दुमका(DUMKA): वर्ष 2024 बस कुछ दिनों का मेहमान है. 31 दिसंबर रात के 12 बजते ही वर्ष 2024 इतिहास बन जाएगा. हर वर्ष अपने साथ कुछ यादें छोड़ जाती है. यह पल किसी के जीवन में खुशियां लाती है, तो किसी के लिए गम दे जाता है. खुशी हो या गम हर हाल में लोग ऐसे पलों को याद रखते है.
दुमका में शांतिपूर्ण संपन्न हुआ लोक सभा और विधान सभा चुनाव
झारखंड के लिए जाने वाला वर्ष राजनीतिक रूप से काफी अहम माना जाएगा, क्योंकि वर्ष 2024 लोकसभा और झारखंड विधान सभा चुनाव का गवाह बना. झारखंड की उपराजधानी दुमका में दोनों चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हुआ लेकिन इससे ज्यादा राजनीतिक उठा पटक के लिए यह वर्ष याद रखा जाएगा.
लोक सभा में बीजेपी ने सुनील सोरेन को टिकट देकर लिया वापस
2024 के शुरुआत से ही तमाम राजनीतिक दल चुनाव की तैयारी में लग चुके थे. समय पर लोक सभा चुनाव की घोषणा हुई. बीजेपी द्वारा जारी पहली सूची में दुमका के तत्कालीन सांसद सुनील सोरेन को एक बार फिर प्रत्याशी बना कर मैदान में उतारा. सुनील सोरेन क्षेत्र में घूम घूम कर जनता से अपने पक्ष में वोट की मांग करने लगे, लेकिन अचानक से राजनीति ने ऐसा करवट लिया कि सुनील सोरेन से टिकट वापस ले लिया गया.
शिबू सोरेन के बड़ी पुत्रवधू सीता सोरेन को अपने पाले में करने के बाद लोक सभा चुनाव में बनाया प्रत्याशी
झारखंड के सबसे बड़े राजनीतिक घराने सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन जो झामुमो के टिकट पर जामा से 3 टर्म विधायक चुनी गई थी, एक झटके में पार्टी और परिवार से बगावत कर बीजेपी का दामन थाम लिया.सोरेन परिवार में टूट को बीजेपी अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मान बैठी और एक प्रयोग के तहत सुनील सोरेन से टिकट वापस लेते हुए सीता सोरेन को थमा दिया. लेकिन बीजेपी का यह प्रयोग सफल नहीं हुआ. लोक सभा चुनाव में सीता सोरेन को पराजय का सामना करना पड़ा और झामुमो से बीजेपी से यह सीट छीन लिया.
पहली बार दुमका लोकसभा सीट से झामुमो के टिकट पर शिबू सोरेन परिवार के सदस्य के बजाय विधायक नलिन सोरेन ने लड़ा चुनाव
जब लोक सभा चुनाव की घोषणा हुई उस वक्त झारखंड मुक्ति मोर्चा संकट के दौर से गुजर रहा था. पार्टी के सामने नेतृत्व का संकट था और दुमका लोकसभा सीट से किसे मैदान में उतारा जाए यह एक यक्ष प्रश्न था.बढ़ती उम्र और शारीरिक अस्वस्थता के कारण पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन सक्रिय राजनीति से दूर हो गए. कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को कथित जमीन घोटाला में जेल जाना पड़ा. बड़ी बहू सीता सोरेन झामुमो को अलविदा कह चुकी थी. हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का राजनीति में प्रवेश हुआ नहीं था. अमूमन दुमका लोकसभा सीट पर झामुमो के टिकट पर शिबू सोरेन या उनके परिवार के सदस्य चुनाव लड़ते आ रहे थे, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ जब संगठन ने अलग राज्य के लिए चलाए गए आंदोलन में गुरु जी के साथ कंधे से कांधा मिलाकर चलने वाले शिकारीपाड़ा से 7 टर्म के विधायक रहे नलिन सोरेन को मैदान में उतरा. झामुमो का यह प्रयोग सफल रहा और नलिन सोरेन सांसद निर्वाचित हुए.
