जमशेदपुर(JAMSHEDPUR):झारखंड के आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व टुशु में गुड़ पीठा का एक अलग ही महत्व होता है, जिस गुड़ को खजूर के रस से गांव की पद्धति से बनाया जाता है, जिसे जमीन में बने सांचे में डाल कर जमाया जाता है, जिस कार्य को झारखंड में बंगाल से आए कारीगर करते है.उत्तर बिहार के मकर पर्व को झारखंड में आदिवासी लोग टुशु पर्व के नाम से मानते है, जिसमे विशेष खान पान और परमपरागत गीत संगीत का स्थान होता है, जिस टुशु पर्व में गुड़ पीठा का महत्व सबसे ज्यादा होता है जिसे बनाने की विधि भी परंपरागत होती है.
बंगाल के कारीगर बनाते हैं खजूर का गुड़
जमशेदपुर से लगभग 50 किमी दूर बंगाल की सीमा क्षेत्र पटमदा में इन दिनों बाजारों की डिमांड पर बंगाल के कारीगर खजूर का गुड़ बनाते है. जो सुबह सूर्य की पहली किरण के आते ही इस कड़ाके की ठंड में खजूर के पेड़ पर चढ़ जाते हैं और उसका रस उतारते हैं, जिसको एककत्रित कर घण्टो आग की आंच में ख़ौलाते हैं जब वह ठोस होने लगता है तब उसको जमीन में बने एक सांचा में डाला जाता है, और जब वह सूख कर कड़ा हो जाता है तब उसमें कागज लपेट बाजार में बिक्री के लिए भेजा जाता है.
टुशु पर्व की वजह से बढ़ी गुड़ की डिमांड
कारीगर बताते है कि मेहनत तो इसमें बहुत लगता है,लेकिन इस महीने में टुशु पर्व है तो इसकी वजह से गुड़ की डिमांड भी बहुत है. इस कारीगरी के लिए हम लोग बंगाल से आकर पूरे महीने पूरी लगन के साथ गुड़ बनाते हैं ताकि अत्यधिक लाभ कमा अपने घर को वापस जा सके.
रिपोर्ट-रंजीत ओझा
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