धनबाद(DHANBAD): धनबाद लोकसभा की वोटिंग की तिथि जैसे जैसे नजदीक आ रही है, चुनाव रोचक होता जा रहा है. धनबाद में तीनों जेंडर के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं तो एके राय की पार्टी के उम्मीदवार भी यहां ताल ठोक रहे है. यह अलग बात है कि धनबाद लोकसभा क्षेत्र में घात- प्रतिघात का खतरा अधिक है और यह सभी पार्टियों के साथ है. धनबाद संसदीय क्षेत्र में अब तक सवर्ण जातियों का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार भाजपा ने ओबीसी कार्ड खेलते हुए विधायक ढुल्लू महतो को उम्मीदवार बनाया है. धनबाद में 25 मई को मतदान है और चुनाव प्रचार धीरे-धीरे तेज होता जा रहा है. धनबाद लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें तीन ग्रामीण क्षेत्र के रूप में चिन्हित है जबकि तीन शहरी क्षेत्र माने जाते है. यह बात भी सच है कि धनबाद संसदीय क्षेत्र की कुर्सी धनबाद, झरिया और बोकारो होकर जाती है.
तीन ग्रामीण और तीन शहरी विधानसभा क्षेत्र हैं
इन तीन विधानसभा क्षेत्र में जिसकी पकड़ मजबूत होगी, वह चुनाव जीत जाएगा. यह बात भी सच है कि 1971 के बाद धनबाद लोकसभा क्षेत्र से जितने भी उम्मीदवार विजय हुए हैं, सभी सवर्ण जाति से आते है. राम नारायण शर्मा हो , शंकर दयाल सिंह हो, एके राय हो, रीता वर्मा हो, ददई दुबे हो या पशुपतिनाथ सिंह हो. सभी सवर्ण जाति से आते है. इस बार कांग्रेस ने भी सवर्ण जाति को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन भाजपा ने ओबीसी कार्ड खेला है. 2019 के लोकसभा चुनाव में धनबाद विधानसभा में 55.3% वोटिंग हुई थी, जबकि झरिया में 50. 4% मत पड़े थे. इसी प्रकार बोकारो में 53.3 प्रतिशत मत पड़े थे ,जबकि चंदन कियारी विधानसभा क्षेत्र में 73.73 प्रतिशत, निरसा विधानसभा क्षेत्र में 67.79 प्रतिशत और सिंदरी विधानसभा क्षेत्र में 71. 49 प्रतिशत वोट पड़े थे. वैसे धनबाद लोकसभा क्षेत्र में कुल 60.37 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. यह अलग बात है कि धनबाद लोकसभा क्षेत्र में कोयला मजदूरों की भी भूमिका होती है.
कोयला मजदूरों की भी परिणाम में होती है भूमिका
कोयला मजदूर अगर एक तरफा किसी के तरफ चले जाएं तो जीत हो सकती है, लेकिन राष्ट्रीयकरण के बाद कोयला मजदूरों की संख्या में लगातार कमी होती आई है. मजदूर संगठन भी अब इतने ताकतवर नहीं रह गए है. वैसे ,1971 और 1977 में धनबाद लोकसभा में जिस ढंग का चुनाव प्रचार हुआ,वह इतिहास बन गया. ऐसा उसके बाद कभी नहीं हुआ और आगे भी होने की संभावना बिल्कुल नहीं है. अब तो सब कुछ बदल गया है. 1971 में जहां एक निर्दलीय प्रत्याशी ने धनबल का उपयोग किया, वही 1977 के चुनाव में धन बल गौण हो गया. उसका कोई महत्व ही नहीं रह गया. जेल में बंद एके राय चुनाव जीत गए. 1971 और 1977 का चुनाव आज भी लोगों को रोमांचित करता है. 1971 में जहां हेलीकॉप्टर के भरोसे चुनाव प्रचार किया गया था, वही 1977 में कार्यकर्ताओं ने खिचड़ी के भरोसे चुनाव में एके राय को जीत दिला थी.
1971 में हेलीकॉप्टर से हुआ था चुनाव प्रचार
1971 के चुनाव में हेलीकॉप्टर का दिखना लोग अनोखा मानते थे. हेलीकॉप्टर पर चढ़ना तो सपना के समान था. 1971 में लड़ाई जनबल और धनबल के बीच थी. . इसी प्रकार 1977 में जब चुनाव हुआ तो जेल से ही एके राय ने नामांकन भर दिया. लेकिन पैसे की कमी थी, चुनाव के लिए संचालन समिति गठित की गई थी. बीसीसीएल, एफसीआई और बोकारो स्टील कारखाना के मजदूर आकार चुनाव प्रचार करते थे. ना बैनर, ना पोस्टर , और ना कोई होर्डिंग, केवल दीवार लेखन और घर-घर प्रचार के दम पर एके राय चुनाव जीत गए थे. सामने कांग्रेस के प्रत्याशी राम नारायण शर्मा थे. लेकिन उन्हें 63000 से भी अधिक मतों से हार का सामना करना पड़ा था. आज तो चुनाव का परिदृश्य से बदल गया है अब ना खिचड़ी के भरोसे चुनाव लड़े जाते हैं और नहीं खुद के पैसे से कार्यकर्ता प्रत्याशी के लिए गांव-गांव घूमते है. गांव-गांव घूम कर एक मुट्ठी चावल भी नहीं मांगते है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
4+