में लोग अधिक जानना पसंद कर रहे है. दरअसल, 1989 में ECL की महावीर कोलियरी में बड़ी खदान दुर्घटना हुई थी. इस दुर्घटना में 220 श्रमिक फंस गए थे. उनमें से 149 श्रमिकों को तो डोली से निकाल लिया गया था, लेकिन 65 मजदूर कई दिनों तक फंसे रहे. जब कोई तकनीक काम नहीं आया तो माइनिंग इंजीनियर जसवंत सिंह गिल द्वारा निर्मित कैप्सूल के सहारे तीन दिन बाद 65 मजदूरों को खदान से बाहर निकाला गया.
काफी प्रयास के बाद भी छह मजदूर काल के गाल में समा गए थे
काफी प्रयास के बाद भी छह मजदूर काल के गाल में समा गए थे. "मिशन रानीगंज" फिल्म की पूरी कहानी रानीगंज खदान हादसा, जसवंत सिंह गिल और "महावीर कैप्सूल" पर ही आधारित है. कोल इंडिया की स्थापना दिवस पर अध्यक्ष ने कहा था कि "महावीर कैप्सूल" माइनिंग स्टूडेंट के लिए पाठ्यक्रम की तरह है. इस कैप्सूल को पीडीआईएल के म्यूजियम में हेरिटेज के रूप में रख दिया गया है. इस कैप्सूल को आम लोग भी देख सकेंगे. 250 सालों से कोयला खनन का इतिहास है लेकिन महावीर कोलियरी का रेस्क्यू ऑपरेशन अपने ढंग का अलग है. इसे प्रभावित होकर फिल्म "मिशन रानीगंज" बनाई गई है. इस फिल्म के लीड रोल में अक्षय कुमार है. फिल्म के रिलीज होने के बाद "महावीर कैप्सूल" के बारे में लोग अधिक जानना और देखना पसंद कर रहे है. इसलिए इसे म्यूजियम में रखा गया है. इस ऑपरेशन के मुखिया थे आईएसएम के 1965 बैच के अभियंता जसवंत सिंह गिल.
रानीगंज की महावीर कोलियरी में जब 65 मजदूर फंस गए थे
रानीगंज की महावीर कोलियरी में जब 65 मजदूर फंस गए थे और कोई तकनीक नहीं काम आ रही थी. विदेश से भी सहायता ली गई थी, लेकिन मजदूर निकाले नहीं जा सक रहे थे. तब जसवंत सिंह गिल ने अपनी देसी तकनीक अपनाई और उन्होंने आदमी की लंबाई का एक कैप्सूल बनाया. कैप्सूल की बनावट ऐसी थी कि उसमें आदमी प्रवेश कर सकता था और सुरक्षित बाहर भी निकल सकता था. उस कैप्सूल के सहारे एक-एक कर महावीर कोलियरी से फंसे 65 मजदूरों को बाहर निकाला गया था. उसके बाद तो जसवंत सिंह गिल की कोयला उद्योग में बड़ी धाक जम गई. जसवंत सिंह गिल को भारत सरकार ने साल 1991 में सर्वोत्तम जीवन रक्षक पदक से सम्मानित किया था. 1998 में वह बीसीसीएल से रिटायर हुए. आईआईटी आईएसएम धनबाद ने उनके नाम पर इंडस्ट्रियल सेफ्टी अवार्ड देने की घोषणा की है. जसवंत सिंह गिल अवकाश ग्रहण करने के बाद अमृतसर शिफ्ट कर गए थे . 2019 में उनका निधन हो गया लेकिन उनका आइडिया आज भी लोगों को प्रेरणा देता है. उनकी हिम्मत, उनका साहस का लोग आज भी लोहा मानते हैं.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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