धनबाद (DHANBAD): रतन टाटा अब इस दुनिया में नहीं हैं,लेकिन उनके विचार, उनकी सफलता सदियों सदियों तक याद रखी जाएगी.
यह सब कथन असाधारण व्यक्तित्व के धनी उद्योग जगत के दिग्गज रतन टाटा के हैं. 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. रतन टाटा ने टाटा को भरोसे का दूसरा नाम देने में सफल रहे. वह एक सफल कारोबारी ही नहीं बल्कि बेहतरीन इंसान भी थे. 1991 से लेकर 2012 तक टाटा समूह के अध्यक्ष रहे और अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक अंतरिम अध्यक्ष बने. वह एक परोपकारी व्यक्ति थे. रतन टाटा 1962 में टाटा संस में शामिल हो गए. जहां उन्होंने कर्मियों के साथ फ्लोर पर काम किया. यह एक कठिन और मुश्किल काम था. लेकिन उन्होंने पारिवारिक व्यवसाय के बारे में अनुभव और समझ हासिल की. उसके बाद तो लगातार ऊंचाइयों की सीढ़ी चढ़ते रहे. रतन टाटा के निधन से देश को बड़ा नुकसान हुआ है. झारखंड तो उन्हें कभी भूल भी नहीं पाएगा. 2021 में जब वह अंतिम बार झारखंड के जमशेदपुर आए थे तो जो कहा था, उससे वह स्वयं ही भावुक नहीं हुए थे, बल्कि मौजूद लोगों को भी भावुक कर दिया था. कहा था कि इस बार तो आ गया, अगली बार पता नहीं अब कब आऊंगा. यह उनके आखिरी शब्द थे. जो उन्होंने 2021 में झारखंड के जमशेदपुर में कही थी. उनके इस शब्द ने सबको उस समय रुलाया था. आज जब वह नहीं रहे तो यह बात याद कर झारखंड के लोग एक बार फिर शोक में डूबा गए हैं.
ओडिशा के राज्यपाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने रतन टाटा को याद करते हुए कहा कि वह जाते-जाते झारखंड को रांची में कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र की बड़ी सौगात दे गए. नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाली कंपनी टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने देश को बहुत कुछ दिया. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रतन टाटा के निधन पर दुख जताते हुए कहा है कि झारखंड जैसे पिछड़े राज्य को विश्व में पहचान दिलाने वाले टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा के निधन पर एक दिन का राजकीय शोक की घोषणा की जाती है. रतन टाटा का लगाव धनबाद से भी बना रहा. धनबाद के जामाडोबा में वह आए थे.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
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