दुमका(DUMKA): 30 जून 1855 के दिन इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में दर्ज है. इसी दिन वर्तमान झारखंड के साहेबगंज जिला के भोगनाडीह गांव से संताल हूल विद्रोह की शुरुवात हुई थी. विद्रोह के नायक थे सिदो, कान्हू, चांद और भैरव नामक 4 भाई तथा फूलो और झानो नामक दो बहनें. वैसे तो यह आंदोलन महाजनी प्रथा के विरोध में शुरू हुआ था लेकिन विद्रोह के स्वरूप ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला कर रख दी थी. वैसे तो ब्रिटिश हुकूमत ने इस विद्रोह को बर्बरता पूर्वक दबा दिया लेकिन आंदोलन की चिंगारी सुलगती रही और अंत में 15 अगस्त 1947 को भारत देश आजाद हुआ.
2005 से निकाली जा रही पदयात्रा
30 जून आने वाला है. संताल हूल विद्रोह की याद में प्रत्येक वर्ष 30 जून को ना केवल भोगनाडीह बल्कि पूरे राज्य में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. संताल परगना प्रमंडल खासकर दुमका जिला में हूल दिवस के पूर्व ही कार्यक्रम की शुरुवात हो जाती है. 2005 से गोटा भारोत सिदो कान्हू हूल बैसी के बैनर तले दुमका के सिदो कान्हू चौक से 26 जून को पदयात्रा निकाली जाती है. समारोह पूर्वक सिदो कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद पदयात्री को झंडी दिखा कर भोगनाडीह के लिए रवाना किया जाता है. कार्यक्रम में जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि और शहर के गणमान्य शरीक होते है.
सोमवार को सिदो कान्हू चौक से पदयात्रियों को डीसी रविशंकर शुक्ला, पूर्व मंत्री लुईस मरांडी सहित कई अधिकारियों और गणमान्य द्वारा झंडी दिखाकर रवाना किया गया. उत्सवी माहौल में मांदर की थाप पर झूमते गाते दर्जनों पदयात्री भोगनाडीह के लिए रवाना हो गए, जो 29 जून को भोगनाडीह पहुचेंगे. 30 जून को हूल दिवस के मौके पर सिदो कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे. रास्ते मे जगह जगह पदयात्रियों के स्वागत के लिए लोग खड़े रहते है.
पद यात्रा का उद्देश्य पुराने इतिहास को याद दिलाना
गोटा भारोत सिदो कान्हू हूल बैसी के संयोजक डॉ एएम सोरेन ने बताया कि पद यात्रा का उद्देश्य पुराने इतिहास को याद दिलाना है. वर्तमान पीढ़ी के लिए एक संदेश है कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हमारे पूर्वजों कैसे विद्रोह की शुरुवात की थी. उस वक्त ना तो रोड था और ना ही आवागमन का कोई साधन. इसके बाबजूद हजारों लोग भोगनाडीह में एकत्रित हो गए थे. पूर्वजों की कुर्बानी का ही नतीजा है कि आज हम स्वतंत्र देश मे सांस ले रहे है. समय के साथ साथ 26 जून को दुमका के सिदो कान्हू चौक से निकलने वाले पदयात्रा का महत्व बढ़ता जा रहा है. ना केबल पदयात्रियों को बल्कि आम लोगों को भी इस दिन का इंतजार रहता है. यही वजह है कि उत्तरोत्तर पदयात्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है.
रिपोर्ट: पंचम झा
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