धनबाद(DHANBAD) | धनबाद लोकसभा सीट से पशुपति नाथ सिंह भाजपा के ऐसे उम्मीदवार रहे, जिनका चुनाव दर चुनाव मत प्रतिशत बढ़ता रहा. ऐसा क्यों हुआ, इसका आकलन लोग अपने-अपने ढंग से करते है. यह बात तो तय है कि पशुपतिनाथ सिंह ने धनबाद में आजाद शत्रु की छवि बनाने में कामयाब रहे है. जाति धर्म से ऊपर उठकर उन्होंने जमात की राजनीति की. उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि सभी दल के लोगो से उनके मधुर संबंध रहे है. कोयले के कारोबार से दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं रहा. शायद यही वजह है कि उनके समर्थकों की संख्या चुनाव दर चुनाव बढ़ती चली गई. पहली बार उन्होंने 2009 में धनबाद लोकसभा से चुनाव लड़ा. उस समय उन्हें 2,60,521 वोट मिले थे. 2014 के चुनाव में पशुपति बाबू को 5,43,491 वोट मिले थे. जबकि 2019 में उन्हें 8,27,234 वोट प्राप्त हुए थे.
2019 के चुनाव में सबसे अधिक वोटो से जीतने का श्रेय भी
2019 के चुनाव में तो झारखंड में सबसे अधिक वोटो से जीतने वाले उम्मीदवार का श्रेय भी उन्हीं को जाता है. 2024 में उनका टिकट काट दिया गया है. अधिक उम्र इसकी वजह बताई जाती है. खैर ,धनबाद लोकसभा चुनाव इस बार सियासी मुकाबले को लेकर रोचक हो गया है. रोचक इसलिए भी हो गया है कि धनबाद लोकसभा का चुनाव अभी भी खुला हुआ है. वोटर भी सीधे तौर पर कुछ कहने से परहेज कर रहे है. यह जरूर कह रहे हैं कि समस्याएं बहुत है. चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी इलाके में आते नहीं है बावजूद प्रत्याशी जोर लगाए हुए है. जातीय संगठन सहित सामाजिक संगठनों को अपने पक्ष में करने की आजमाइश चल रही है. 23 मई को चुनाव प्रचार का अंतिम दिन होगा. भाजपा ने बाघमारा के विधायक ढुल्लू महतो को उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस ने बेरमो विधायक की पत्नी अनुपमा सिंह को उम्मीदवार बनाया है.
झारखंड में भाजपा और आजसू मिलकर चुनाव लड़ रहे
झारखंड में भाजपा और आजसू मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं तो कांग्रेस के समर्थन में झारखंड मुक्ति मोर्चा और राजद है. जातियों को गोलबंद करने के लिए पूर्व सांसद पप्पू यादव ने भी धनबाद का दौरा किया था और अभी भी अन्य कई लोगों का दौरा जारी है. यह अलग बात है कि धनबाद लोकसभा के कुछ विधानसभा क्षेत्र में वोटरों का मिजाज पढ़ने की कोशिश की गई तो कोई साफ सुथरी लकीर कहीं दिखाई नहीं पड़ी. धनबाद कोयला राजधानी है और यहां की राजनीति कोयले पर ही चमकती है. झक झक खादी की क्रीच भी कोयल पर ही निर्भर करती है. चमचमाती गाडियां भी कोयले के पैसे से ही दौड़ती है. धनबाद लोकसभा में घात- प्रतिघात का खतरा भी है. . इधर, भाजपा में भी भितरघात के खतरे को संभालने की कोशिश की गई है. लेकिन यह कितना संभला है, यह कहना बड़ा मुश्किल है. धनबाद लोकसभा की कुर्सी धनबाद, झरिया और बोकारो विधानसभा होकर जाती है.
60% वोटर शहरी क्षेत्र से आते है
एक आकलन के अनुसार धनबाद लोकसभा के 40% वोटर ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं जबकि 60% वोटर शहरी क्षेत्र से आते है. यह अलग बात है कि धनबाद में चुनाव प्रचार इतिहास बनता रहा है. 1971 और 1977 में धनबाद लोकसभा में जिस ढंग का चुनाव प्रचार हुआ,वह इतिहास बन गया. ऐसा उसके बाद कभी नहीं हुआ और आगे भी होने की संभावना बिल्कुल नहीं है. अब तो सब कुछ बदल गया है. 1971 में जहां एक निर्दलीय प्रत्याशी ने धनबल का उपयोग किया, वही 1977 के चुनाव में धन बल गौण हो गया. उसका कोई महत्व ही नहीं रह गया. जेल में बंद एके राय चुनाव जीत गए. 1971 और 1977 का चुनाव आज भी लोगों को रोमांचित करता है. 1971 में जहां हेलीकॉप्टर के भरोसे चुनाव प्रचार किया गया था, वही 1977 में कार्यकर्ताओं ने खिचड़ी के भरोसे चुनाव में एके राय को जीत दिला दी . 1971 के चुनाव में हेलीकॉप्टर का दिखना लोग अनोखा मानते थे. हेलीकॉप्टर पर चढ़ना तो सपना के समान था. 1971 में लड़ाई जनबल और धनबल के बीच थी. परिणाम की लोग बेसब्री से इंतजार करते रहे.आखिरकार जनबल की ही जीत हुई थी.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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