दुमका(DUMKA): झारखंड में कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव होना है. यह चुनाव एनडीए और इंडी गठबंधन दोनों के लिए काफी अहम माना जा रहा है. एक तरफ इंडी गठबंधन दोबारा सत्ता में बने रहने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है, तो दूसरी ओर 5 वर्षो तक सत्ता से दूर रहने के बाद एनडीए गठबंधन सत्ता पाने के लिए बेताब दिख रही है. चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक दल अपनी अपनी तैयारियां तेज कर दी है. कुछ दिन पूर्व ही रांची बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र दिया है.
नेताओं में जुबानी जंग हुई तेज
चुनाव को लेकर नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज हो चुकी है.आरोप प्रत्यारोप के बीच आज हम आपको बताते हैं झारखंड की उपराजधानी दुमका विधान सभा का इतिहास, जिस पर मुकाबला काफी दिलचस्प होने के आसार हैं. झारखंड विधान सभा के लिए निर्वाचन क्षेत्र संख्या 10 दुमका विधान सभा है, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.वर्ष 2020 के विधान सभा उपचुनाव में मतदाताओं की संख्या 2,50,994 थी. जिसमें 1,61,050 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.
अलग राज्य बनने से लेकर अब तक इस सीट पर रहा है झामुमो का दबदबा
वर्ष 2000 से 2020 के उपचुनाव के चुनाव परिणाम को देखें तो आदिवासी बहुल इस सीट पर झामुमो का दबदबा रहा है. 2000 में झामुमो के टिकट पर स्टीफन मरांडी यहां से चुने गए. 2005 के चुनाव में झामुमो ने स्टीफन मरांडी का टिकट काट कर हेमंत सोरेन को मैदान में उतारा. स्टीफन मरांडी पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़े और बीजेपी प्रत्याशी मोहरिल मुर्मू को पराजित कर विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे.
झामुमो प्रत्याशी हेमंत सोरेन 19610 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे.2009 के चुनाव में झामुमो प्रत्याशी के रूप में हेमंत सोरेन ने बीजेपी प्रत्याशी लुईस मरांडी को पराजित कर विधायक बने. वर्ष 2005 में निर्दलीय चुनाव जीतने वाले स्टीफन मरांडी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और उन्हें तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा. 2014 के चुनाव में दुमका में कमल खिला जब बीजेपी प्रत्याशी लुईस मरांडी ने झामुमो प्रत्याशी हेमंत सोरेन को पराजित किया, लेकिन 2019 के चुनाव में झामुमो ने इस सीट पर वापसी की. हेमंत सोरेन ने बीजेपी प्रत्याशी लुईस मरांडी को पराजित कर विधानसभा पहुंचे और राज्य के सीएम बने, लेकिन मोड़ तब आ गया जब दुमका के साथ साथ बरहेट सीट से चुनाव जीतने वाले हेमंत सोरेन ने दुमका सीट से त्यागपत्र देकर बरहेट सीट से विधायक बने रहने का निर्णय लिया. नतीजा 2020 में दुमका विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ. झामुमो ने हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा जबकि बीजेपी ने एक बार फिर लुईस मरांडी पर भरोशा जताया. उपचुनाव का परिणाम झामुमो के पक्ष में रहा. बसंत सोरेन 6842 वोट से चुनाव जीत कर विधायक बने.
