धनबाद(DHANBAD): कद्दावर विधायक रहे महेंद्र सिंह, जिनकी आवाज में खनक थी. बोली में आत्मविश्वास था, लोगों का उन पर भरोसा था. जनता की सेवा के लिए समर्पित थे. यह समर्पण उनका शहीद होने के समय तक कायम रहा. जब हत्यारे सभा स्थल पर पहुंचकर पूछा कि महेंद्र सिंह कौन है- तो वह अपने साथियों को बचाने के लिए कहा कि- हां मैं ही हूं महेंद्र सिंह. उसके बाद तो उन पर गोलियों की बौछार कर दी गई. 11 जनवरी 2005 को उन्होंने कहा था कि मैं मर जा सकता हूं, लेकिन जनता के सवालों से समझौता नहीं कर सकता. झूठ नहीं बोल सकता हूं, महेंद्र सिंह जन संघर्षों की बदौलत उपजे नेता थे.
बगोदर से तीन बार चुने गए थे विधायक
महेंद्र सिंह एक ऐसे नेता थे, जिनकी 2005 में हत्या के बाद आज भी हजारों लोग बगोदर पहुंच कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते है. दूसरी जगह पर भी दी जाती है. सरिया थाना क्षेत्र के सुदरवर्ती इलाके में चुनावी कार्यक्रम में उनकी हत्या कर दी गई. 2005 में झारखंड का दूसरा विधानसभा चुनाव हो रहा था. बाइक पर सवार होकर अपराधी पहुंचे थे और उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया. इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है. झारखंड की राजनीति की बात होगी तो महेंद्र सिंह का नाम जरूर लिया जाएगा. जो लोग भी उनके संपर्क में आए होंगे, उनकी कानों में आज भी महेंद्र सिंह की वह खनकती हुई आवाज गूंजती होगी. सादा जीवन, गरीबों की आवाज को बुलंद करने के लिए बगोदर की बात कौन करें, झारखंड और बिहार में भी जाने जाते थे.
महेंद्र सिंह सच को सच कहने की हिम्मत रखते थे
महेंद्र सिंह सच को सच कहने की हिम्मत रखते थे. यही वजह थी कि सामने जब मौत खड़ी थी, फिर भी उन्होंने हौसले नहीं हारे. 1954 में बगोदर प्रखंड के खंभरा गांव में जन्मे महेंद्र सिंह 1970 में सीपीआई एमएल से जुड़कर गांव से राजनीतिक सफर शुरू की. शुरुआती दौर में महाजनी प्रथा का विरोध किया. 1978 में वह आपीएफ से जुड़कर राजनीतिक पारी की जोरदार शुरुआत की और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. महेंद्र सिंह बगोदर विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार चुनाव जीते. एकीकृत बिहार में उन्होंने दो बार विधानसभा का चुनाव जीता था. पहली बार 1990 में और दूसरी बार 1995 में. 2005 में जब विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई तो महेंद्र सिंह फिर चुनावी रणभूमि में उतरे.
18 जनवरी'2005 को निकली थी उनकी शव यात्रा
16 जनवरी'2005 को उनकी हत्या हुई और 18 जनवरी को उनकी शव यात्रा निकली. जिसने भी यह शव यात्रा देखि होगी, उन्हें आज भी महेंद्र सिंह के प्रति जनता का प्यार याद दिला रहा होगा. लोग कहा करते थे कि राजनीति सीखनी है तो पॉलीटिशियन को बगोदर जाना चाहिए. मैंने तो शव यात्रा देखि थी. बच्चों की सिसकती आवाज सुनी थी. कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे उनके शव के अगल-बगल लोगों को जमे हुए देखा था. इलाके में स्कूल बंद थे, बच्चे स्कूल की पोशाक में स्कूल जाने के बजाय महेंद्र सिंह की शव यात्रा में शामिल थे. घरों में चूल्हे बंद थे. आंकड़े तो उनके जुबान पर रहते थे. उनके प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए होमवर्क कर जाना पड़ता था. महेंद्र सिंह जहां खड़े हो जाते थे, लाइन वहीं से शुरू होती थी. महेंद्र सिंह के शहादत के बाद उनके पुत्र विनोद सिंह बगोदर से विधायक बने जरूर, लेकिन वह बात अब कहां, यह अलग बात है कि 2024 के विधानसभा चुनाव में वह चुनाव हार गए. उसके पहले लोकसभा चुनाव में भी उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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