धनबाद(DHANBAD): धनबाद में झामुमो की स्थापना जरूर हुई लेकिन पार्टी धनबाद को अपना गढ़ नहीं बना सकी. अलबत्ता संथाल पर ध्यान केंद्रित किया और अपनी ताकत में इजाफा किया. यह भी अजब संयोग है की पिछले ढाई दशक से झारखंड मुक्ति मोर्चा ने धनबाद लोकसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ा. आखरी बार 1999 में कंसारी मंडल चुनाव लड़े थे. लेकिन उनका वोट प्रतिशत ढाई अंक का आंकड़ा भी नहीं छू सका था. इसी धनबाद की धरती पर 4 फरवरी 1973 को झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना हुई थी. लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा ने धनबाद में अपनी ताकत बढ़ाने की बहुत अधिक कोशिश कभी नहीं की. हालाकि हर साल अभी भी धनबाद में स्थापना दिवस मनाया जाता है. इसका कारण यह भी है कि टुंडी में जब शिबू सोरेन महाजनी के आंदोलन चलाते हुए पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा था तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. और वह दुमका शिफ्ट हो गए.उसके बाद उनकी राजनीति संथाल में केंद्रित हो गई.
धनबाद में ही झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और ए के राय ने मिलकर की थी. पार्टी की स्थापना के बाद से ही अलग राज्य की लड़ाई शुरू हुई. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अविभाजित बिहार में तो अपना संगठन बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन धनबाद में अपना मजबूत संगठन खड़ा नहीं कर सका. पिछले 25 साल से झारखंड मुक्ति मोर्चा लोकसभा चुनाव में किसी न किसी राष्ट्रीय पार्टी का समर्थन करता रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद के गठबंधन में चुनाव लड़ा जाएगा. अब तक की सूचना के मुताबिक धनबाद लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में आएगी. और कांग्रेस का जो भी उम्मीदवार होगा, उसको झारखंड मुक्ति मोर्चा समर्थन करेगा.
यह अलग बात है कि धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के बाद अपना वजूद बढ़ाने का बहुत अधिक प्रयास नहीं किया. यह अलग बात है कि पड़ोसी गिरिडीह लोकसभा सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर स्वर्गीय विनोद बिहारी महतो और स्वर्गीय टेक लाल महतो चुनाव लड़कर संसद तक पहुंचे. लेकिन धनबाद से झारखंड मुक्ति मोर्चा का अभी तक कोई सांसद नहीं चुना गया है. यह अलग बात है कि ए के राय के झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होने के बाद वह धनबाद से तीन बार सांसद रहे. 1977 में तो जेल में रहते हुए उन्होंने नामांकन किया और जेल में रहते हुए ही चुनाव जीते.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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