धनबाद(DHANBAD): 50 सालों से अधिक समय के बाद झरिया और रानीगंज की बंद भूमिगत कोलरिया फिर से निजी हाथों में गई है. कोल इंडिया ने 23 ऐसी खदानों को निजी हाथों में सौंप दिया है. और भी सौपें जाने की तैयारी चल रही है. जानकारी निकल कर आ रही है कि कोल इंडिया व बंद पड़ी कोयला खदानों से राजस्व बढ़ाने के लिए इन बंद पड़ी 23 भूमिगत खदानों को निजी हाथों में दे दिया है. असुरक्षित या अधिक खनन खर्च की वजह से कोल इंडिया इन कोयला खदानों को राजस्व साझेदारी या माइंस डेवलपर एंड ऑपरेटर मोड पर चलाने को दी है. इन 23 खदानों में अधिकतर खदान देश के सबसे पुराने खनन क्षेत्र झरिया और रानीगंज की माइंस है. कहने को तो कोल इंडिया की मनसा घरेलू कोयले का उत्पादन बढ़ाने और राजस्वृद्धि का है. यह बात भी सच है कि झरिया और रानीगंज की पुरानी बंद खदाने कुछ जटिल प्रकृति की है. कुछ खदानें तो गैसीय भी है. कोल इंडिया की ओर से चिन्हित की गई 23 खदानों के साथ ऐसा किया गया है. इनमें अधिकांश खदाने भूमिगत यानी अंडरग्राउंड माइन्स है.
कुल सालाना क्षमता 3.414 करोड़ टन निर्धारित
इन खदानों की कुल सालाना क्षमता 3.414 करोड़ टन निर्धारित किया गया है. जबकि इन खदानों से खनन के लिए भंडार 63.5 करोड़ टन होने का अनुमान है. कोल इंडिया धीरे-धीरे अब निजीकरण की ओर बढ़ रही है. 5 साल में 90% के लगभग अगर यह सब व्यवस्था चली जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं है. सूत्र बताते हैं कि कोल इंडिया कुल 34 खदानों को चिन्हित किया है. जिनसे उत्पादन नहीं हो रहा था , लेकिन वहां अच्छी गुणवत्ता का कोयला है. कोल इंडिया यह मानकर चल रही है कि इन कोलियरियों से प्रोडक्शन उत्पादक कंपनी के लिए फायदे का सौदा नहीं हो सकता है. इसलिए, प्राइवेट कंपनियों को दिया जा रहा है. इन 34 खदानों में ईसीएल की और भारत को किंग कोल् लिमिटेड की 10-10 खदानें है. वेस्टर्न कोलफील्ड के पास पांच, साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड के पास चार , महानदी कोलफील्ड लिमिटेड के पास तीन और सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड के पास दो खदानें है.
23 के अलावे शेष बची खदाने भी जाएंगी प्राइवेट हाथों में
इनमें से 23 को तो निजी हाथों में सौंप दिया गया है. शेष बची कोयला खदानों को भी निजी हाथों में दे दिया जाएगा. वैसे भी कोल इंडिया की अधिकांश पोखरिया खदानों से उत्पादन आउटसोर्स के भरोसे चल रहा है. धनबाद कोयलांचल में तो बीसीसीएल के उत्पादन का लगभग 90% कोयला आउटसोर्स कंपनी निकालती है. यह अलग बात है कि जिन शर्तों पर आउट सोर्स कंपनियां काम लेती है, उन शर्तों पर काम पूरा किया नहीं जाता है. हाल के दिनों में कई बैठकें हुई, प्रशासनिक बैठकों में यह आरोप लगाया जाता रहा कि आउटसोर्सिंग कंपनियां तय मानक का उपयोग नहीं करती है. अभी हाल ही में ब्लास्टिंग के बाद कुजामा में विवाद हुआ. विवाद के बाद कई दिनों तक आउटसोर्स कंपनी से उत्पादन ठप रहा. कंपनी को प्रशासन की ओर से निर्देश दिया गया कि तय मानक के अनुसार ही ब्लास्टिंग किया जाए. जो भी हो, लेकिन कोल् इंडिया अब धीरे-धीरे सिकुड़ती जा रही है और प्राइवेट प्लेयर का बोलबाला बढ़ता जा रहा है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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