लातेहार(LATEHAR): लातेहार जिले में इन दिनों मनरेगा योजना में बड़े पैमाने पर घोटाला किया जा रहा है. लेकिन पूरे मामले को लेकर प्रशासन तमाशबीन बना हुआ है. नतीजन घोटालेबाज मनरेगा योजना में जमकर लूट मचाए हुए हैं. हाल ही में ज़िले के मनिका प्रखंड से मनरेगा योजना के नाम पर गलत ढंग से लाखों रुपए की फर्जी निकासी करने का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि ज़िले के सदर प्रखंड अंतर्गत इचाक पंचायत से मनरेगा योजना में एक लाख रुपए से अधिक राशि का गबन करने का मामला सामने आया है.
क्या है मामला
दरअसल, लबरपुर गांव में कई ग्रामीणों को टीसीबी का लाभुक बताकर लगभग 1 लाख 30 रु से अधिक की राशि की फर्जी निकासी कर ली गई है. जबकि टीसीबी का निर्माण हुआ ही नहीं है. यहां बिना कार्य किये ही दर्जनों लाभुकों के नाम पर फर्जी निकासी कर ली गई है. जबकि लाभुकों को इस संबंध में कोई जानकारी ही नहीं है. हालांकि बाद में गांव के एक जागरूक व्यक्ति ने ग्रामीणों को बताया कि कई लोगों के नाम पर मनरेगा योजना पूर्ण दिखाकर एक लाख तीस हजार रुपए की फर्जी निकासी कर ली गई है. उक्त राशि की निकासी मनरेगा योजना के अंतर्गत संचालित टीसीबी योजना के नाम पर की गई है. इधर, जिन ग्रामीणों को कागज़ों में टीसीबी का लाभुक बनाया गया है. उन्हीं में से एतवा उरांव, दिनेश उरांव, कलावती देवी, सरिता देवी समेत अन्य ग्रामीणों ने बताया कि योजना के विषय में हमलोगों को कोई जानकारी नहीं है. और न ही हमारी जमीन पर योजना का निर्माण करवाया गया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि संबंधित विभाग के कर्मियों से मिलकर बिचौलिए ने फर्जी तरीके से निकासी किया है. ग्रामीणों ने पूरे मामले की जांच कर संबंधित कर्मियों और बिचौलियों पर कार्रवाई करने की मांग की है.
बीडीओ को कोई जानकारी नहीं
इधर, इस संबंध में प्रखंड विकास पदाधिकारी मेघनाथ उरांव ने बताया कि इस संबंध में कोई जानकारी नही है. अगर इस तरह का कुछ मामला हुआ है तो इसकी जांच कर कार्रवाई की जाएगी. बहरहाल, मनरेगा योजना के तहत संचालित योजनाओं में बिचौलियों की भूमिका बढ़ गयी है. हालांकि मनरेगा कानून में ठेकेदारी पर पाबन्दी है, लेकिन मनरेगा की शुरूआती दिनों से ही योजनाओं के चयन से कार्यान्वयन तक में ठेकेदार (बिचौलिए) जुड़े हैं. ठेकेदारों की मनरेगा कर्मियों और प्रशासन के साथ साठ-गांठ होने के कारण मज़दूर और योजना के लाभुक इन पर ही निर्भर रहते हैं. अनेक पंचायत प्रतिनिधि खुद ठेकेदारी करते हैं या उनमें से अधिकांश इस साठ-गांठ का हिस्सा हैं. इस तंत्र को मिलने वाला राजनैतिक संरक्षण भी किसी से छुपा नहीं है. यह भी आम बात है कि जब जो राजनैतिक दल सत्ता में रहता है, तब उनके कैडर की मनरेगा ठेकेदारी में भूमिका बढ़ जाती है. बहरहाल, मनरेगा के तहत ग्रामीणों को रोजगार से जोड़ने का दावा पूरी तरह खोखला नज़र आ रहा है. सीधे तौर पर कहें तो राज्य में मनरेगा योजना महज लूट का केन्द्र बना हुआ है.
रिपोर्ट: गोपी कुमार सिंह, लातेहार
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