दुमका(DUMKA):भारत में मनोरंजन की प्राचीन कला में से एक है सर्कस. सर्कस का नाम जेहन में आते ही नजर के सामने ट्रेनर की हंटर पर नाचते जंगली जानवर और लोगों को हंसाने वाले जोकर की छवि उभर कर सामने आती है, लेकिन समय बदला, नियम बदले और जंगली जानवर पर प्रतिबंधित लगा दिया गया. सर्कस से जंगली जानवर के आउट होते ही इसका क्रेज़ कुछ कम हुआ और रही सही कसर इंटरनेट और स्मार्ट फोन ने पूरी कर दी. संक्रमण के दौर से गुजर रहे सर्कस उद्योग को संचालित करना किसी चुनौती से कम नहीं, इसके बाबजूद कुछ कंपनी मनोरंजन के प्राचीन विघा को जीवित रखने के लिए प्रयासरत है. उसी में एक नाम है ग्रेट जैमिनी सर्कस.
मनोरंजन के प्राचीन परंपरा को संजो रहा है ग्रेट जैमिनी सर्कस
दुमका के गांधी मैदान में सोमवार की शाम सीओ यामुन रविदास और जिप सदस्य जय जयंती ने ग्रेट जैमीनी सर्कस का उद्घाटन किया है. अन्य सर्कसों की तरह इस सर्कस में भी जानवर तो नहीं है, लेकिन अफ्रीका के केनिया से आये आधा दर्ज कलाकार र्जिम्नास्टिक के माध्यम से कला का अद्भूत प्रदर्शन कर लोगों को लुभाएंगे. सर्कस के प्रबंधक ए.के. सिंह ने बताया कि सकर्स का रोजाना तीन शो दोपहर 1 बजे, दोपहर के 4 बजे और और शाम के 7 बजे होगा, और 8 अक्टूबर को सर्कस के कलाकार दुमका में अपना अंतिम प्रदर्शन करेंगे. एक साथ 1200 लोग बैठकर इसका आनंद उठा सकते हैं. कानपुर निवासी कुल्लू बाबू और इन्दौर के मां अहिल्या एम्युजमेंट के निदेशक नरेश लश्करी ने प्राचीन सर्कस कला को संयोजित और संरक्षित करने के लिए ग्रेट जैमिनी सर्कस चला रहे है. फ्लाईग ट्रोपिस, ग्लोब राईडिंग, अफ्रीकन जिम्नास्ट, रिंग डांस, फायर डांस, आदि जैमिनी सर्कस के विशेष रोमांचकारी आकर्षण हैं.
दुमकावासियों को लुभायेंगे केनिया के कलाकार
मैनेजर एके सिंह का कहना है कि सर्कस चलाना बहुत ही कठिन काम है, उनके सर्कस में 100 से ज्यादा लोग काम करते हैं. इनमें से 47 कलाकार है, जिनमे 18 महिलाएं शामिल हैं. सबके रहने और खानपान की जिम्मेदारी सर्कस कंपनी की होती है. सभी कलाकार नहीं होते, लेकिन वे एक-दूसरे से जुड़े होते हैं. कुछ का काम होता है तंबू लगाना, उखाड़ना और उनकी देखभाल करना, प्रचार प्रसार करना. खेल दिखाने वाले कलाकार तो होते ही हैं, लेकिन उन्हें कब और क्या चाहिए और कई बार जब उनका शो खराब हो रहा होता है, तो कैसे जोकर और अन्य लोग उस शो को संभाल लेते हैं, यह देखते ही बनता है.
जानवर सर्कस का मुख्य आकर्षण होते थे
सर्कस में पहले जानवरों का बहुत इस्तेमाल होता था. शेर, बंदर, भालू, घोड़े, पक्षी और हाथी जैसे कई जानवर अपने मास्टर के हंटर पर खूब नाचते थे. साल 1998 में भारत सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाद से ही सर्कस की पापुलेरिटी में कमी आई. 2013 में सरकार ने सर्कस में बच्चों के काम करने पर भी रोक लगा दी. मैनेजर एके सिंह कहते हैं कि जानवर सर्कस का मुख्य आकर्षण होते थे. अब सरकार ने सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल प्रतिबंधित कर दिया है. टीवी, वीडियो गेम, सोसल मीडिया और इंटरनेट ने रही सही कसर पूरी कर दी है. सर्कस उद्योग में अब गिने-चुने ट्रेनर बचे हैं.
पिछले 22 वर्षों में 210 सर्कस बंद हो चुके हैं
पहले सर्कस में शेरों के करतब, हाथी का फुटबॉल खेलना और अन्य जानवरों का रोमांचकारी और आकर्षक प्रदर्शन हुआ करता था, लेकिन भारत में किसी भी प्रकार के जानवरों का प्रदर्शन प्रतिबंधित होने की वजह से सर्कस अपने मुश्किल दौर से गुजर रहा है. आकड़े बताते है कि वर्ष 2000 में जहां भारत में 219 सर्कस निबंधित थे, वहीं अब इनकी संख्या घटकर 9 रह गयी है. यानि पिछले 22 वर्षों में 210 सर्कस बंद हो चुके हैं.
राज कपुर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ जेमिनी सर्कस से प्रेरित थी
जानकर बताते हैं कि राज कपुर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ जेमिनी सर्कस से प्रेरित थी.‘जेमिनी सर्कस’ के संस्थापक और भारतीय सर्कस के दिग्गज जेमिनी शंकरन के नाम से विख्यात मुरकोथ वेंगाकांडी शंकरन का इसी वर्ष 23 अप्रैल को 99 साल के उम्र में निधन हो गया. भारतीय सर्कस के आधुनिकीकरण और विदेशी कलाकारों के करतबों को इसमें शामिल करने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई.उन्होंने 1951 में विजया सर्कस कंपनी खरीदी और इसका नाम बदलकर जेमिनी सर्कस कर दिया, क्योंकि उनके जन्म की राशि जेमिनी थी. बाद में दूसरी सर्कस कंपनी जंबो सर्कस और फिर द ग्रेट रॉयल सर्कस की भी शुरुआत की. जेमिनी सर्कस कंपनी के पास 20 हाथी, 40 शेर, 15 बाघ, 30 घोड़े, 6 ऊंट, 3 भालू, 3 जेबरा और 2 सी लायंस थे. इनमे से कई जानवरों को विदेशों से खरीदा गया था. केंद्र सरकार ने देश में सर्कस के क्षेत्र में शंकरन के योगदान को देखते हुए उन्हें ‘लाइफटाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार से सम्मानित किया था.
रिपोर्ट-पंचम झा
4+