धनबाद(DHANBAD) : कोयला उद्योग में प्राइवेट प्लेयर्स के बढ़ने से कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया की परेशानी बढ़ रही है. हालांकि इसकी संभावना पहले से ही व्यक्त की जा रही थी. कोल इंडिया में सबसे अधिक कोकिंग कोल का उत्पादन करने वाली भारत को किंग कोल लिमिटेड के समक्ष कोयले की बिक्री का संकट पैदा हो गया है. सेल घटने से मैनेजमेंट चिंतित है. सूत्रों के अनुसार प्रति महीने ई-ऑक्शन से कोयले की होने वाली नीलामी के लिए फ्लोर प्राइस में कटौती करने पर विचार चल रहा है. इसे संबंधित प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है. कंपनी बोर्ड की बैठक में इसे पारित कराया जाएगा. बोर्ड से पारित होने के बाद अधिसूचना जारी कर नई दरें लागू कर दी जाएगी. भारत कोकिंग कोल लिमिटेड को भरोसा है कि कोयले की बिक्री बढ़ने से राजस्व में बढ़ोतरी हो सकती है. कोयले का ऑक्शन फ्लोर प्राइस पर होता है.
कंपटीशन की वजह से कोयले की बिक्री प्रभावित हो रही
सूत्र बताते हैं कि बरसात में पावर सेक्टर से कोयले की मांग में कमी होने और कोयला क्षेत्र में कंपटीशन की वजह से कोयले की बिक्री प्रभावित हो रही है. कोयला कारोबारियों को आकर्षित करने के लिए बीसीसीएल ने पिछले साल भी फ्लोर प्राइस में कटौती की थी. यह कटौती 31 मार्च 2024 तक लागू थी. पहली अप्रैल 2024 से फिर रिजर्व प्राइस को बढ़ाकर पहले की तरह कर दिया गया है. जो भी हो लेकिन प्राइवेट प्लेयर्स के बढ़ने से आशंका व्यक्त की जा रही है कि,अब कोयले की खरीद बिक्री में कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया की मोनोपोली नहीं चलेगी. आशंका पहले से थी कि भारत की कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया और इसकी अनुषंगी कंपनियों की परेशानी आगे बढ़ने वाली है. कोयले की बिक्री में अब कोल इंडिया का मोनोपोली नहीं चल सकती है. प्राइवेट प्लेयर से कंपनी को चुनौती मिल सकती है. कैप्टिव और कमर्शियल कोल ब्लॉक से तगड़ी चुनौती मिलने से इंकार नहीं किया जा सकता है. इससे कोल इंडिया की आमदनी भी प्रभावित हो सकती है. कैप्टिव एवं कमर्शियल कोल ब्लॉकों से अब धीरे-धीरे कोयले का उत्पादन होने लगा है. ऐसे में कई बड़ी कंपनियां, जो कोयला खरीदती थी, वह खुद से उत्पादन करने लगी है.
अबतक 161 खदानों की हो चुकी है नीलामी
एक आंकड़े के मुताबिक अब तक कोयला मंत्रालय ने 575 मिलियन टन की क्षमता वाली 161 खदानों की नीलामी की है. 58 खदानों को खोलने की अनुमति भी मिल गई है. 54 खदानें पहले से चालू है. पिछले वित्तीय वर्ष में इन खदानों से कुल 147 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हुआ था. यह देश के कुल कोयला उत्पादन का 15% है. चालू वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा बढ़ सकता है. एनटीपीसी, पश्चिम बंगाल पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड, पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड, कर्नाटक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड, वेदांता, हिंडालको, अदानी आदि जैसे बड़े उपभोक्ता फिलहाल है. जिन्हें कोल ब्लॉक आवंटित किया गया है. इनके कोल ब्लॉक से उत्पादन शुरू होते ही यह कंपनियां कोल इंडिया से कोयला खरीदना बंद कर देगी. ऐसे में कोल इंडिया का कोयले की बिक्री पर एकाधिकार नहीं रहेगा. मूल्य का भी दबाव रहेगा. मतलब प्राइवेट प्लेयर्स कोल इंडिया के लिए मुसीबत बन सकते है. इधर, 50 सालों से अधिक समय के बाद झरिया और रानीगंज की बंद भूमिगत कोलियरिया फिर से निजी हाथों में गई है. कोल इंडिया ने 23 ऐसी खदानों को निजी हाथों में सौंप दिया है और भी सौपें जाने की तैयारी चल रही है.
बंद पड़ी खदानें जा रही है निजी हाथो में
जानकारी निकल कर आ रही है कि कोल इंडिया बंद पड़ी कोयला खदानों से राजस्व बढ़ाने के लिए इन बंद पड़ी 23 भूमिगत खदानों को निजी हाथों में दे दिया है. असुरक्षित या अधिक खनन खर्च की वजह से कोल इंडिया इन कोयला खदानों को राजस्व साझेदारी या माइंस डेवलपर एंड ऑपरेटर मोड पर चलाने को दी है. इन 23 खदानों में अधिकतर खदान देश के सबसे पुराने खनन क्षेत्र झरिया और रानीगंज की माइंस है. कहने को तो कोल इंडिया की मनसा घरेलू कोयले का उत्पादन बढ़ाने और राजस्वृ वृद्धि का है. यह बात भी सच है कि झरिया और रानीगंज की पुरानी बंद खदाने कुछ जटिल प्रकृति की है. कुछ खदानें तो गैसीय भी है. कोल इंडिया की ओर से चिन्हित की गई 23 खदानों के साथ ऐसा किया गया है. इनमें अधिकांश खदाने भूमिगत यानी अंडरग्राउंड माइन्स है. इन खदानों की कुल सालाना क्षमता 34 करोड़ टन निर्धारित किया गया है. जबकि इन खदानों से खनन के लिए भंडार 63.5 करोड़ टन होने का अनुमान है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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