सीएमपीएफओ को मिल सकता है ₹20 प्रति टन, फिर देश के कोल पेंशनर्स को क्या होगा लाभ, पढ़िए इस रिपोर्ट में


धनबाद (DHANBAD): कोयला खान भविष्य निधि संगठन (सीएमपीएफओ) आर्थिक रूप से और अधिक मजबूत होगा. पेंशन फंड में ₹10 प्रति टन की बजाय ₹20 प्रति टन का सहयोग करेगा कोल इंडिया. सीएमपीएफओ बोर्ड ऑफ ट्रस्टी ने इस पर अपनी मुहर लगा दी है और इस प्रस्ताव को कोयला मंत्रालय के पास स्वीकृति के लिए भेज दिया है. स्वीकृति की उम्मीद इसलिए अधिक है क्योंकि कोयला सचिव ही बोर्ड ऑफ ट्रस्टी के अध्यक्ष होते हैं और इस बैठक में वह भी शामिल थे. पहले तो यह कंट्रीब्यूशन ₹10 से बढ़ाकर ₹15 करने की बात हुई लेकिन बाद में ₹20 प्रति टन देने पर सहमति बनी और उसके बाद इस प्रस्ताव को कोयला मंत्रालय को भेज दिया गया है. आपको बता दें कि सीएमपीएफओ बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की 176 वीं बैठक में हुए निर्णय को मंत्रालय के पास भेजा गया है.
पुराने कर्मियो को दिख रहा है कहीं न कहीं लोचा
जानकार सूत्रों के अनुसार कोल इंडिया अगर ₹20 प्रति टन कंट्रीब्यूट करेगा तो सीएमपीएफओ की आर्थिक संकट को दूर किया जा सकता है, हालांकि पुराने कोल कर्मी इस पर संदेह व्यक्त कर रहे है. वहीं, प्रश्न खड़ा कर रहे हैं कि सीएमपीएफओ की राशि सरकार के निर्णय से निजी कंपनियों इन्वेस्ट की गई और वह राशि लगभग डूब चुकी है. पिछली बैठक में सरकार की ओर से प्रस्ताव आया था कि उस राशि को राइट ऑफ कर दिया जाए लेकिन ट्रस्टी बोर्ड के अन्य सदस्यों ने इसका विरोध किया. इस कारण इस पर निर्णय नहीं हो सका. सूत्रों के अनुसार अगर ₹20 टन का कंट्रीब्यूशन शुरू हो जाता है तो सीएमपीएफओ की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार होगा और संशय की स्थिति खत्म हो जाएगी.
1600 हज़ार करोड रुपया राइट ऑफ नहीं हो, सीबीआई जाँच हो
आपको बता दें कि कोल इंडिया कर्मियों का लगभग 7% राशि प्रोविडेंट फंड के मद में कटती है और लगभग इतनी ही राशि कंपनी की ओर से दी जाती है. ₹20 प्रति टन का भुगतान शुरू होने के बाद स्थिति में सुधार हो सकता है. इधर, कोल माइंस पेंशनर्स एसोसिएशन भी अपनी पेंशन राशि बढ़ाने के लिए लगातार आंदोलन कर रहा है. उसका कहना है कि न्यूनतम पेंशन राशि बढ़ाई जाए, उनका यह भी आरोप है कि बहुत कम राशि पेंशन के रूप में भुगतान हो रही है. आपको बता दें कि देश में अभी भी एक लाख 26 हज़ार से अधिक कोल पेंशनर्स है, जिन्हें ₹1000 से भी कम पेंशन मिलती है. इस राशि को बढ़ाने के लिए सरकार पर लगातार दबाव बढ़ रहा है. इतना ही नहीं, कोल माइंस पेंशनर्स एसोसिएशन की बातों पर भरोसा करें तो कर्मियों के अंशदान का 1600 हज़ार करोड रुपया निजी कंपनियों में निवेश किया गया था ,जिसमें से कम कम से कम 80% राशि डूब गई है और सरकार इसे राइट ऑफ करना चाहती है. पिछली बैठक में भी यह प्रस्ताव लाया गया था लेकिन मजदूर संगठन के प्रतिनिधियों ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर डाली.
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