RANCHI:लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ हो जाती है. छठ महापर्व चार दिनों का पर्व होता है. वहीं आज 12 अप्रैल से चैती छठ का आगमन नहाए खाए के साथ शुरु हो गया है. चैत मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को छठ पर्व का प्रथम दिन होता है. इस दिन छठ व्रती सुबह उठकर स्नान कर गेंहु धोती है फिर उसके बाद सभी महिला मिल कर छठ गीत गा कर प्रसाद यानि लौकी भात बनाती हैं. नहाय खाय के दिन व्रती अरवा चावल, चने की दाल, कद्दु की सब्जी, कद्दु रायता और कद्दु से जुडे कई वेराईटी के चीजें बना कर खाती हैं. और फिर उसके बाद घर के सभी सदस्य प्रसाद के तौर पर उसे ग्रहण करते है.बता दे कि बिहार, उत्तर प्रदेश और कई जगहों पर नहाय-खाय वाले दिन को कद्दू भात भी कहा जाता है.
वैसे तो नहाए खाए के दिन लौकी भात खाने का महत्व काफी अहम होता है.वहीं अगर हम धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताओं की बात करें तो दोनो की अपनी अलग ही महत्व और फायदें हैं.तो आईए फिर जानते है, कि छठ पर्व में कद्दु भात के फाय़दे क्या हैं?
नहाय खाए के दिन कद्दू का महत्व
नहाए खाए के साथ छठ की शुरुआत होती है. पहले दिन स्नान करने के बाद कद्दू भात और साग खाया जाता है. छठ व्रतीयां छठ के पहले दिन कद्दु का सेवन करती हैं. ऐसी मान्यता है सरसो का साग अरवा चावल और कद्दू खाकर छठ महापर्व की शुरूआत की जाती है क्योंकि इस भोजन को बहुत ही शुद्ध और पवित्र माना जाता है और कद्दू आसानी से पचने वाली सब्जी है. इसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने की भी क्षमता होती है.छठ का व्रत करने से पहले खुद को सात्विक और पवित्र रखती हैं.
वैज्ञानिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अलावा कद्दु भात खाने के कई फायदे होते हैं. कद्दू में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होता है, इसके अलावा, कद्दू में डाइटरी फाइबर भरपूर मात्रा पाया जाता है.वहीं लौकी के सेवन से पेट से जुड़ी समस्याएं दूर होती है और साथ ही इम्यून सिस्टम भी स्ट्रांग होती है जिससे व्रती इस बीच बीमारियों से बची रहती हैं. इसलिए छठ के पहले दिन कद्दू भात खाया जाता है.
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