टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- 1932 के खतियान अधारित स्थानीय नीति विधेयक को राजभवन ने एकबार फिर लौटा दिया है .राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने विधानसभा को इस पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है. दरअसल, राजभवन ने विधेयक में शामिल कानूनी प्रावधानों पर अटर्नी जनरल से राय मांगी थी. जिस पर 15 नवंबर को राय मिलने के बाद राजभवन ने बिल को लौटा दिया. इसके साथ ही राज्यपाल ने संदेश के जरिए ,विधानसभा को अटर्नी जनरल की राय से अवगत करा दिया है. 1932 के खतियान आधारीत स्थानीय नीति के विधेयक के राज्यपाल द्वारा लौटाने से एकबार फिर मामला लटक गया है.
अटॉर्नी जनरल की सलाह के बाद लौटाया
अटॉर्नी जनरल ने अपने सुझाव में ये बात बतलायी कि स्थानीय व्यक्ति शब्द की परिभाषा लोगों की आकांक्षाओं के अनुकूल है. ये स्थानीय परिस्थितियों के लोकाचार और संस्कृति के साथ फिट बैठती है. लेकिन, इसमे ये लगता है कि धारा संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 16(2) का उल्लंघन कर सकती है. हालांकि, उनकी राय के मुताबिक पैरा 24 में इसे अमल करके बचाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि इस विधेयक के तहत राज्य सरकार तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियां केवल स्थानीय व्यक्तियों के ले आरक्षित होगी. बाकी लोगों की नियुक्तियों पर पूरी तरह से पाबंदी होगी. अटर्नी जनरल ने अपनी राय रखते हुए बताया कि तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों के आवेदन करने से अन्य लोगों को वंचित नहीं किया जा सकता. इसकी बजाए सुरक्षित तरीका ये है कि सभी चिजों में स्थानीय व्यक्तियों को सामान प्राथमिकता दी जाए. हालांकि, उन्होंने चतुर्थ ग्रेड के लिए स्थानीय व्यक्ति पर विचार किए जाने की बात बताई. इधर, राज्यपाल ने कहा है कि राज्य सरकार चाहे तो स्थानीय के लिए तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पद पांच साल के लिए आरक्षित कर सकती है.
1932 का खतियान और सियासत
दरअसल 1932 के खतियान की अहमियत और इसे लेकर कितनी सियासत सड़क से लेकर सदन तक होती रही है. ये तो प्रदेश का आम आवाम बखूबी समझता है. झारखंड के वजूद में आने के बाद से ही इसे लेकर आंदोलन होते रहे है और इसकी तपिश से गर्माहट बनीं रहती है. लगातार बढते दबाव और आंदोलन से तपते सूबे को देखते हुए, पिछले 11 नवंबर को हेमंत सरकार ने विधानसभा में विशेष सत्र बुलाकर इस विधेयक को पारित किया गया था . इसके बाद इसकी मंजूरी के लिए राजभवन भेजा गया था. जनवरी 2023 में तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने इस विधेयक को ये कहकर लोटा दिया था कि वैधानिकता की गंभीरतापूर्वक समीक्षा करके देख लें कि यह संविधान के अनुरुप है या नहीं. यह भी देखें कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना तो नहीं हो रही है. 1932 खतियान के इस विधेयक को एकबार फिर झारखंड के वर्तमान राज्यपाल ने अटर्नी जनरल की राय लेकर इसे वापस कर दिया औऱ विधानसभा को इसमे पुनर्विचार करने के लिए कहा है.
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