रांची(RANCHI): देश में ED की करवाई तेज है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाया है. इसे लेकर अब झामुमो फिर केंद्र सरकार पर हमलावर हो गई है. झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ED का फुल फॉर्म End Of Democracy बताया है.
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि उच्च न्यायालय ने पहली बार किसी जांच एजेंसी के वैधता पर सवाल उठाया है. कोर्ट ने केंद्र से सवाल पूछा है. लेकिन झामुमो पिछले कई दिनों से यह सवाल उठा रही है, कि गैर भाजपा शाषित राज्यों में ED, CBI, और IT की कार्रवाई कुछ ज्यादा हो रही है. सुप्रियो ने कहा कि ED का मतलब Enforcement Directorate नहीं बल्कि End Of Democracy है. यह ऐजेंसी सिर्फ विपक्षी दल के नेताओं और सरकार की रीढ़ तोड़ने का काम किया है. झारखंड में जैसे ही सरकार ने काम शुरू कर किया, वैसे ही इन ऐजेंसी को यहां पर अलर्ट कर दिया गया. सिर्फ एजेंसी नहीं बल्कि राज्यपाल खुद सरकार के खिलाफ काम करना शुरू कर दिया था.
घातक है देश की एजेंसी
इलेक्ट्रोल बांड के नाम पर देश में सबसे बड़ा मनी लॉन्ड्रिंग हुआ ED कहां सोई हुई है.महाराष्ट्र में जिन विधायक के ठिकानों पर छापेमारी हुई इस छापेमारी के बाद वही विधायक भाजपा की सहयोगी पार्टी बन कर मंत्री पद की सपथ ले लिया. देश में जिस तरह से सरकारों पर हमला हो रहा है अगर सुप्रीम कोर्ट ना रहे तो देश के लिए यह ऐजेंसी घातक है.
भाजपा पर खड़ा किया सवाल
उन्होंने कहा कि भाजपा के नेता द्वारा मध्य प्रदेश में आदिवासी युवक पर पेशाब कर दिया गया. इससे आक्रोशित लोगों ने जब भाजपा कार्यालय का घेराव किया. तब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल ने उन्हें जमीन दलाल बता दिया. बाबूलाल खुद एक आदिवासी नेता है कल तक वह एक अलग पार्टी के सुप्रीमो थे भाजपा पर सवाल खड़ा रहे थे. लेकिन जब भाजपा में गए तो सभी चिजो को भूल गए. बाबूलाल से पूछना चाहता हूं कि जो उनके समर्थन में रांची में पोस्टर लगाया गया है. वह किसने लगाया यह भी जनता जान रही है.
डर से भाजपा में शामिल हुए बाबूलाल
बाबूलाल के भाजपा में जाने से पहले ED के दफ्तर से इन्हें कॉल आया होगा की भाजपा में शामिल हो जाओ नहीं तो हम पहुंच रहे है. जिस से डर कर बाबूलाल मरांडी भाजपा में शामिल हो गए और अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बन गए. तो जल्द ही विपक्ष का नेता भी किसी को बना दे इससे सदन की कार्रवाई सही से चल सके.
केंद्र के खिलाफ उठाया जाएगा आवाज
राहुल गांधी के मसले पर जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा वह कुछ अलग हो सकता है. गुजरात में सिविल कोर्ट जो भाषा बोलती है उससे आगे बढ़ कर हाई कोर्ट सुनवाई करती है.जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जायेगा तो कुछ और हो सकता है. अब 17 और 18 को संयुक्त रूप से सभी गठबंधन दल के नेता राजभवन के पास केंद्र के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे.
रिपोर्ट. समीर हुसैन
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