धनबाद(DHANBAD): मंगलवार को झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता धनबाद में थे. विधानसभा अध्यक्ष रविन्द्र महतो एवं झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय नेता विनोद पांडे भी पहुंचे हुए थे. मौका था मणीन्द्र मंडल की प्रतिमा का अनावरण का. विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र महतो ने कहा कि झारखंड बनने के पहले झारखंडियों की स्थिति विचित्र हो गई थी. बंगाल वाले भी स्वीकार करने को तैयार नहीं थे, बिहार वाले भी स्वीकार नहीं करते थे, उड़ीसा वाले भी स्वीकार करने को तैयार नहीं थे. लेकिन धनबाद से उठी चिंगारी के बाद झारखंड राज्य बना. हालांकि इसके लिए बहुतों को अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी थी. लेकिन झारखंड राज्य बना और झारखंडियों को पहचान मिली. अब उनकी पहचान झारखंडी है. मणीन्द्र मंडल की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि गुरु जी की अगुवाई में उन्होंने झारखंड आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
12 अक्टूबर 1994 को हुई थी हत्या
बता दें कि मणीन्द्र मंडल की हत्या 12 अक्टूबर 1994 को धनबाद के सरायढेला में घर के समीप गोली मारकर कर दी गई थी. 5 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद उनकी मौत हो गई थी. वह समय भी दुर्गा पूजा का ही था. जिस समय मणीन्द्र मंडल की हत्या हुई, उस समय वह धनबाद जिला झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष थे. 12 अक्टूबर को ही देर रात शिबू सोरेन धनबाद पहुंचे थे. 17 अक्टूबर को इलाज के दौरान मणीन्द्र मंडल की अस्पताल में मौत हो गई थी. 12 अक्टूबर को ही सूर्यदेव सिंह के बड़े बेटे राजीव रंजन सिंह सहित अन्य को हत्या के आरोप में तोपचांची थाना क्षेत्र में गिरफ्तार किया गया था. उस समय धनबाद के एसपी दिनेश सिंह बिष्ट हुआ करते थे. दरअसल विवाद की शुरुआत हुई थी गाड़ी पासिंग को लेकर. पूजा पंडाल को लेकर बैरियर बनाया गया था. गाड़ी पासिंग को लेकर विवाद हुआ और मणीन्द्र मंडल की हत्या कर दी गई.
हत्या का आरोप सूर्यदेव सिंह के बड़े बेटे राजीव रंजन सिंह पर लगा था
बुजुर्ग लोग बताते हैं कि मणीन्द्र मंडल की हत्या करने के बाद राजीव रंजन सिंह सहित अन्य लोग गोविंदपुर होते हुए तोपचांची की ओर बढ़ रहे थे कि तोपचांची में उन्हें पकड़ लिया गया. मणीन्द्र मंडल की हत्या की सूचना जंगल की आग की तरफ फैली और पुलिस महकमा सक्रिय हो गया. जीटी रोड पर पुलिस "एंबुश" लगाकर वाहनों की जांच पड़ताल शुरू की. लेकिन राजीव रंजन सिंह की जिप्सी बरवाअड्डा , राजगंज थाने को पार करते हुए तोपचांची पहुंच गई . तोपचांची में गाड़ी जब पुलिस ने रोका तो सभी उतरकर पैदल भागने लगे. इसबीच छर्रा मारकर उन्हें घायल कर दिया गया था. हालांकि उस समय भी विवाद उठा था कि पुलिस के पास ऐसा कौन सा हथियार है, जिसे छर्रा निकल सकता है. जो भी हो 5 दिनों तक इलाज के बाद 17 अक्टूबर को मणीन्द्र मंडल की मौत हो गई. मंगलवार को उनके प्रतिमा का अनावरण किया गया.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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