धनबाद(DHANBAD): झारखंड सरकार सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए ड्रेस कोड व्यवस्था लागू कर दी है. हर विभाग के कर्मचारियों के लिए अलग-अलग ड्रेस कोड निर्धारित किया गया है. कर्मचारियों की वर्दी पर उनका ब्यौरा होगा यानी वर्दी पर उनका नाम, पदनाम एवं संस्थान का नाम लिखा होगा. सुरक्षाकर्मियों को छोड़कर सभी को गांधी टोपी पहननी होगी. सरकार द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड के अनुसार हाउसकीपिंग सर्विस स्टाफ के कपड़ों का रंग ब्लू, सिक्योरिटी सर्विस के स्टाफ के लिए मैरून, जनरल सर्विस के लिए ग्रे, पारा मेडिकल और टेक्निकल स्टाफ के लिए पीला, खाने पीने वाले विभाग के लिए ग्रीन और लॉन्ड्री सर्विस के कर्मियों के लिए कपड़े का रंग उजला होगा. पुरुषों को संबंधित रंग की पैंट, शर्ट, मौजा और जूता पहनना है. महिलाएं संबंधित रंग का सलवार सूट अथवा संबंधित रंग की पट्टी वाली सफेद साड़ी और ब्लाउज पहन सकती हैं. यह तो हुई ड्रेस कोड की बात, इधर स्वास्थ्य विभाग ने अभी हाल ही में विशेष टीम का गठन कर कम से कम 3 जिलों के सरकारी अस्पताल का निरीक्षण करवाया है. इन सरकारी अस्पतालों में धनबाद, गुमला और पलामू शामिल है. तकनीकी कारणों से हजारीबाग और जमशेदपुर के अस्पतालों का निरीक्षण नहीं हो सका. निरीक्षण में जो रिपोर्ट सामने आई है, वह चौंकाने वाली है.
ये हालात हैं सरकारी अस्पताल के
रिपोर्ट के मुताबिक रांची के रिम्स की ही नहीं, अन्य जिलों के अस्पतालों की हालत भी खराब है .हालांकि कार्यक्रम औचक निरीक्षण का था लेकिन किसी न किसी वजह से यह सूचना लीक हो गई. इसको लेकर अस्पतालों में तैयारी की गई थी बावजूद कई तरह की खामियां सामने आई. सूत्रों के अनुसार धनबाद में तो ऑपरेशन में उपयोग में आने वाले उपकरण में जंग पाया गया. उपकरणों को स्टरलाइज करने वाली मशीनों की स्थिति भी खराब मिली. हालत यह है कि उनका इस्तेमाल अगर किया जाए तो मरीज संक्रमित हो सकते हैं. यह सब धनबाद के सदर अस्पताल में पाया गया है. धनबाद के एसएन एमएमसीएच की भी स्थिति अच्छी नहीं है. मरीज तो है लेकिन उनके बेड पर चादर गंदे मिले. पैथोलॉजी विभाग में लाखों की किट अगले महीने एक्सपायर होने वाले हैं.
गुमला सदर अस्पताल में भीड़ अधिक है. वहां जैसे तैसे मरीजों का इलाज हो रहा है. रिकॉर्ड भी अस्त-व्यस्त है. सैकड़ों मरीजों के लिए जहां खाना बनता है, वहां केवल एक कर्मचारी काम करता मिला. पलामू मेडिकल कॉलेज में तो मरीजों को दी जाने वाली दवाओं में ही मनमाफिक खरीदारी कर लाखों के बारे न्यारे किए गए हैं. पलामू मेडिकल कॉलेज के लिए तो सिविल सर्जन ऑफिस ने बिना किसी टेंडर के दवाई खरीद ली है. झारखंड प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है. उपचार में लगने वाले बेसिक सामान भी मरीजों को बाहर से खरीदने पड़ते हैं.सवाल है कि बेसिक गड़बड़ी को सुधारे बिना ड्रेस कोड भर से ही मरीजों को राहत मिल जाएगी क्या.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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