संकट के दौर में दुमका विधायक बसंत सोरेन को मिली थी अहम जिम्मेदारी
कथित जमीन घोटाला में जेल जाते समय हेमंत सोरेन ने अपने अनुज दुमका विधायक बसंत सोरेन के कंधे पर परिवार और संगठन के साथ साथ गठबंधन सरकार को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी सौंपी. चंपाई सोरेन की सरकार में बसंत सोरेन को मंत्री बनाया गया.अपने दायित्व का निर्वहन बसंत सोरेन ने बखूबी किया. उन्होंने गठबंधन के तमाम घटक दलों को साथ लेकर चले. लोकसभा में सभी 5 एसटी सुरक्षित सीट पर इंडिया गठबंधन की जीत हुई. संकट की इस घड़ी में झामुमो को कल्पना सोरेन के रूप में नेतृत्वकर्ता मिल गया.
विधानसभा चुनाव के पूर्व हुई जोड़ तोड़ की राजनीति
लोक सभा चुनाव के बाद आयी विधानसभा चुनाव की बारी. चुनाव की घोषणा होते ही तमाम राजनीतिक दल तोड़ जोड़ की राजनीति में लग गई. इस दौरान संताल परगना प्रमंडल में भाजपा को एक तगड़ा झटका लगा. बोरियो विधायक लोबिन हेंब्रम को अपने पाले में लाकर बीजेपी संताल परगना फतह का सपना देख रही थी कि हालत कुछ ऐसे पैदा हुए कि बीजेपी प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ लुईस मरांडी ने पार्टी को बाय बाय कह दिया और झामुमो का दामन थाम लिया.
हेमंत के हिम्मत की बदौलत डॉ लुईस मरांडी पहुंची विधानसभा भवन
डॉ लुईस मरांडी लगभग 24 वर्षों तक बीजेपी से जुड़कर राजनीति की. 2014 में चुनाव जीती और रघुवर कैबिनेट में मंत्री बनाई गई, लेकिन 2019 के चुनाव और 2020 के उप चुनाव में लुईस को पराजय का सामना करना पड़ा.चुनाव हारने के बाबजूद लुईस फील्ड में डटी रही इस उम्मीद के साथ कि 2024 के चुनाव में भाजपा उसे दुमका विधान सभा सीट से उम्मीदवार बनाएगी, लेकिन एन वक्त पर भाजपा ने लुईस की जगह पूर्व सांसद सुनील सोरेन को दुमका विधान सभा से प्रत्याशी बना कर मैदान में उतार दिया. पार्टी के इस निर्णय से आहत लुईस ने बीजेपी से त्यागपत्र देकर झामुमो का दामन थाम लिया. झामुमो ने जामा विधान सभा सीट से प्रत्याशी बनाकर लुईस को मैदान में उतार दिया. जामा की जनता ने लुईस मरांडी को स्वीकार्य किया.वह चुनाव जीतने में सफल रही.इस तरह एक दशक पूर्व बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर मंत्री बनने वाली डॉ लुईस मरांडी झामुमो के टिकट पर विधायक बनी.
झामुमो मुक्त संताल परगना का सपना देखने वाली बीजेपी को विधानसभा चुनाव में मिली करारी पराजय
लगभग एक दशक पूर्व बीजेपी ने झामुमो मुक्त संताल परगना प्रमंडल का सपना देखा था, लेकिन यह सपना साकार नहीं हो सका. 2019 के चुनाव में बीजेपी को संताल परगना के 18 सीट में से 4 सीट पर सफलता मिली थी. 2024 में बीजेपी मुक्त संताल परगना होते होते बच गया. 18 में से एक मात्र सीट जरमुंडी से बीजेपी ने जीत दर्ज की.इस तरह देखा जाए तो वर्ष 2024 न केवल दुमका बल्कि संताल परगना और झारखंड राजनीतिक उथल पुथल के रूप में याद रखा जाएगा.नेताओं की बयानबाजी वर्ष भर लोगों का मनोरंजन करती रही.
रिपोर्ट-पंचम झा
4+