धनबाद(DHANBAD) : देश की कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया का सितारा झारखंड के भरोसे ही चमकता है. कहा जाता है कि कोल इंडिया का आधार स्तंभ झारखंड ही है. झारखंड में तीन-तीन कोयला कंपनियां काम करती है. इनमें बीसीसीएल, सीसीएल और ईसीएल के नाम शामिल है. कोयला उत्पादन का सबसे अधिक दंश भी झारखंड ही झेलता है. आंकड़े के मुताबिक कोल इंडिया और सहायक कंपनियां से कोयला खनन के जरिए देश में कुल 141 967.71 करोड़ राजस्व जेनेरेट होता है. इसमें झारखंड की हिस्सेदारी 36, 000 करोड रुपए की है. बीसीसीएल 14,113.31 करोड़ और सीसीएल 16,565.72 करोड़ की हिस्सेदारी रखता है. इसके अलावा ईसीएल के तीन खनन क्षेत्र राजमहल, चितरा और मुगमा झारखंड में है. यहां से भी रेवेन्यू जेनरेट होता है. वैसे, आंकड़े बता रहे हैं कि कोल इंडिया को सबसे अधिक राजस्व झारखंड से ही मिलता है. कोयला खनन के लिए भी सबसे अधिक जमीन झारखंड में ही मिली हुई है. झारखंड में कोयला खनन के लिए 957 72.687 हैकटेयर जमीन कोयला खनन के लिए अधिग्रहित की गई है.
कोयला खनन के बाद जमीन की प्रकृति बदलने का सबसे अधिक दंश झारखंड ही झेलता है. खनन के बाद जमीन समतलीकरण की समस्या सबसे अधिक इसी प्रदेश में है. कोयला निकालने के बाद जमीन अनुपयोगी हो जाती है. बड़े-बड़े ओपन कास्ट में जमा पानी तक इस्तेमाल लायक नहीं रहता है. इकोलॉजिकल रेस्टोरेशन व लैंड रेस्टोरेशन के नाम पर कोयला पौध रोपण कराती है. इको पार्क आदि का निर्माण करती है, जो कि ना काफी है. आप किसी भी इलाके में चले जाइए बड़े-बड़े ओ बी डंप सैकड़ो हेक्टेयर जमीन पर पड़े मिलेंगे. जिनका कोई इस्तेमाल नहीं है. अगर धनबाद की बात की जाए तो धनबाद में भी कोयला निकालने के बाद जमीन अनुपयोगी होने की मात्रा कम नहीं है. भूमिगत आग अलग परेशान करती है तो गोफ में समाने से लोगो की जाने भी जाती है. संशोधित झरिया मास्टर प्लान अभी पेंडिंग है. हालांकि पीएमओ अधिकारी के दौरे के बाद गुरुवार को केंद्रीय कोयला मंत्री भी धनबाद आये थे.
जानकारी निकल कर आ रही है कि झरिया की भूमिगत आग और विस्थापन की समस्या पर अब प्रधानमंत्री कार्यालय की नजर गई है. जानकारी के अनुसार पीएमओ के अधिकारी बगैर किसी सूचना दिए धनबाद पहुंचे थे. अग्नि प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया. भारत कोकिंग कोल लिमिटेड और जरेडा के अधिकारियों के साथ बैठक की. हालांकि, उन्होंने क्या देखा, इसको लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. लेकिन पीएमओ के उपसचिव स्तर के अधिकारी के दौरे को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. झरिया मास्टर प्लान तो अभी तक चू चू का मुरब्बा बना हुआ है. बरसात का मौसम है, ऐसे में झरिया में धंसान का खतरा बढ़ जाता है. जमीन फट भी रही है, जहरीली गैस निकल रही है. लोग पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन संशोधित झरिया मास्टर प्लान को अभी तक स्वीकृति नहीं मिली है. संशोधित झरिया मास्टर प्लान के तहत कुल 1.04 लाख प्रभावित इलाके में रहने वाले लोगों को पुनर्वासित किया जाना है. इनमें करीब 32,000 रैयत है और 72,000 के आसपास गैर रैयत है. रैयतों के पुनर्वास के लिए आर्थिक पैकेज तैयार कर लिया गया है. संशोधित प्लान को स्वीकृति मिलने के बाद इसे लागू किया जा सकता है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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