धनबाद(DHANBAD): धनबाद दशकों से प्रदूषण से जंग लड़ रहा है. इस साल भी 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मानेगा. इस बार पृथ्वी दिवस का थीम है "ग्रह बनाम प्लास्टिक". धनबाद के लोग पूरी तरह से प्रदूषण की चपेट में है. 22 अप्रैल को चुनाव का रंग रहेगा, सवाल उठता है कि क्या धनबाद में प्रदूषण कभी चुनावी मुद्दा बन सकता है. वैसे धनबाद में समस्याओं की कमी नहीं है. धनबाद के सांसद बदलते रहे लेकिन चुनावी मुद्दा कभी नहीं बदला. प्रदूषण आज की सबसे बड़ी समस्या बन गई है. सरकारी आदेश में तो इसके रोकथाम के उपाय किए गए लेकिन जमीन पर लगातार कार्रवाई कभी होती नहीं है. नतीजा है कि अब प्रदूषण लोगों की जान ले रहा है. धनबाद जैसे प्रदूषित शहर में प्लास्टिक के साथ-साथ प्रदूषित हवा सहित अन्य कारकों के खिलाफ भी आवाज उठानी चाहिए. लेकिन यहां फिर वही सवाल है कि उठाएगा कौन.
प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग दुनिया के लिए खतरा है
प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग दुनिया के लिए चुनौती है. धनबाद जैसे प्रदूषित शहर में भी प्लास्टिक का उपयोग रोकने के लिए कोई कारगर पहल नहीं की जाती है. प्लास्टिक और बढ़ता वायु प्रदूषण यहां के लिए सबसे बड़ा खतरा है. औद्योगिक उत्पादन इकाई खासकर कोयला उत्पादन के दौरान निकलने वाली गैस और धुएं से प्रदूषण बढ़ता है. खनन निर्माण एवं औद्योगिक इकाइयों को स्थापित करने के लिए लगातार पेड़ों की कटाई हो रही है. दामोदर में कचरा तथा हानिकारक पदार्थों का विसर्जन हो रहा है. सड़कों पर वाहनों की बढ़ती संख्या भी प्रमुख कारण है. कोयला ढुलाई एवं ठोस कचरे को खुली हवा में फेंकना भी एक बड़ी समस्या है. एक समय तो धनबाद में नए उद्योग खोलने तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. अभी चुनाव का रंग है, ऐसे में क्या प्रदूषण धनबाद में चुनाव का मुद्दा बनेगा. झरिया में यूथ कॉन्सेप्ट नामक संस्था ने प्रदूषण के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है. झरिया के बच्चे तक कह रहे हैं कि उन्हें खुली हवा में सांस लेने के अधिकार से उन्हें वंचित किया जा रहा है. बड़े बुजुर्गों के साथ-साथ बच्चे भी प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे है. दामोदर नदी का हाल भी ठीक नहीं है. यह नदी झारखंड में यह 290 किलोमीटर सफर तय करती है फिर पश्चिम बंगाल में 240 किलोमीटर का सफर तय कर हुगली नदी में मिल जाती है. झारखंड के पलामू से निकलकर यह हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद होते हुए बंगाल में प्रवेश करती है.
धनबाद और बोकारो इलाके में सकरी हो गई है दामोदर नदी
धनबाद और बोकारो इलाके में नदी सकरी हो गई है और प्रदूषण से कराह रही है. दामोदर नदी को बचाने के लिए आंदोलन भी हुए, लेकिन इसका प्रदूषण घटता नहीं है. इस नदी का अपना इतिहास भी है. इस नदी को बाढ़ की विध्वंसकारी विभीषिका के रूप में भी जाना जाता था. लेकिन आजादी के बाद इसके प्रलयंकारी स्वरूप को कम करने के लिए और इसके पानी का उपयोग करने के लिए दामोदर घाटी परियोजना की संरचना हुई. इसके बाद बाढ़ का प्रलय थमा और नई-नई सिंचाई परियोजनाएं तथा पन बिजली उत्पादन केंद्र की स्थापना हुई. झरिया कोयलांचल में तो इसी नदी के पानी से जलापूर्ति होती है, लोग पीने में इस्तेमाल करते है.भूमिगत आग ,धसान कोयलांचल की बड़ी समस्या है लेकिन इसके खिलाफ आवाज़ मजबूती से नहीं उठती. अगर उठती भी है तो दबा दी जाती है. देखना होगा कि पृथ्वी दिवस के बाद भी आवाज़ उठती है या यह नक्कारखाने में टूटी की आवाज़ बनकर रह जाती है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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