दुमका(DUMKA): झारखंड विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही यहां की राजनीति पल पल बदल रही है. कहीं मोदी है तो मुमकिन है का नारा बुलंद करने वालों के चुनाव लड़ने के सपने को नजर अंदाज किया जा रहा है तो कहीं हेमंत है तो हिम्मत है का नारा बुलंद करने वालों का हिम्मत टूट रहा. नतीजा हर दल में भगदड़ की स्थिति है.
संताल परगना प्रमंडल में बीजेपी को लगा झटका
संताल परगना प्रमंडल में बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है. रघुवर दास की सरकार में कल्याण मंत्री रह चुकी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ लुईस मरांडी ने बीजेपी से त्यागपत्र देकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थाम लिया.रांची में सीएम हेमंत सोरेन ने झामुमो का पट्टा पहनाकर पार्टी में डॉ लुईस का स्वागत किया तो उपराजधानी दुमका में लुईस के समर्थक खुशी से झूम उठे. दीवाली से पूर्व ही दुमका के चौक चौराहों पर दीवाली सा नजारा दिखा. समर्थकों द्वारा जमकर आतिशबाजी की गई.
डॉ लुइस को क्यों पड़ी हेमंत के हिम्मत की जरूरत
24 बर्षों तक बीजेपी की आवाज को बुलंद करने वाली डॉ लुईस को आखिर क्यों हेमंत के हिम्मत की जरूरत पड़ी, यह अहम सवाल है.मोदी है तो मुमकिन है का नारा बुलंद करने वाली लुईस मरांडी को लगने लगा कि बीजेपी में रहते चुनाव लड़ना और जीतना नामुमकिन लगने लगा. वर्ष 2019 के चुनाव और 2020 का उपचुनाव दुमका से हारने के बाबजूद लुईस हमेशा क्षेत्र में सक्रिय रही.लोगों के दुख दर्द में शरीक होती रही.उम्मीद बस एक ही थी कि 2024 में पार्टी मौका देगी और दुमका विधानसभा से प्रत्याशी बना कर मैदान में उतारेगी, लेकिन जब बीजेपी ने 66 उम्मीदवारों के नाम के साथ पहली सूची जारी की तो उसमें लुइस का नाम कहीं नहीं था.
सभी सरयू राय तो हो नहीं हो सकते जो क्षेत्र बदलने के साथ ही निर्दलीय चुनाव जीत जाए. दुमका सीट के प्रबल दावेदार को सीएम के खिलाफ बरहेट सीट का आफर मिला. उस बरहेट सीट का जहाँ के मतदाता के बारे में कहा जाता है कि वो प्रत्याशी से ज्यादा चुनाव चिन्ह का जानते हैं. उस बरहेट सीट का जहां से झामुमो के टिकट पर विधायक और सांसद बनने के बाबजूद हेमलाल मुर्मू ने जब कमल का दामन थामा तो मतदाता ने उन्हें ठुकरा कर हेमंत सोरेन को अपनाया. बीजेपी ने राजनीति के क्षेत्र में लुईस के चिर प्रतिद्वंद्वी पूर्व सांसद सुनील सोरेन को दुमका विधान सभा से प्रत्याशी बनाकर आग में घी का काम किया. बीजेपी में रहते लुईस को तमाम रास्ता बंद नजर आने लगा तो उसने झामुमो से नई राजनीतिक पारी खेलने का मन बनाया और झामुमो का दामन थाम लिया.
लुईस के सामने क्या हो सकता है विकल्प
झामुमो ने अभी तक अपने प्रत्याशी घोषित नहीं किए है.इसलिए सवाल उठता है कि लुइस मरांडी के समक्ष क्या विकल्प हो सकता है. दुमका जिला का जामा, शिकारीपाड़ा और दुमका एसटी आरक्षित सीट है. दुमका सीट से सीएम हेमंत के अनुज बसंत विधायक हैं. सीता सोरेन के पाला बदलने और नलीन सोरेन के सांसद बन जाने की वजह से झामुमो को दोनों सीट पर नया प्रत्याशी देना है. वैसे शिकारीपाड़ा क्षेत्र में नलीन सोरेन का पुत्र आलोक सोरेन सक्रिय है। जामा सीट सोरेन परिवार का परंपरागत सीट है. जहां से झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, दुर्गा सोरेन और सीता सोरेन चुनाव जीत कर विधान सभा पहुंच चुके हैं. वहीं शिकारीपाड़ा सीट झामुमो का सबसे सुरक्षित सीट माना जाता है, जहां से 7 टर्म विधायक रहने के बाद नलीन सोरेन सांसद बने। सवाल उठता है कि तीनों में से किस सीट पर लुईस को प्रत्याशी बनाकर झामुमो मैदान में उतरेगी. वैसे लुइस की हसरत दुमका सीट से चुनाव लड़ने की होगी लेकिन यह तभी संभव होगा जब बसंत सोरेन जामा या शिकारीपाड़ा सीट से चुनाव लड़ने के लिए राजी हो जाए. सूत्रों की माने तो झामुमो जामा सीट से लुईस मरांडी को चुनावी समर में उतारने की योजना पर कार्य कर रही है.
किसको फायदा किसको नुकसान
समीक्षा इस बात की भी होने लगी है कि लुईस मरांडी के झामुमो जॉइन करने से किस पार्टी को फायदा हुआ और किस पार्टी को नुकसान. लुईस मरांडी संताल परगना प्रमंडल में बीजेपी की एक मजबूत नेत्री मानी जाती थी. इसकी तत्काल भरपाई करना भाजपा के लिए चुनौती से कम नहीं. पर्दे के पीछे कुछ भाजपाई यह सोच कर खुश हो सकते है कि चलो पार्टी के अंदर एक गुट तो कम हुआ लेकिन इस बात को लेकर ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं क्योंकि पार्टी में अंतर्कलह चरम पर है.वहीं दूसरी तरफ झामुमो को जामा विधानसभा क्षेत्र में एक मजबूत कैंडिडेट की तलाश थी जो लुईस मरांडी के रूप में मिल गया. साथ ही लुईस की जन्म स्थली और कर्म स्थली दुमका विधानसभा क्षेत्र है.जहाँ लुइस के समर्थक है. दुमका विधानसभा क्षेत्र से झामुमो प्रत्याशी की जीत की जिम्मेदारी भी लुइस के कंधों पर होगी.
रिपोर्ट-पंचम झा
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