धनबाद(DHANBAD): सरकार कोल इंडिया की हिस्सेदारी 3% और बेचकर 42 सौ करोड़ रुपए का जुगाड़ करेगी. अब तक विनिवेश 34% था, अब बढ़कर 37% हो जाएगा .यह तो है समग्र कोल इंडिया की बात, लेकिन अगर कोल इंडिया की सबसे बड़ी इकाई भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की बात की जाए तो यहां भी कंपनी धीरे-धीरे प्राइवेट लोगों पर ही भरोसा कर रही है. वित्तीय वर्ष 23-24 में बीसीसीएल के लिए 41 मिलियन टन का लक्ष्य रखा गया है. हालांकि बीसीसीएल 43 मिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य लेकर काम कर रही है. बीसीसीएल में लगभग 34000 विभागीय कर्मी है ,लेकिन उत्पादन का अनुपात अच्छा नहीं है. इसके पीछे भी कई कारण है. ऐसा नहीं है कि विभागीय कर्मी काम करना ही नहीं चाहते , उन्हें काम दिया ही नहीं जाता है. यह हम नहीं कह रहे हैं, ऐसा मजदूर संगठनों का आरोप है.
मजदूर संगठनों की माने तो विभागीय कर्मी को भूमिगत खदानों में लगाया जाता है. और फिलहाल बीसीसीएल की भूमिगत खदान बहुत गहरी हो गई है और इससे उत्पादन का टारगेट हासिल करने में किसी को भी कठिनाई हो सकती है. यह तो हुई एक बात, दूसरी बात यह है कि कंपनी की भूमिगत खदानों को लगातार बंद किया जा रहा है. फिलहाल जिन चार भूमिगत खदानों को खोलने का निर्णय हुआ है, वह भी प्राइवेट पार्टी के हवाले होंगी.
नए कर्मियों की नहीं हो रही बहाली
बीसीसीएल का जो उत्पादन लक्ष्य है,उसमें 90% से अधिक आउटसोर्स कंपनियों की हिस्सेदारी है. ऐसे में विभागीय कर्मी अवकाश ग्रहण कर रहे हैं ,उनकी जगह पर नए कर्मियों की बहाली नहीं हो रही है. मतलब तो धीरे-धीरे कंपनी को प्राइवेट करने की दिशा में मैनेजमेंट निर्णय ले रहा है. 1973 के पहले भी कोयला खदान प्राइवेट लोगों के हाथ में थी. कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद सरकार ने एक झटके में सारे कोयला खदानों को कोयला मालिकों के हाथों से लेकर राष्ट्रीयकरण कर दिया था. सरकार के इस निर्णय से रातो रात करोड़पति, अरबपति खदान मालिक सड़क पर आ गए थे. कोलियरी के नाम से सारी संपत्ति को सरकार ने जब्त कर लिया था, लेकिन उसके बाद अब फिर से कोयला उद्योग को प्राइवेट लोगों के हाथ में देने की कोशिश शुरू हुई है और यह काम बहुत चालाकी और धीरे-धीरे की जा रही है. आउटसोर्स कंपनियों की बढ़ोतरी से पोखरिया खदानों से उत्पादन अधिक हो रहा है. फिलहाल बीसीसीएल में आउटसोर्सिंग के 26 पैच चल रहे हैं .कुछ और नए पैच बनाने की तैयारी है, जिन की घोषणा एक-एक कर की जा रही है .
कोयले के अवैध उत्खनन के कारण इन शहरों में बढ़ रहा खतरा
ऐसे में सवाल उठता है कि विभागीय कर्मी के माथा पर ठीकरा फोड़ने के बजाय भूमिगत खदानों पर प्रबंधन जोर दें लेकिन प्रबंधन ऐसा इसलिए भी नहीं करेगा कि भूमिगत खदानों से कोयला उत्पादन महंगा हो गया है और कंपनी ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की ओर अग्रसर है .ऐसे में धनबाद कोयलांचल की भौगोलिक स्थिति बिगड़ रही है. प्रदूषण फैल रहा है. झरिया के लोग लगातार शिकायत कर रहे हैं कि अब इलाके में सांस लेना भी मुश्किल हो गया है. कतरास इलाके का भी वही हाल है. कतरास के बारे में तो कहा जाता है कि यह पूरा शहर पिलर पर खड़ा है . कोयले के अवैध उत्खनन के कारण इस शहर पर भी खतरा बढ़ गया है. बीसीसीएल से जितना ऑफिशियल कोयला प्रोडक्शन होता है उससे कुछ ही कम अवैध उत्खनन से कोयले का उत्पादन कोयला तस्कर करते और करवाते हैं.आरोप के अनुसार ऐसे में विभागीय कर्मियों दोष देने का एक तरीका ढूंढा गया है. अब मजदूर संगठनों की आंखे खुली है,अब इसका विरोध कर रहे हैं. विभागीय कर्मियों की संख्या लगातार घटने से कोयला वेतन समझौता के प्रति भी लोगों का रुझान कम हो रहा है. विभागीय कर्मियों की संख्या लगातार घट रही है और आउट सोर्स का प्रचलन लगातार बढ़ रहा है. यही वजह है कि रंगदारी की घटनाएं भी अधिक हो रही है. मजदूर संगठनों का कहना है कि सरकार को अपना निर्णय साफ कर देना चाहिए .धीरे-धीरे कोयला उद्योग को बर्बाद करने के बजाय जो भी निर्णय करना है, एक बार सरकार कर ले .कभी कोल इंडिया में विनिवेश की मात्रा बढ़ रही है तो कभी कहा जाता है कि विभागीय कर्मी सही ढंग से उत्पादन नहीं करते, इसलिए आउट सोर्स करना पड़ रहा है.
सरकारी विभागों में तेजी से बढ़ रहा आउट सोर्स का प्रचलन
वैसे सिर्फ कोयला उद्योग की ही बात क्यों की जाए, सारे सरकारी विभागों में आउट सोर्स का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. मजदूर संगठनों की मांग है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस बात की जांच पड़ताल करे कि आउटसोर्स के नाम पर क्या क्या हो रहे हैं. जिन बड़े-बड़े विभागों में यह व्यवस्था लागू की गई है, वहां का मैनेजमेंट क्या इस व्यवस्था से संतुष्ट है. संगठनों का यह भी कहना है कि सरकार की निगरानी व्यवस्था ढीली पड़ गई है इस वजह से काम बिगड़ रहे हैं.
रिपोर्ट:धनबाद ब्यूरो
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