आगामी विधान सभा चुनाव में टिकट बंटवारा बीजेपी के लिए होगी अग्नि परीक्षा, कई दावेदार मैदान में
अब जबकि विधानसभा चुनाव में कुछ महीने ही शेष बचे हैं तो एक बार फिर से दुमका सीट पर राजनीतिक सरगर्मी तेज होने लगा है. सीट बंटबारे को लेकर सबसे ज्यादा माथा पच्ची बीजेपी को करनी पड़ेगी. टिकट की चाहत रखने वाले नेताओं की सक्रियता क्षेत्र में बढ़ गयी है. रांची और दिल्ली दरबार में गणेश परिक्रमा भी जारी है. टिकट के कई दावेदार हैं और सभी अपनी अपनी जीत का दावा भी कर रहे है. जातिगत समीकरण से लेकर युवा पर पकड़ का हवाला दे रहे हैं. बीजेपी की कद्दावर नेत्री डॉ लुईस मरांडी एक बार फिर से ताल ठोकते नजर आ रही है. वर्ष 2014 में हेमंत सोरेन को पराजित कर रघुवर कैबिनेट में मंत्री रही लुईस मरांडी को 2019 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. हेमंत सोरेन के दुमका सीट से त्यागपत्र देने के बाद 2020 में हुए उपचुनाव में एक बार फिर पार्टी ने लुईस पर भरोसा जताया, लेकिन किस्मत ने दगा दिया और लुईस मरांडी हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन से चुनाव हार गई. लगातार दो दो चुनाव हारने के बाबजूद उन्होंने क्षेत्र नहीं छोड़ा. 5 वर्षो से ना केवल दुमका विधानसभा बल्कि दुमका लोक सभा क्षेत्र की जनता के दुख दर्द में शामिल होती रहीं, यह सोच कर कि पार्टी उन्हें लोकसभा का टिकट दे दे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसलिए विधानसभा चुनाव में टिकट की उनकी दावेदारी है.
मौजूदा समय में बीजेपी में अंतर्कलह जारी है
बीजेपी में अंतर्कलह जगजाहिर है. पार्टी के ही लोग का मानना है कि दो दो चुनाव हारने के बाद किसी नए चेहरे को मौका मिलनी चाहिए. नया कौन इस सवाल के जबाब में आधा दर्जन नेताओं के नाम सामने आ जाते हैं. इस स्थिति में टिकट तो किसी एक को ही मिलेगा, टिकट की चाहत रखने वाले शेष लोग प्रत्याशी को जिताने के लिए कितना ईमानदारी से मेहनत करेंगे यह तो समय बताएगा.
झामुमो से बसंत सोरेन होंगे प्रत्याशी या फिर आयातित नेता को मिलेगा मौका!
वहीं दूसरी तरफ देखें तो झामुमो के समक्ष इस सीट पर टिकट बंटवारे को लेकर कोई खींच तान नहीं होनी चाहिए. बसंत सोरेन यहां के विधायक हैं तो निश्चित रूप से बसंत सोरेन को टिकट मिलने में कोई अवरोधक नहीं है.
चाचा और भतीजी के बीच होगा मुकाबला या फिर बदलेगी फिजा
जिस प्रकार सीता सोरेन अपनी बड़ी बेटी को दुमका सीट से बीजेपी से टिकट दिलाने की चाहत रखती है. उसे देखकर सवाल उठता है कि कहीं यहां मुकाबला चाचा और भतीजी के बीच तो नहीं होने वाला? उस स्थिति में क्या बसंत सोरेन दुमका सीट छोड़कर जामा या शिकारीपाड़ा से चुनाव लड़ेंगे या फिर मैदान में डटे रहेंगे यह समय बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि अगर बसंत सोरेन दुमका सीट छोड़ते है तो बीजेपी में भगदड़ मच सकता है.इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी के दिग्गज नेता झामुमो का दामन थाम सकते हैं.चौक चौराहे पर इसकी चर्चा जोर शोर से हो रही है. अहम सवाल यह है कि बसंत सोरेन के बदले दुमका सीट से कौन? क्या पार्टी किसी कार्यकर्ता को मौका देगी या फिर आयातित नेता को टिकट देकर मैदान में उतरेगी, यह देखना दिलचस्प होगा.
चुनाव आता है, जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं, लेकिन मुद्दे यथावत रह जाते हैं
आदिवासियों के सर्वांगीण विकास के नाम पर 15 नवंबर 2000 को अलग झारखंड राज्य बना. दुमका को उपराजधानी का दर्जा मिला. बीते ढाई दशक में दुमका में विकास के कई कार्य हुए. हर 5 वर्ष बाद विधानसभा चुनाव होता है. चुनाव के वक्त प्रत्याशी लंबे चौड़े वायदे करते हैं. कुछ पूरा होता है तो कई चुनावी मुद्दे बनकर रह जाते हैं. इसके बाबजूद शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पेयजल, पलायन जैसी मूलभूत समस्या आज भी मौजूद है.
रिपोर्ट-पंचम झा
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