धनबाद(DHANBAD) : एक झटके में ही मार्क्सवादी चिंतक और पूर्व सांसद एके राय की पार्टी मार्कसिस्ट कोऑर्डिनेशन कमिटी(मासस) अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है. भाकपा (माले ) में शामिल होकर इंडिया गठबंधन का हिस्सा हो गई है. अब यहीं से सवाल उठता है कि पूर्व सांसद एके राय के फॉलोअर्स को भाकपा (माले) में शामिल होने का कितना फायदा मिलेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है. लेकिन अब एके राय की एक बहुत बड़ी "कृति" मिट गई है. राजनीति में रहते हुए कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं करने वाले राय दा अगर जीवित होते तो कभी भी ऐसा नहीं करने देते. लेकिन यह बात भी पूरी तरह से सच है कि झारखंड के कई विधानसभा क्षेत्र के समीकरण पर कुछ ना कुछ विलय का असर पड़ेगा.
शनिवार को रांची में हुई है विलय की घोषणा
शनिवार को रांची में मार्कसिस्ट कोऑर्डिनेशन कमेटी की भाकपा (माले) में विलय की घोषणा हुई. उसके बाद से ही चर्चाएं शुरू हो गई है कि 2024 के विधानसभा चुनाव में शायद गणित बैठाने के बाद ही यह फैसला लिया गया होगा. यह बात अलग है कि इस निर्णय से किस पार्टी को कितना फायदा होगा, कितना नुकसान होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. यह बात अलग है कि माले को अपनी दखल वाली सीट बगोदर, राजधनवार, जमुआ , मांडू आदि सीटों पर इंडिया गठबंधन से सीट लेने में सहूलियत होगी तो वहीं मासस को निरसा और सिंदरी सीट पर दावा मजबूत करने का मौका मिलेगा.
9 सितंबर को धनबाद में रैली में जुटेंगे नेता
यह अलग-अलग बात है कि 9 सितंबर को धनबाद में रैली कर एकीकृत पार्टी अपनी ताकत दिखाएगी, लेकिन सीट शेयरिंग में इंडिया गठबंधन के साथ कोई न कोई पेंच फसेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है. 2019 के चुनाव में भाजपा ने निरसा विधानसभा से जीत दर्ज की है. मासस के हाथ से भाजपा ने सीट छीन ली है. अगर यह सीट माले को मिलती है, तो भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी. निरसा में भाजपा की अपर्णा सेनगुप्ता को 89,082 वोट मिले थे. मासस के अरूप चटर्जी को 63,624 वोट और झामुमो के अशोक मंडल को 47, 168 वोट मिले थे. इस तरह देखा जाए तो अगर निरसा से माले का उम्मीदवार होगा, तो भाजपा के लिए परेशानी हो सकती है. इसी तरह सिंदरी विधानसभा सीट से 2019 में मासस के आनंद महतो को 72,714 और झारखंड मुक्ति मोर्चा के फूलचंद मंडल को 33,583 वोट मिले थे. भाजपा के विजई प्रत्याशी इंद्रजीत महतो को 80,967 वोट मिले थे. ऐसे में अगर सिंदरी सीट माले को मिलती है तो मुकाबला रोचक हो सकता है.
राजधनवार सीट पर भी विलय का पड़ेगा प्रभाव
राजधनवार सीट की बात की जाए तो 2019 में यहां से माले के राजकुमार यादव और झारखंड मुक्ति मोर्चा से निजामुद्दीन अंसारी चुनाव लड़े थे. भाजपा के लक्ष्मण प्रसाद सिंह भी चुनाव में किस्मत आजमा रहे थे, लेकिन यहां से जीत झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी को मिली. अगर यह सीट इंडिया गठबंधन ने माले को दी तो भाजपा के लिए थोड़ी मुश्किल हो सकती है. इसी प्रकार बगोदर सीट की बात की जाए तो यहां माले और भाजपा में ही मुख्य मुकाबला होता रहा है. पिछले चुनाव में माले के विनोद सिंह यहां से चुनाव जीते. भाजपा के नागेंद्र महतो यहां उम्मीदवार थे. 2019 में यहां कांग्रेस भी चुनाव लड़ रही थी. इस प्रकार अगर यह सीट माले के खाते में गई तो भाजपा के लिए कठिनाई हो सकती है. इसके अलावे भी माले झारखंड की अन्य सीटों पर दावा कर सकती है. पार्टी में विलय से एक फायदा तो साफ दिख रहा है कि माले की ताकत बढ़ गई है, लेकिन मासस का वजूद अब खत्म हो गया है. भाकपा (माले) इंडिया गठबंधन से अधिक सीट लेने की कोशिश करेगी तो उम्मीदवारों के चयन में भी कुछ ना कुछ पेंच फंस सकता है. अब देखना है कि इतिहास बनी पूर्व सांसद सांसद एके राय की पार्टी के नेताओं को इससे कितना लाभ मिल पाता है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
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