धनबाद(DHANBAD): तो क्या भाजपा नेतृत्व किसी भी जिम्मेवारी के लिए पार्टी की कसौटी के पैमाने को बदल दिया है? जिसने जो कुछ भी किया है, क्या वह एक निश्चित समय के लिए था? अब दूसरे को मौका के सिद्धांत पर क्या भाजपा चल पड़ी है? क्या दो दशक से भी अधिक समय तक राज्यों में सक्रिय क्षत्रप का दौरा अब खत्म हो गया है? तो 2024 में उम्मीदवारों के चयन के लिए भी क्या कोई नई कसौटी तैयार की जा रही है? यह सब ऐसे सवाल हैं, जो तीन राज्यों में मुख्यमंत्री के चयन के बाद उमड़- घुमड़ रहे है. लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के आगे किसी की कुछ चल नहीं रही है. मन मसोस कर ही सब कुछ, सब कोई बर्दाश्त करने को विवश है. मध्य प्रदेश के चार बार के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि अपनी पार्टी से ,अपने लिए कुछ मांगने के बजाय मरना पसंद करूँगा. उन्होंने कहा कि मुझे जो काम दिया जाएगा, उसे करूँगा. भाजपा एक मिशन है और हर कार्यकर्ता के लिए कोई न कोई काम है.
दो दशक तक सक्रिय क्षत्रप गए नेपथ्य में
शिवराज सिंह चौहान ,वसुंधरा राजे सिंधिया और रमन सिंह को नेपथ्य में जाने के बाद मोहन यादव, भजनलाल शर्मा और विष्णुदेव साय तीन राज्यों के सत्ता के केंद्र में आ गए है. राजघराने से दीया कुमारी को भी मध्य प्रदेश में उपमुख्यमंत्री बनाकर वसुंधरा राजे सिंधिया से नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की गई है. भाजपा ने तीन राज्यों में मुख्यमंत्री के चयन की प्रक्रिया में पूरी तरह से बदलाव किया है. तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री 60 साल से कम उम्र के है. सभी संगठन से जुड़े हुए है. तीनों राज्यों में भाजपा ने नई उम्मीदवारों का चयन कर सबको चौकाया है. अब" 2024 के लोकसभा चुनाव का भी काउंटडाउन शुरू हो गया है. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जिस तरह से चयन की प्रक्रिया में बदलाव की ओर आगे बढ़ चला है, ऐसे में लोकसभा चुनाव में दावेदारी करने वाले 60 वर्ष से ऊपर वाले उम्मीदवारों पर कितना खतरा है, इसकी चर्चा शुरू हो गई है.
क्या कोई सन्देश है तीन राज्यों के सीएम के चुनाव में ?
लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले 60 प्लस लोगों के लिए क्या तीन राज्यों के मुख्यमंत्री का चयन कोई संदेश है? क्या अब नेता चाहे कितना भी ताकतवर हो, लेकिन अगर वह भाजपा की नई नीति और सिद्धांत पर फिट नहीं बैठता है, तो उसकी कोई गिनती नहीं है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ इसके उदाहरण है. बड़े नेताओं को किनारे कर दिया गया. जिनके बारे में कभी कोई सोच भी नहीं सकता था, उनको बागडोर सौंप दी गई. तीन राज्यों में मुख्यमंत्री के चयन में क्या संदेश छुपे हैं, सब अपने-अपने ढंग से इसका मतलब समझने लगे है. लगभग 2 दशकों से इन राज्यों में क्षत्रपों की जगह नए लोगों को सत्ता की कमान सौंप दी गई है. हालांकि तीनों जगह "वन प्लस टू" की थ्योरी अपनी गई है. इस बार भाजपा ने लोकसभा में 400 पार का नारा दिया है. देखना है कि उम्मीदवारों के चयन में किन-किन कसौटियों पर उम्मीदवारों को कसने की तैयारी है?
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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