DHANBAD: कोलियरी राष्ट्रीयकरण के पहले निजी मालिकों ने माफिया पैदा किया,अब आउटसोर्सिंग के रास्ते BCCL माफिया पैदा कर रही है ,जानिए पूरा विवरण


धनबाद(DHANBAD) : कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण से पहले निजी खान मालिकों ने कोयलांचल में माफिया पैदा किये. लेकिन अब लोक क्षेत्रीय प्रतिष्ठान बीसीसीएल आउटसोर्सिंग के रास्ते नए-नए माफिया पैदा कर रही है. यह कहना है कोयलांचल की माफिया संस्कृति को जानने वाले पंडितो का. जी हां, हम बात कर रहे हैं बीसीसीएल में फिलहाल चल रही 28 आउटसोर्सिंग कंपनियों की. यह कंपनियां कितने कोयले का उत्पादन करती हैं और कितना बीसीसीएल के हिस्से में आता है, इसका कोई अभी तक चेक एंड बैलेंस व्यवस्था नहीं बनी है. नतीजा है कि कोयले की चोरी बेधड़क अलग अलग तरीके से जारी है.
आउटसोर्सिंग पैच में अवैध उत्खनन भी धड़ल्ले से
आवंटित आउटसोर्सिंग पैच में अवैध उत्खनन भी धड़ल्ले से होता है. कंपनियों को अपने इकरारनामा अवधि तक ही कोयला उत्पादन करना होता है , इसलिए भी उनको भविष्य की कोई परवाह नहीं होती. उनकी नजरे सिर्फ टाइम और टारगेट पर रहती है. खैर, नए-नए माफिया पैदा करने की बात हो रही थी. कोयला उद्योग का इतिहास जानने वाले भी इस पर मुहर लगा रहे है. बीसीसीएल की लगभग पूरी व्यवस्था आउटसोर्सिंग के हवाले है. आउटसोर्सिंग कंपनियां पोखरिया खदानों से कोयले का उत्पादन करती है. भूमिगत खदान सिर्फ मुनीडीह में हीआउटसोर्सिंग के जिम्मे है. बीसीसीएल में आउटसोर्सिंग का उदय 2004 के बाद से शुरू हुआ. उस समय तो साउथ की कंपनियां यहां आउटसोर्सिंग से कोयला उत्पादन करने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनें लेकर आई थी. फिर यहां के दबंग या निजी छोटी कंपनियों को मुखौटा बनाकर काम शुरू किया. धीरे-धीरे मुखौटा बने लोग ही आउटसोर्सिंग चलाने लगे और दक्षिण की कंपनियों को धीरे-धीरे अपना धंधा समेट कर जाने को मजबूर कर दिया गया. .
आउटसोर्सिंग व्यवस्था से कोयले का उत्पादन जरूर बढ़ा है
कुछ अभी भी चल रही हैं, जो स्थानीय लोगों के साथ ज्वाइंट वेंचर में काम कर रही है. यह बात सही है कि आउटसोर्सिंग व्यवस्था लागू होने के बाद कोयले का उत्पादन बढ़ गया है. यह उत्पादन 32 मिलियन टन तक पहुंच गया है, जबकि 2004 के पहले यह 18 से लेकर 22 मिलियन टन के बीच था. आउटसोर्सिंग कंपनियों के आने से और पोखरिया खदानों से उत्पादन के कारण कोयलांचल के पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ है. यह बात सभी स्वीकारते हैं ,चलिए थोड़ा माफिया की भी चर्चा कर ली जाए. 1940 के आसपास स्वर्गीय बीपी सिन्हा धनबाद आए थे ,1960 के लगभग सूर्यदेव सिंह झरिया के बोर्रा गढ़ आए थे. उसके बाद जो माफिया संस्कृति शुरू हुई आज भी किसी न किसी रूप में चल रही है.लेकिन उसके तौर-तरीके में थोड़ा बदलाव आया है. इधर ,अब बीसीसीएल के रेगुलर मजदूरों से कई गुना अधिक प्राइवेट मजदूर हो गए हैं, तो यूनियनों का वर्चस्व भी कमा है. लेकिन आउटसोर्सिंग के रास्ते नए-नए माफिया पैदा हो रहे हैं या कहा जा सकता है कि हो गए है.
रिपोर्ट: सत्यभूषण सिंह, धनबाद
4+