लोहरदगा(LOHARDAGA): झारखंड सरकार की ओर से बिरहोर जाति के लोगों को विलुप्त होने से बचाने के लिए तरह-तरह की योजनाएं और कार्यक्रम चलाए जाते है. ताकि इन लोगों को को अच्छी जिंदगी दी जा सके. इनको भी सामान्य रूप से राज्य के अन्य लोगों की तरह सभी सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हो. लेकिन इन लोगों की जो दुर्दशा आये दिन देखने को मिलती है. उसको देखकर लगता है कि सरकार की सारी कोशिशें नाकाम हो रही है. लोहरदगा में भी 25 बिरहोर परिवार बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
21वीं सदी में भी मूलभूत सुविधाओं से दूर है बिरहोर जाति के लोग
आपको बतायें कि किस्को प्रखंड मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर जंगल के किनारे स्थित सेमरडीह रूगड़ी टोली गांव के 25 बिरहोर परिवार मुश्किल से अपनी जिंदगी का गुजर बसर कर रहे हैं. समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े इन परिवारों के सामने आज भी कई समस्याएं ठीक वैसे ही खड़ी है. जैसे कुछ दसक पहले थी. आज भी इनके गांव में बिजली, पानी, बेहतर आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था दूर हैं.
आज भी नदी के पानी पर है निर्भर
दो दशक पहले सरकार की ओर से आवंटित आवास भी काफी जर्जर हो चुके हैं. जिसमें रहना काफी खतरनाक है. प्रशासन की ओर से 19 बिरहोर परिवारों में से 5 परिवारों को आवास आवंटित किया गया है. बरसात के आने पर रात गुजारना काफी मुश्किल हो जाएगा. गांव में पीएचईडी की ओर से लगाया गया चापाकल से पीने योग्य पानी नहीं निकलता है. शौचालय और नल जल योजना ने भी दम तोड दिया है.
स्कूल बंद होने से जनजाति समुदाय के बच्चे शिक्षा वंचित हो गए
बिरहोर परिवार आज भी नदी के पानी पर ही निर्भर हैं. कॉलोनी में बना प्राथमिक विद्यालय के बंद होने से आदिम जनजाति समुदाय के बच्चे शिक्षा वंचित हो गए हैं. ग्रामीणों को प्राथमिक इलाज के लिए भी गांव से 3 किमी दूर प्रखंड मुख्यालय स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में आना पड़ता है.
पोषण युक्त खाने के नाम पर पानी भात और नमक ही मिलता है
वर्षो पहले स्वरोजगार के लिए दिया गई दोना पत्तल बनाने की मशीन कबाड़ बन गई है. उजव्ला योजना से मिला गैस कनेक्शन में गैस रीफिल करने के पैसे तक इनके पास नहीं है. जिसकी वजह से घर का खाना लकड़ी के चूल्हा पर ही बनता है. यहां सरकार की योजनाएं आते-आते दम तोड़ देती है. थाली में पोषण युक्त खाने के नाम पर पानी भात और नमक ही मिलता है.
डीसी डॉ वाघमारे प्रसाद कृष्ण ने रोजगार से जोड़ने की कही बात
वहीं इस पर सवाल करने पर जिले के डीसी डॉ वाघमारे प्रसाद कृष्ण एक बार फिर से दोना पत्तल बनाने की बिजली संचालित मशीन से बिरहोर परिवार को रोजगार से जोड़ने की बात कह रहे है.ताकि इनको रोजगार मिल सके और ये अपना जीवन सामान्य रुप से व्यतीत कर सकें.
रिपोर्ट-गौतम लेनिन
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