धनबाद(DHANBAD): झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कोल्हान के टाइगर चंपई सोरेन के साथ कितने विधायक जाएंगे, जाएंगे की भी नहीं जाएंगे, किन शर्तों पर चंपई सोरेन भाजपा का झंडा थामेंगे, इस पर अभी धुंध छाया हुआ है. लेकिन सूत्र बताते हैं कि कोल्हान के कम से कम दो ऐसे विधायक, जो इस बार झामुमो के टिकट पर चुनाव जीत नहीं सकते, वह चंपई सोरेन के साथ भाजपा में शामिल हो सकते है. वैसे वह दोनों विधायक भी भाजपा में शामिल होने की बात से इनकार कर रहे हैं, लेकिन सूत्र दावा कर रहे हैं कि वह दोनों जाएंगे ही. इस बीच खरसावां के विधायक दशरथ गागराई ने रविवार को एक पत्र जारी कर जो कहा है, उससे कई नेता घेरे में आते है.
18 अगस्त को जारी हुआ है पत्र
18 अगस्त को जारी पत्र में दशरथ गागराई ने कहा है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री श्री चंपई सोरेन जी के साथ मेरे भाजपा में शामिल होने की खबर का खंडन करता हूं, मेरे बारे में मीडिया में भ्रामक खबर चलाई जा रही है कि मैं श्री चंपई सोरेन जी के साथ दिल्ली जा रहा हु. मैं वर्तमान में अपने निर्वाचन क्षेत्र में शिलान्यास और उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हूं, खरसावां की जनता ने 2014 से अब तक भूखे -प्यासे रह कर मुझे चुनाव में जीत दिलाया है. मुझ पर खरसावां के मतदाताओं का बहुत बड़ा कर्ज है. भाजपा में शामिल होकर मैं अपने मतदाताओं को धोखा नहीं दे सकता. दि शुम गुरु शिबू सोरेन इस राज्य के सर्वमान्य नेता है. उनके छत्रछाया में मैं राजनीति में हूं, हम आधी रोटी खा लेंगे, मगर गुरु जी के मान- सम्मान को नीचे नहीं होने देंगे. झामुमो राज्य की माटी की पार्टी है और मुझे गर्व है कि मैं इस पार्टी का सिपाही हूं, जो भी हो लेकिन चंपई सोरेन ने भी कल एक भावुक पोस्ट कर परेशानियों को बताया था. उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाए जाने के बाद मेरे पास सिर्फ तीन ही विकल्प बचे थे.
चंपई सोरेन ने बताये थे तीन विकल्प
पहला विकल्प था कि मैं राजनीति से संन्यास ले लूं, दूसरा विकल्प था की नई पार्टी बना लू , तीसरा विकल्प था कि किसी के साथ होकर आगे की पारी खेले. चंपई सोरेन ने तीसरी बात को स्वीकारा और उनकी राह अब झामुम से जुदा हो गई है. इतना तो तय है कि अगर चंपई सोरेन भाजपा में शामिल हो गए, जो लगभग तय है, तो कोल्हान में झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है. अभी तक कोल्हान में झारखंड मुक्ति मोर्चा के चुनाव की राजनीति की बागडोर चंपई सोरेन के हाथ में होती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. संथाल परगना और कोल्हान झारखंड मुक्ति मोर्चा की ताकत है. लोकसभा चुनाव में भी संथाल को डिस्टर्ब करने की कोशिश की गई. यह अलग बात है कि बहुत कामयाबी नहीं मिली. लेकिन विधानसभा चुनाव के पहले कोल्हान को भी डिस्टर्ब करने की कोशिश हुई है. यह अलग बात है कि चंपई सोरेन की पार्टी छोड़ने की बात को भाजपा अपने ढंग से भुनाने की कोशिश करेगी तो झारखंड मुक्ति मोर्चा भी अपने ढंग से इसे इन कैश करने का प्रयास करेगा.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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