CMPFO की गूंज लोकसभा में : मंत्री से सवाल-कैसे डूब गए 727 करोड़, जिम्मेवार पर क्या हुई कार्रवाई ?

धनबाद (DHANBAD): कोयलाकर्मियों के बुढ़ापे की लाठी कहे जाने वाले कोयला खान भविष्य निधि संगठन (CMPFO) की गूंज लोकसभा में सुनाई दी.
लोकसभा में कोयला खान भविष्य निधि संगठन की राशि दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉरपोरेशन(DHLF) में डूबने का मामला संसद में उठा. महाराष्ट्र के रामटेक संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस सांसद ने इस मामले को उठाया. उन्होंने कोयला मंत्री से सवाल पूछा कि 2014-15 में सीएमपीएफओ ने डीएचएफएल में 1390 करोड़ निवेश किया. इसमें से 663 करोड वापस हुए और 727 करोड रुपए डूब गए. कैग ने भी इस बारे में भी अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है.
कोयला मजदूरों की कमी डुबोने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं
लेकिन कोयला मजदूरों की कमाई डूबने वाले संस्थान के अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. बता दे कि CMPFO की वित्तीय हाल कमजोर हो गई है. अभी हाल ही में कोल् इंडिया ने प्रति टन दस रुपये की जगह CMPFO कोष में बीस रुपये प्रति टन देने का निर्णय लिया है. सीएमपीएफओ के अस्तित्व पर लगातार सवाल खड़े किए जा रहे है. यह मांग उठ रही है कि सीएमपीएफओ का विलय कर दिया जाए. यह अलग बात है कि कोयलाकर्मियों की भविष्य निधि राशि की देखभाल करने वाला संगठन सीएमपीएफओ की ब्याज दर में लगातार कमी हो रही है. दूसरी ओर ईपीएफओ में ब्याज दर सीएमपीएफओ से अधिक है.
सीएमपीएफओ बोर्ड ने 24- 25 के लिए 7.6 प्रतिशत ब्याज दर
ईपीएफओ ने जहां 24-25 के लिए 8.25 प्रतिशत ब्याज दर की अनुशंसा की है, तो सीएमपीएफओ बोर्ड ने 24- 25 के लिए 7.6 प्रतिशत ब्याज दर की अनुशंसा की है. यह कहना गलत नहीं होगा कि भविष्य निधि को बुढ़ापे की लाठी माना जाता है. इसी पैसे के सहारे सेवानिवृत कर्मी अपना जीवन यापन करते है. कोयलाकर्मियों कि भविष्य निधि राशि की देखभाल करने वाले संगठन में ब्याज दर कम है. इस वजह से कोयलाकर्मियों को आर्थिक क्षति हो रही है. अब तो यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि सीएमपीएफओ को ईपीएफओ में विलय कर दिया जाए. हालांकि यह कोई नया प्रस्ताव नहीं है. यह पुराना प्रस्ताव है. वैसे कोल माइंस पेंशनर्स एसोसिएशन सीएमपीएफओ को कोल इंडिया में विलय करने की वकालत कर रहा है. यह अलग बात है कि 2016-17 में केंद्र सरकार की ओर से सीएमपीएफओ को ईपीएफओ में विलय का प्रस्ताव लाया गया था. उस समय कोयला उद्योग में संचालित मजदूर संगठन ताकतवर थे.
मजदूर संगठनों के विरोध के कारण नहीं हुआ
मजदूर संगठनों के विरोध के कारण यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया. उस समय विलय की योजना बना ली गई थी. अब जाकर, सीएमपीएफओ को मजबूत करने के लिए कोल इंडिया मैनेजमेंट ने प्रति टन कोयले पर ₹20 देने का प्रस्ताव किया है. सीएमपीएफओ की राशि में गड़बड़ी और दुरुपयोग करने के भी आरोप लगते रहे है. सूत्रों के अनुसार सितंबर 2020 से कोल इंडिया ₹10 प्रति टन सहयोग राशि पेंशन फंड में देती आ रही है. लेकिन अब ₹20 प्रति टन देगी. फिलहाल सीएमपीएफओ में पेंशन लेने वालों की संख्या अधिक है, जबकि पेंशन फंड में अंशदान करने वालों की संख्या लगातार घट रही है. दरअसल, 2000 में कोयलाकर्मियों को 12% की दर से ब्याज मिलता था. जो घटते-घटते अब 2025 में 7.6 0% हो गया है. 2024 में भी 7.6 0% ही था. जबकि उसके पहले के वर्ष में अधिक था.
ब्याज की दर बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक में तय होता है
बता दें कि कोयलाकर्मियों को प्रोविडेंट फंड पर मिलने वाले ब्याज की दर बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक में तय होता है. इसके अध्यक्ष कोयला सचिव होते है. ज्यादातर सदस्य सरकार के अधिकारी या उनके मनोनित प्रतिनिधि होते है. ब्याज दर का निर्धारण बहुमत के आधार पर होता है. इसमें ट्रेड यूनियन के चार प्रतिनिधि बैठते है. यही वजह है कि यूनियन के बहुत विरोध का असर बैठक में नहीं हो पाता. कोयलाकर्मियों के मूल वेतन से 12 फ़ीसदी राशि कटती है. उतनी प्रतिशत राशि कोयला कंपनिया देती है. बताया जाता है कि सरकार कोयलाकर्मियों का पैसा शेयर में लगाती है. मजदूर संगठन इसका विरोध करता रहा है. शेयर में पैसा डूबने का असर कोयलाकर्मियों की आय पर पड़ता है. यही वजह है कि एक समय 12% तक ब्याज मिलता था, जो आज घटकर 7.60% हो गया है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
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